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Vat Savitri Vrat 2022 Puja: सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा महत्व, जानिए किस मुहूर्त में नहीं करनी चाहिए पूजा

Vat Savitri Vrat 2022 Puja Vidhi & Mahatva: कहते हैं कि जब सत्यवान को यमराज ने जीवित कर दिया तब सावित्री ने बरगद के पेड का फल खाकर इस दिन जल से व्रत तोड़ा था, तभी से यह व्रत मनाया जाता है और वट की पूजा की जाती है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 29 May 2022 8:31 AM IST (Updated on: 29 May 2022 8:31 AM IST)
Vat Savitri Vrat 2022 Puja Vidhi & Mahatva
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सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Vat Savitri Vrat 2022 Puja Vidhi & Mahatva

वट सावित्री व्रत पूजा-विधि और महत्व

वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat ) 30 मई सोमवार को कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन व्रत किया जाएगा। अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु के लिए रखे जाने इस व्रत में वट के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं। मान्यता है कि वट के वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है और इसी वट सावित्री के दिन ही यमराज से लड़कर अपने पति सत्यवान की जान बचाई थी।

वट सावित्री व्रत बहुत शुभ संयोग

रविवार 29 मई 02:55 PM से सोमवार 30 मई, 05:00 PM तक अमवास्या तिथि रहेगी।

अमृत काल -नहीं

अभिजीत मुहूर्त- 11:57 AM से 12:50 PM

विजय मुहूर्त- 02:12 PM से 03:06 PM

ब्रह्म मुहूर्त- 04:08 AM से 04:56 AM

सर्वार्थसिद्धि योग -30 मई 07:12 AM से 31 मई 05:45 AM

वट सावित्री व्रत वटवृक्ष की पूजा महत्व

धर्मानुसार वट वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, बीच में विष्णु और आगे के भाग में शिव रहते हैं। है। बरगद का पेड़ स्वर्ग से आया देव वृक्ष है। देवी सावित्री भी इस वृक्ष में निवास करती हैं। कथानुसार, वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया था, तब से ये व्रत 'वट सावित्री' के नाम से जाना जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियां अखंड सौभाग्य के लिए वट की पूजा करती हैं। वट की परिक्रमा में 108 बार कच्चा सूत लपेटकर परिक्रमा कर कथा सुनती हैं। सावित्री की कथा सुनने से पति के संकट दूर होते हैं।

वट सावित्री के दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा करती हैं। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास रहता है। वट वृक्ष कभी ना क्षय होने वाला पेड़ है जो सदियों तक रहता है। इस वृक्ष के नीचे सबसे अधिक ऑक्सीजन मिलता है। सावित्री ने इस वृक्ष के नीचे अपने मृत पति सत्यवान को लिटाया था और अपने सूझबूझ और धैर्य से यमराज से सुहाग की रक्षा की थी और जान बचाई थी। कहते हैं कि जब सत्यवान को यमराज ने जीवित कर दिया तब सावित्री ने बरगद के पेड का फल खाकर इस दिन जल से व्रत तोड़ा था, तभी से यह व्रत मनाया जाता है और वट की पूजा की जाती है। बरगद के पेड़ के पत्ते में भगवान शिव ने मार्कंडेय ऋषि को दर्शन दिए थे।

वट सावित्री व्रत अखंड सुहाग सुहागिन महिलाएं रखती हैं क्योंकि इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचा लिए थे। कहा जाता है कि सत्यवान राजपाट छिनने के बाद अपनी पतिव्रता पत्नी सावित्री के साथ साधारण जीवन यापन कर रहे थे। एक दिन जंगल में लकड़ी काटते समय यमराज आए और सत्यवान के प्राण हर लिए और अपने साथ लेकर जाने लगे। इस पर सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल दी। सावित्री का अपने अक्षय और अखण्ड सुहाग के लिए यह तप देखकर यमराज प्रसन्न हो गए।

उन्होंने कहा तुम क्या मांगना चाहती हो तो सावित्री पहले अपने अंधे माता-पिता के नेत्र ठीक करने का वरदान मांगा। इसके बाद अपना खोया हुआ राजपाट मांगा और फिर पुत्रवती होने का वरदान मांगा। यमराज ने सावित्री को यह वरदान तथास्तु कह कर दे दिये। थोड़ी दूर आगे चलने के बाद यमराज ने जब फिर पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री अभी भी पीछे चली आ रही थीं इस पर यमराज ने पूछा कि अब क्या बात है, तो सावित्री बोलीं कि आप मेरे पति के प्राण तो हर कर ले जा रहे हैं अब मैं पुत्रवती कैसे होउंगी। इस पर यमराज असमंजस में पड़ गए। हारकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। जिस जगह ये वाकया हुआ वहां वट वृक्ष था, तभी से वट सावित्री पूजन अक्षय सुहाग के लिए किया जाने लगा।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

वट सावित्री व्रत की पूजा इस मुहूर्त में ना करें

के अनुसार राहुकाल, यमगण्ड दुर्महूर्त और गुलिक काल को शुभ योगों में नहीं गिना जाता है, साथ ही सुबह 7:24 AM – 9:04 AM तक राहुकाल में, सुबह 10:44 AM – 12:24 PM तक यमगण्ड में, सुबह 12:50 PM – 01:44 PM, 03:30 PM – 04:23 PM तक दुर्मुहूर्त में, - दोपहर 13:37:25 से 15:19:19 तक तक गुलिक काल में वट सावित्री व्रत की पूजा ना करें।

वट सावित्री व्रत सामग्री (Vat Savitri Vrat 2022 samagri)

पहली बार व्रत कर रहीं विवाहिताओं के लिए अधिक परेशानी है, क्योंकि उनकी पूजा विधि-विधान से नहीं हो पाएगी। इस व्रत के नियमों का पालन जरूरी होता है। वट सावित्री का व्रत रखने के लिए माता सावित्री की मूर्ति, बांस का पंखा, बरगद पेड़, लाल धागा, कलश, मिट्टी का दीपक, मौसमी फल, पूजा के लिए लाल कपड़े, सिंदूर-कुमकुम और रोली, चढ़ावे के लिए पकवान, अक्षत, हल्दी, सोलह श्रृंगार व पीतल का पात्र जल अभिषेक के लिए होनी चाहिए।

वट सावित्री पूजा विधि (Vat Savitri Vrat puja vidhi)

वट सावित्री व्रत के दिन सूर्योदय से पहले प्रात:काल पूरे घर की सफाई करके स्नान के बाद सम्पूर्ण घर को गंगाजल का छिड़काव करने से सकारात्मकता बढ़ती है। उसके बाद एक बांस की टोकरी में वट सावित्री व्रत की पूजा की सामग्री (सत्यवान – सावित्री की तस्वीर या मूर्ति, बॉस का पंखा, लाल धागा, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फूल, फल, चना, रोली, कपडा, सिंदूर, जल से भरा हुआ पात्र) को व्यवस्थित कर लें। उसके बाद वट वृक्ष के आस – पास भी सफाई कर लें, फिर वट सावित्री व्रत की पूजा शुरू कर दें। पहले पूजा स्थल पर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें। अब धूप, रोली, सिंदूर व दीप जलाकर पूजा करें।

लाल रंग का कपडा सावित्री और सत्यवान को अर्पित करें और फूल समर्पित करें। बांस के पंखे से सावित्री और सत्यवान को हवा करें। पंखा करने के बाद वट वृक्ष के तने पर कच्चा धागा लपेटते हुए 5, 11, 21, 51 या 108 बार परिक्रमा करें । परिक्रमा करेने के पश्चात वट सावित्री व्रत की कथा सुने।

वट सावित्री व्रत के दिन राशि के अनुसार पहने कपड़े


वट सावित्री व्रत के दिन मेष, वृश्चिक और मकर राशि की महिलाएं लाल रंग साड़ी और लाल रंग के लिपस्टिक का इस्तेमाल पूजा के दौरान करें।

वट सावित्री व्रत के दिन वृष , कन्या और मीन राशि की महिलाएं हल्के रंग या हल्का गुलाबी रंग की साड़ी और न्यूड लिपस्टिक का इस्तेमाल पूजा के समय करें।

वट सावित्री व्रत के दिन मिथुन, सिंह और धनु राशि की महिलाएं पीले रंग की साड़ी और हल्का गुलाबी लिपस्टिक का इस्तेमाल पूजा के समय करें।

वट सावित्री व्रत के दिन कर्क, तुला और कुंभ राशि की महिलाएं नीले रंग की साड़ी और हल्का बैंगनी लिपस्टिक का इस्तेमाल पूजा के समय करें।

वट सावित्री व्रत और सौभाग्य की पिटारी

सावित्री व्रत के समय पूजा के पश्चात प पान, सिन्दूर तथा कुमकुम से सौभाग्यवती महिलाओ के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं। पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।

अब निम्न श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें-

अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।

पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।

त्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें।

इसके बाद निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना करें-

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।

तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।

अंत में निम्न संकल्प लेकर उपवास रखें -

मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं

सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।

फिर यम मंत्र से अमर सुहाग की कामना करेंगे तो अच्छा रहेगा।

ॐ सूर्य पुत्राय विद्महे | महाकालाय धीमहि | तन्नो यमः प्रचोदयात ||

इन मंत्रों और इस विधि से पूजा करने से व्रत का दोगुना फल मिलता है। परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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