TRENDING TAGS :
प्राचीन काल से पर्यावरण प्रदूषण का अचूक समाधान है वैदिक यज्ञ
पं. योगेश शर्मा
दिल्ली के लोग इन दिनों प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। हालत इतनी गंभीर हो चुकी है कि दिल्ली के स्कूल बंद कर दिए गए हैं व लोगों को आगाह किया जा रहा है कि वह आवश्यक होने पर ही घर से बाहर निकलें। इस प्रदूषण के कारण अस्थमा के मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस समस्या का अचूक समाधान हमारे देश में प्राचीन काल से माना जाता है और वह समाधान है वैदिक यज्ञ। भारतीय सनातन संस्कृति में यज्ञ का बहुत बड़ा आध्यात्मिक महत्व है, लेकिन क्या आप जानते है यज्ञ से हमारा प्रदूषित पर्यावरण भी स्वच्छ होता है। जानिये विश्व के विभिन्न वैज्ञानिकों का यज्ञ पर विश्लेषण एवं यज्ञ से कैसे पर्यावरण शुद्ध होता है और क्या है यज्ञ का वैज्ञानिक महत्व।
यज्ञ के लाभ
नवरात्र हो या दीपावली, हर पूजा के बाद यज्ञ करने का नियम है। इसके पीछे आमतौर पर धार्मिक कारण माना जाता है जबकि इसका एक बड़ा वैज्ञानिक कारण भी है। यज्ञ के समय जलाई जाने वाली सामग्री रोग उपचार के काम भी आती है। सामान्य तौर पर जलाई गई अग्नि के अपने परिणाम हैं। उससे वस्तु, व्यक्ति और उपकरणों को गरम किया जा सकता है, लेकिन यज्ञ अग्निहोत्र में जगाई गई आंच व्यक्ति को कई रोगों से भी मुक्त करने के साथ ही उसके लिए रक्षा कवच का काम करती है।
यज्ञ के चिकत्सीय पहलू
प्राचीन समय से ही लोग आयुर्वेदिक पौधों के धुएं का प्रयोग विभिन्न बीमारियों से निदान पाने के लिए करते आ रहे हैं। यज्ञ से उत्पन्न धुएं को खांसी, जुकाम, जलन, सूजन आदि बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मध्यकालीन युग में प्लेग जैसी घातक बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए धूप, जड़ी-बूटी तथा सुगन्धित पदार्थों का धूम्रीकरण किया जाता था। यज्ञ द्वारा प्राप्त हुई रोगनाशक उत्तम औषधियों की सुगन्ध प्राणवायु सीधे हमारे रक्त को प्रभावित कर शरीर के समस्त रोगों को नष्ट कर देती है तथा हमें स्वस्थ और सबल बनाती है। तपेदिक का रोगी भी यदि यक्ष्मानाशक औषधियों से प्रतिदिन यज्ञ करे तो औषधि सेवन की अपेक्षा बहुत जल्दी ठीक हो सकता है।
वेदों में कहा गया है-हे मनुष्य! मैं तेरे जीवन को स्वस्थ, निरोग तथा सुखमय बनाने के लिए तेरे शरीर में जो गुप्त रूप से छिपे रोग है, उनसे और राजयक्ष्मा (तपेदिक) जैसे असाध्य रोग से भी यज्ञ की हवियों के जरिये छुड़ाता हूं। विभिन्न रोगों की औषधियों द्वारा किया हुआ यज्ञ जहां उन औषधियों की रोगनाशक सुगन्ध नासिका तथ रोम कूपों द्वारा सारे शरीर में पहुंचाता है वहीं यज्ञ के पश्चात यज्ञशेष को प्रसाद रूप में खिलाकर औषधि सेवन का भी काम करता है। इससे रोग के कीटाणु बहुत जल्दी नष्ट हो जाते हैं।
वेदों में कहा गया है कि-हे मनुष्य, यह यज्ञ में प्रदान की हुई रोगनाशक हवि तेरे रोगोत्पादक कीटाणुओं को तेरे शरीर में से सदा के लिए बाहर निकाल दे अर्थात् यज्ञ की रोगनाशक गंध शरीर में प्रविष्ट होकर रोग के कीटाणुओं के विरुद्ध अपना कार्य कर उन्हें नष्ट कर देती है। अग्निहोत्र से पौधों को पोषण मिलता है, जिससे उनकी आयु में वृद्धि होती है। अग्निहोत्र जल के स्रोतों को भी शुद्ध करता है।
यज्ञ से हवा में जीवाणुओं की संख्या घटी
यज्ञ के उपरान्त वायु में धूम्रीकरण के प्रभाव को वैज्ञानिक रूप से सत्यापित करने के लिए डॉ. सी.एस.नौटियाल, निदेशक, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ व अन्य शोधकर्ताओं ने वायु प्रतिचयन यंत्र का प्रयोग किया। उन्होंने यज्ञ से पूर्व वायु का नमूना लिया तथा यज्ञ के उपरान्त एक निश्चित अन्तराल में 24 घंटे तक वायु का नमूना लिया और पाया कि यज्ञ के उपरान्त वायु में उपस्थित वायुजनित जीवाणुओं की संख्या कम थी।
आंकड़ों के अनुसार औषधीय धुएं से 60 मिनट में 94 प्रतिशत वायु में उपस्थित जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। सुगन्धित और औषधीय धुएं से अनेक पौधों के रोग जनक जीवाणु को नष्ट किया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में 57 लाख मृत्यु में से 15 लाख वायुजनित संक्रमित रोगों के कारण होती है। औषधीय धुएं से मनुष्य में रोग फैलाने वाले रोगजनक जीवाणुओं जैसे-कॉर्नीबैक्टीरियम यूरीलाइटिकम, कॉकूरिया रोजिया, स्टेफाइलोकोकस लैन्टस आदि को नष्ट किया जा सकता है।
सुगन्धित तथा औषधीय धुएं का प्रयोग त्वचा संबंधी तथा मूत्र-तन्त्र सम्बन्धी विकारों को दूर करने में भी किया जाता है। शोधकर्ता ने क्षय, श्वास और फेफड़े की कुछ बीमारियों को अग्निहोत्र से ठीक करने में खासी कामयाबी हासिल की है। आहुतियों में वनौषधियों के प्रयोग के प्रभाव का उल्लेख करते हुए ओहिजनबर्ग यूनिवर्सिटी के शोध अनुसंधान में लगे प्रो.अर्नाल्ड रदरशेड ने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र में एक नई विधा जुड़ सकती है जिसे यज्ञोपैथी नाम दिया जा सकता है।
हवन की राख खा रहे अमेरिकी
भारत को थोड़ी देरी में समझ आएगा यह सब, लेकिन तब तक शायद देर न हो जाए। एक ओर हमारी युवा पीढ़ी आधुनिकता की दौड़ में अंधी होकर अपनी श्रेष्ठ संस्कृति को भुलाकर पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने में लगी हुई है और वहां वो लोग यज्ञ की राख को पानी व शहद के साथ या कैप्सूल बनाकर खा रहे हैं। देसी गाय के घी और गोबर से यज्ञ करने पर अमेरिका, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया के लोगों ने पाया है कि उनके सभी रोग खत्म हो रहे है।
जापान ने यह भी पाया है कि यज्ञ करने से नुकसान करने वाली न्यूक्लीअर रेडिएशन भी खत्म हो जाती है। भारत में भी भोपाल गैस कांड में दो परिवार-कुशवाहा परिवार और प्रजापति परिवार ऐसे थे जिनको कुछ नहीं हुआ जबकि वे गैस लीक वाली जगह के निकट ही थे। तब वैज्ञानिको ने अनुसंधान किया तो पता लगा कि उन्होंने अपना घर देसी गाय के गोबर से लीप रखा था और वो रोज देसी गाय के घी और गोबर से यज्ञ करते थे जिससे गैस का प्रभाव खत्म हो गया।
यज्ञ के विषय में वैज्ञानिकों के निष्कर्ष
डॉ. एम.ट्रेल्ट ने मुनक्का, किशमिश आदि फलों को जलाकर देखा तब उन्हें ज्ञात हुआ कि इनके धुएं से टाइफाइड के रोग कीट 30 मिनट में और दूसरे रोगों के कीट घंटे-दो घंटे में नष्ट हो जाते हैं। फ्रांस के डॉ.हैफकिन का कहना है कि यज्ञ में घी जलाने से रोग के कीट मर जाते हैं। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक बेरी रैथनर का कहना है कि अग्निहोत्र वायुमंडल में एक विशिष्ट ढंग का प्रभाव उत्पन्न करता है और उसका मानव मन पर चिकित्सकीय प्रभाव पड़ता है।
उस चिकित्सकीय प्रभाव की आयुर्वेद में स्पष्ट चर्चा मिलती है। हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुए एक समाचार में कहा गया है कि लखनऊ के राहुल कर्मकर ने सिद्ध किया है कि भारतीय यज्ञ परम्परा मात्र कुछ यौगिक पदार्थों का जलाना मात्र नहीं है। यह हवा में घुले सल्फर डाईऑक्साइड तथा नाइट्रोसऑक्साइड को नष्ट करते हैं। साथ ही जल के विषाणुओं को भी नष्ट करते हैं। इसीलिए हमें रोज यज्ञ करना चाहिए।
नष्ट हो जाते हैं 94 प्रतिशत जीवाणु
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक चन्द्रशेखर नौटियाल ने बताया कि लकड़ी और औषधीय जड़ी बूटियां, जिन्हें आम भाषा में हवन सामग्री कहा जाता है, को साथ मिलाकर जलाने से वातावरण में शुद्धता आने के साथ ही हानिकारक जीवाणु 94 प्रतिशत तक नष्ट हो जाते हैं। डा नौटियाल का इस संबंध में किया गया शोध कार्य सन डायरेक्ट अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ने प्रकाशित किया है।
फग्र्युसन महाविद्यालय के बायोटेक्नोलोजी विभाग एवं रमणबाग विद्यालय में अग्निहोत्र के प्रयोग किए गए। प्रणय अभंग ने कहा कि अग्निहोत्र की ताजी राख एक कॉलम में ली गई। इसमें नदी का 500 मिलीलीटर प्रदूषित जल छोड़ा गया। बाद में जल का प्रदूषण 80 प्रतिशत कम हो गया। फसल बढऩा तथा बीजों के अंकुर फूटने के संदर्भ में अग्निहोत्र का प्रयोग करने पर अच्छे परिणाम मिले।
एक ही प्रकार व समान ऊंचाई वाले दो पौधों को अलग-अलग रखा गया। दोनों पौधों को समान सूर्य प्रकाश एवं जल उपलब्ध कराया गया। इसमें एक कक्ष में अग्निहोत्र किया गया। परिणाम दिखाई दिया कि जिस कक्ष में अग्निहोत्र किया गया, उस कक्ष में पौधों की बाढ़ अच्छी हुई। मंत्रोच्चार के साथ किए गए अग्निहोत्र एवं बिना मंत्रोच्चार के किए गए अग्निहोत्र का भी पौधों के बढऩे पर असर दिखा। पाया गया कि मंत्रोच्चार के साथ किए गए अग्निहोत्र के कारण पौधे की बाढ़ अच्छी रही।