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विजया एकादशी दिलाती है हर क्षेत्र में विजय, कैसे करें पूजा जानें यहां
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को विजया एकादशी का महत्व बताते हुए कहा था हे अर्जुन इस व्रत के विधान को सुनने और पढ़ने मात्र से व्यक्ति के समस्त पापों का अंत हो जाता है। देवर्षि नारद ने जब ब्रह्माजी से विजया एकादशी व्रत के महात्मा के बारे में पूछा तो ब्रह्मा जी ने कहा मैंने आज तक विजया एकादशी के व्रत को करने की विधि किसी को नहीं बताई आज तुमने पूछा है तो मैं तुमको यह परम गोपनीय रहस्य बताता हूं।
प. रामकृष्ण वाजपेयी
वैसे तो सभी एकादशी का अपना महत्व है लेकिन विजया एकादशी सभी एकादशियों में श्रेष्ठ है। आज विजया एकादशी है। कहा जाता है कि विजया एकादशी का व्रत रहने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत के व्रती को सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है।
पौराणिक ग्रंथों में यह बताया गया है कि भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए समुद्र के किनारे विजया एकादशी का व्रत कर पूजा की थी जिसके प्रताप से उन्हें लंका पर विजय प्राप्त हुई।
भगवान श्री राम को वकदालभ्य ऋषि ने सेनापतियों के साथ समुद्र के किनारे यह व्रत करने की प्रेरणा दी थी, इसी के कारण भगवान राम लंकापति रावण पर विजय प्राप्त करने में समर्थ हुए।
कहां जाता है जो कोई भी इस व्रत को करता है उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
परम गोपनीय रहस्य
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को विजया एकादशी का महत्व बताते हुए कहा था हे अर्जुन इस व्रत के विधान को सुनने और पढ़ने मात्र से व्यक्ति के समस्त पापों का अंत हो जाता है। देवर्षि नारद ने जब ब्रह्माजी से विजया एकादशी व्रत के महात्मा के बारे में पूछा तो ब्रह्मा जी ने कहा मैंने आज तक विजया एकादशी के व्रत को करने की विधि किसी को नहीं बताई आज तुमने पूछा है तो मैं तुमको यह परम गोपनीय रहस्य बताता हूं।
ब्रह्माजी ने कहा विजया एकादशी के उपवास के लिए दशमी के दिन स्वर्ण, चांदी, तांबा या मिट्टी का एक कलश बनाना चाहिए, उस कलश में जल भरकर उसके ऊपर पल्लव रखकर उसे वेदिका पर स्थापित कर देना चाहिए लेकिन इसके पहले कलश के नीचे सात अनाज रखने चाहिए और कलश के ऊपर जौं, इसके बाद कलश के ऊपर भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। एकादशी के दिन स्नान और नित्य क्रिया से निवृत्त होकर धूप दीप नैवेद्य से भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद सारा दिन और सारी रात उनका स्मरण करते रहना चाहिए। अगले दिन द्वादशी को तालाब या नदी में स्नान कर इस कलश को ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए।
भगवान श्रीराम ने इस व्रत को अपने सेनापतियों के साथ किया था और उन्हें लंका पर विजय प्राप्त हुई, अर्जुन ने इस व्रत को किया और चतुर्दिक विजय पाई, जो भी इस व्रत को नियम पूर्वक करता है उसे जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। दिन भर भगवान विष्णु की भक्ति और रात्रि जागरण व्यक्ति अपने कुटुंब के साथ मिल कर भी कर सकता है। निश्चय ही उसकी समस्त मनोकामनाएं पूरी होंगी।