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Vat Savitri Vrat 2022 in india:अमर सुहाग का प्रतीक वट सावित्री व्रत कहां और कैसे मनाया जाता है, जानिए इसमें क्या खाते है?
Vat Savitri Vrat 2022 in india: 30 मई 2022 का दिन धार्मिक दृष्टि और सौभाग्य की वृद्धि के लिए बहुत है। इस दिन बहुत खास अद्भुत संयोग में वट सावित्री व्रत मनाया जायेगा। इस दिन सोमवती अमवास्या , शनि जयंति के साथ सवार्थ सिद्धी योग भी बन रहा है। जानते है कैसे और कहा मनाया जाता है वट सावित्री व्रत....
Vat Savitri Vrat 2022 in india
भारत में वट सावित्री व्रत 2022
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat ) 30 मई सोमवार के दिन अमावस्या तिथि को है। इस दिन सोमवती अमावस्या और शनि जयंति भी है। यह व्रत महिलाओं के अखंड सौभाग्य का व्रत है। जिसे पतिव्रता सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए किया था। तभी से मान्यतानुसार यह व्रत सुहागिनें करती आ रही है। वैसे तो उत्तर भारत में इस व्रत का अधिक महत्व है। लेकिन दक्षिण भारत के भी कुछ राज्यों में इस व्रत को मनाया जाता है।बिहार, उड़ीसा, झारखंड़ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में भी इस दिन व्रत किया जाता है और वट वृक्ष की पूजा की जाती है। उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या तो दक्षिण भारत में ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूजा करने की मान्यता है। इसका जिक्र पुराणों में भविष्य पुराण में भी है।
वट सावित्री व्रत इन राज्यों में एक जैसा
बिहार, मध्यप्रदेश ,उत्तर प्रदेश और झारखंड में वट सावित्री व्रत से जुड़ा एक जैसा नियम है। यहां महिलाएँ ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट वृक्ष की पूजा कर व्रत रखती है और पति और संतान के दीर्घायु की कामना करती है। इस दिन यहां वट वृक्ष की 12 या 108 बार परिक्रमा करने का विधान है। व्रत सामग्री में मीठा पुआ, आटा से बनाया वर, पुड़ी , चना, खरबूजा, आम, खीरा और हाथ से बने बांस के पंखे को रखकर पूजा की जाती है और व्रत रखकर कथा सुनती है। वट वृक्ष के फल से पानी के साथ व्रत को तोड़ती है।
राजस्थान में वट सावित्री व्रत
राजस्थान में भी अमावस्या तिथि का बहुत महत्व है। यहां भी सुहाग की रक्षा के लिए सुहागिनें व्रत रखती है। मिठाई , फल और चुरमा से पूजा करती है। साथ में 108 परिक्रमा भी वट वृक्ष की करके सदा सुहाग रहने की कामना करती है। इस दिन राजस्थान में दाल बाटी और चूरमा बनाकर व्रत तोड़ा जाता है।
महाराष्ट्र-गुजरात में वट सावित्री व्रत
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को महाराष्ट्र-गुजरात में वट सावित्री का व्रत रखा जाता है जो 13 और 14 जून को है और वट सावित्री की पूजा के साथ वट वृक्ष की 108 परिक्रमा की जाती है। महाराष्ट्र में इस दिन पोरणपोली बनाया जाता है। सुहागिनें एक-दूसरे को सुहाग देती है।
उड़ीसा में वट सावित्री व्रत
उड़ीसा में भी सावित्री व्रत रख कर सुहाग की रक्षा के लिए सुहागिने कामना करती है और पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है। वट वृक्ष में धागा बांधकर 108 परिक्रमा करती है। पुराणो में कहा गया है कि वट सावित्री व्रत करने से एक साथ त्रिदेव का आशीर्वाद मिलता है। इस वृक्ष में ब्रह्मा विष्णु महेश का वास होता है।
वट सावित्री व्रत में क्या खाया जाता है?
सावित्री ने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी सुध-बुध छोड़ दी थी और यमराज से प्राणों की रक्षा की थी। वैसे ही आज कलयुग में भी महिलाएं अपने पति और परिवार की रक्षा के लिए व्रत उपवास करती हैं। वट सावित्री के दिन व्रत रखकर माता सावित्री से अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती है। पौराणिक कथा के माध्यम से पता चलता है कि सावित्री ने कैसे पति के प्राणों की रक्षा की, लेकिन आज के समय में इस व्रत में उपवास और पूजा के साथ किन चीजों का सेवन करना चाहिए जानते हैं।
वट सावित्री का व्रत अन्य व्रतों से थोड़ा अलग है। इस व्रत में पूरे दिन व्रत नहीं रखा जाता है। लेकिन कहीं-कहीं लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं। खासकर यूपी , पंजाब हरियाणा और राजस्थान में इस व्रत को पूरे विधि-विधान से रखा जाता है।इस दिन पूजा में जो चढ़ाया जाता है,उसे ही खाया जाता है।
आम,चना, खरबूजा, पुरी , गुलगुला पुआ से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। व्रत के संपन्न होने के बाद इन्ही चीजों को प्रसाद के रुप में खाते हैं।
इन चीजों का ऐसे करते हैं सेवन
व्रत के दौरान और पूजा के बाद चने को सीधे निगला जाता है और बाद में चने की सब्जी बनाकर खाई जाती है। इसी तरह आम और आम का मुरब्बा, खरबूजा की पूजा करते हैं और प्रसाद खाते हैं। आम को चढ़ाकर उसका मुरब्बा बनाकर खाया जाता है। खरबूजे को भी व्रत के दौरान खाते हैं। ऐसी मान्यता है कि वट सावित्री के व्रत के दौरान सत्यवान-सावित्री की कथा महात्मय को सुनकर जो विधि-विधान से पूजा करता है। फिर उपरोक्त चीजों का सेवन करता है।उनका सुहाग अमर हो जाता है।
वट सावित्री व्रत बहुत शुभ संयोग
रविवार 29 मई 02:55 PM से शुरू होकर अमावस्या 30 मई सोमवार 05:00 PM पर समाप्त होगी। इस दिन सोमवती अमवास्या, शनि जयंती और वट पूजा का अद्भुत संयोग है।
अमृत काल -नहीं
अभिजीत मुहूर्त- 11:57 AM से 12:50 PM
विजय मुहूर्त- 02:12 PM से 03:06 PM
ब्रह्म मुहूर्त- 04:08 AM से 04:56 AM
सर्वार्थसिद्धि योग - 30 मई 07:12 AM से 31 मई 05:45 AM
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