Vat Savitri Vrat: जरूर जानें सौभाग्य देने वाले इस चमत्कारी व्रत की कथा, जानिए क्या खाते हैं इस दिन

Vat Savitri Vrat वट सावित्री के दिन जो महिलाएं सच्चे मन से व्रत करती हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 1 Jun 2021 6:43 AM GMT (Updated on: 1 Jun 2021 9:04 AM GMT)
मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखती है। कहा जाता है कि वटवृक्ष की जड़
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सांकेतिक तस्वीर( सौ. से सोशल मीडिया)

वट सावित्री (Vat Savitri Vrat )

ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन महिलाएं अखंड सुहाग की रक्षा के लिए वट सावित्री का व्रत करती है। इस बार 10 जून के दिन अमावस्या और वट सावित्री का व्रत है। वट सावित्री की पूजा और व्रत कर महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा करती है। सावित्री जिसने यमराज से लड़कर अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी और अपने सास-ससुर और ससुराल के गौरव की रक्षा सत्यता से की थी।

कहते हैं कि इस दिन व्रत रखकर जो महिलाएं सच्चे मन से इस व्रत करती हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। लेकिन इस बार लॉकडाउन और कोरोना की दूसरी लहर के कारण नवविवाहितों का उत्साह व्रत को लेकर कम है। लॉकडाउन से बाजार मंदा है और घर से निकलना भी मुश्किल इसलिए इस बार घर में ही पूजा की जाएगी।

वट के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं इस दिन रक्षा सूत्र बांधते हुए पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं। मान्यता है कि वट के वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। वट सावित्री के दिन ही सावित्री ने यमराज से लड़कर अपने पति सत्यवान की जान बचाई थी।बुधवार 09 जून दोपहर 01 बजकर 57 मिनट पर अमावस्या तिथि शुरू होगी 10 जून गुरुवार शाम 04 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन इस बीच वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है।

सांकेतिक तस्वीर( सौ. से सोशल मीडिया)

वट सावित्री व्रत की कथा (Vat Savitri Vrat Religious Story)

वट सावित्री की धार्मिक कथा के अनुसार मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था। उनकी कोई भी संतान नहीं थी। राजा ने संतान हेतु यज्ञ करवाया। कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। विवाह योग्य होने पर सावित्री के लिए द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में वरण किया। सत्यवान वैसे तो राजा का पुत्र था लेकिन उनका राज-पाट छिन गया था और अब वह बहुत ही द्ररिद्रता का जीवन जीने लगे थे। उसके माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी। सत्यवान जंगल से लकड़ी काटकर लाते और उन्हें बेचकर जैसे-तैसे अपना गुजारा कर रहे थे।

सत्यवान और सावित्री की शादी

जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली तो नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। हालांकि राजा अश्वपति सत्यवान की गरीबी को देखकर पहले ही चिंतित थे और सावित्री को समझाने की कोशिश में लगे थे। नारद की बात ने उन्हें और चिंता में डाल दिया ।लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही। अंततः सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही।

सांकेतिक तस्वीर( सौ. से सोशल मीडिया)

सास-ससुर के आंखों को सावित्री ने रौशन कराया

नारद मुनि ने सत्यवान की मृत्यु का जो दिन बताया था, उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को चली गई। वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ देर बाद उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज खड़े हुए थे। जब यमराज सत्यवान के जीवात्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, 'हे पतिव्रता नारी! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया। अब तुम लौट जाओ' इस पर सावित्री ने कहा, 'जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यही सनातन सत्य है' यमराज सावित्री की वाणी सुनकर प्रसन्न हुए और उसे वर मांगने को कहा। सावित्री ने कहा, 'मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें' यमराज ने 'तथास्तु' कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे किंतु सावित्री यम के पीछे ही चलती रही । यमराज ने प्रसन्न होकर पुन: वर मांगने को कहा। सावित्री ने वर मांगा, 'मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए' यमराज ने 'तथास्तु' कहकर पुनः उसे लौट जाने को कहा, परंतु सावित्री अपनी बात पर अटल रही और वापस नहीं गयी।

सावित्री ने पति के प्राण बचाये

सावित्री की पति भक्ति देखकर यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री से एक और वर मांगने के लिए कहा तब सावित्री ने वर मांगा, 'मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें' सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया और अदृश्य हो गए। सावित्री जब उसी वट वृक्ष के पास आई तो उसने पाया कि वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हो रहा है। कुछ देर में सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखें भी ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया।


सांकेतिक तस्वीर( सौ. से सोशल मीडिया)


वट सावित्री व्रत में खान पान

सावित्री ने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी सुध-बुध छोड़ दी थी और यमराज से प्राणों की रक्षा की थी। वैसे ही आज कलयुग में भी महिलाएं अपने पति और परिवार की रक्षा के लिए व्रत उपवास करती हैं। वट सावित्री के दिन व्रत रखकर माता सावित्री से अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती है। पौराणिक कथा के माध्यम से पता चलता है कि सावित्री ने कैसे पति के प्राणों की रक्षा की, लेकिन आज के समय में इस व्रत में उपवास और पूजा के साथ किन चीजों का सेवन करना चाहिए जानते हैँ...

वट सावित्री का व्रत अन्य व्रतों से थोड़ा अलग है। इस व्रत में पूरे दिन व्रत नहीं रखा जाता है। लेकिन कहीं-कहीं लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं। खासकर यूपी , पंजाब हरियाणा और राजस्थान में इस व्रत को पूरे विधि-विधान से रखा जाता है।इस दिन पूजा में जो चढ़ाया जाता है,उसे ही खाया जाता है।आम,चना, खरबूजा, पुरी , गुलगुला पुआ से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। व्रत के संपन्न होने के बाद इन्ही चीजों को प्रसाद के रुप में खाते हैं।

इन चीजों का ऐसे करते हैं सेवन

व्रत के दौरान और पूजा के बाद चने को सीधे निगला जाता है और बाद में चने की सब्जी बनाकर खाई जाती है। इसी तरह आम और आम का मुरब्बा, खरबूजा की पूजा करते हैं और प्रसाद खाते हैं। आम को चढ़ाकर उसका मुरब्बा बनाकर खाया जाता है। खरबूजे को भी व्रत के दौरान खाते हैं।

ऐसी मान्यता है कि वट सावित्री के व्रत के दौरान सत्यवान-सावित्री की कथा महात्मय को सुनकर जो विधि-विधान से पूजा करता है। फिर उपरोक्त चीजों का सेवन करता है।उनका सुहाग अमर हो जाता है।




Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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