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Prabhu Shri Ram: जब प्रेत ने प्रभु श्री राम जी का तुलसीदास जी को कराया दर्शन

Prabhu Shri Ram: गोस्वामीजी बोले – भैया, हमारे मन तो केवल एक ही चाह है कि ठाकुर जी का दर्शन हमें हो जाए। राम की कथा तो हमने लिख दी है, गा दी है। पर दर्शन अभी तक साक्षात् नहीं हुआ है। ह्रदय में तो होता है पर साक्षात् नहीं होता।

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Published on: 9 July 2023 3:09 PM GMT
Prabhu Shri Ram: जब प्रेत ने प्रभु श्री राम जी का तुलसीदास जी को कराया दर्शन
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Prabhu Shri Ram (Pic: Social Media)

Prabhu Shri Ram: काशी में एक जगह पर तुलसीदास रोज रामचरित मानस को गाते थे वो जगह थी अस्सी घाट। उनकी कथा को बहुत सारे भक्त सुनने आते थे। लेकिन एक बार गोस्वामी प्रातःकाल शौच करके आ रहे थे तो कोई एक प्रेत से इनका मिलन हुआ। उस प्रेत ने प्रसन्न होकर गोस्वामीजी को कहा कि मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ। आपने जो शौच के बचे हुए जल से जो सींचन किया है मैं तृप्त हुआ हूँ। मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ।

गोस्वामीजी बोले – भैया, हमारे मन तो केवल एक ही चाह है कि ठाकुर जी का दर्शन हमें हो जाए। राम की कथा तो हमने लिख दी है, गा दी है। पर दर्शन अभी तक साक्षात् नहीं हुआ है। ह्रदय में तो होता है पर साक्षात् नहीं होता। यदि दर्शन हो जाए तो बस बड़ी कृपा होगी। उस प्रेत ने कहा कि महाराज! मैं यदि दर्शन करवा सकता तो मैं अब तक मुक्त न हो जाता? मैं खुद प्रेत योनि में पड़ा हुआ हूँ, अगर इतनी ताकत मुझमें होती कि मैं आपको दर्शन करवा देता तो मैं तो मुक्त हो गया होता अब तक।

तुलसीदास जी बोले – फिर भैया हमको कुछ नहीं चाहिए। तो उस प्रेत ने कहा – सुनिए महाराज! मैं आपको दर्शन तो नहीं करवा सकता लेकिन दर्शन कैसे होंगे उसका रास्ता आपको अवश्य बता सकता हूँ। तुलसीदास जी बोले कि बताइये। बोले आप जहाँ पर कथा कहते हो, बहुत सारे भक्त सुनने आते हैं, अब आपको तो मालूम नहीं लेकिन मैं जानता हूँ आपकी कथा में रोज हनुमानजी भी सुनने आते हैं। मुझे मालूम है हनुमानजी रोज आते हैं।

बोले कहाँ बैठते हैं? बताया कि सबसे पीछे कम्बल ओढ़कर, एक दीन हीन एक कोढ़ी के स्वरूप में व्यक्ति बैठता है और जहाँ जूट चप्पल लोग उतारते हैं वहां पर बैठते हैं। उनके पैर पकड़ लेना वो हनुमान जी ही हैं।गोस्वामीजी बड़े खुश हुए हैं। आज जब कथा हुई है गोस्वामीजी की नजर उसी व्यक्ति पर है कि वो कब आएंगे? और जैसे ही वो व्यक्ति आकर बैठे पीछे, तो गोस्वामीजी आज अपने आसन से कूद पड़े हैं और दौड़ पड़े। जाकर चरणों में गिर गए हैं।

वो व्यक्ति बोला कि महाराज आप व्यासपीठ पर हो और मेरे चरण पकड़ रहे हो। मैं एक दीन हीन कोढ़ी व्यक्ति हूँ। मुझे तो न कोई प्रणाम करता है और न कोई स्पर्श करता है। आप व्यासपीठ छोड़कर मुझे प्रणाम कर रहे हो? गोस्वामीजी बोले कि महाराज आप सबसे छुप सकते हो मुझसे नहीं छुप सकते हो। अब आपके चरण मैं तब तक नहीं छोडूंगा जब तक आप प्रभु राम जी से नहीं मिलवाओगे। जो ऐसा कहा तो हनुमानजी अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हो गए।

आज तुलसीदास जी ने कहा कि कृपा करके मुझे प्रभु राम जी से मिलवा दो। अब और कोई अभिलाषा नहीं बची। राम जी का साक्षात्कार हो जाए हनुमानजी, आप तो राम जी से मिलवा सकते हो। अगर आप नहीं मिलवाओगे तो कौन मिलवायेगा? हनुमानजी बोले कि आपको रामजी जरूर मिलेंगे और मैं मिलवाऊँगा लेकिन उसके लिए आपको चित्रकूट चलना पड़ेगा, वहाँ आपको भगवन मिलेंगे।

गोस्वामीजी चित्रकूट गए हैं। मन्दाकिनी जी में स्नान किया, कामदगिरि की परिकम्मा लगाई। अब घूम रहे हैं कहाँ मिलेंगे? कहाँ मिलेंगे? सामने से घोड़े पर सवार होकर दो सुकुमार राजकुमार आये। एक गौर वर्ण और एक श्याम वर्ण और गोस्वमीजी इधर से निकल रहे हैं।

उन्होंने पूछा कि हमको रास्ता बता दीजिए हम भटक रहे हैं। गोस्वामीजी ने रास्ता बताया कि बेटा इधर से निकल जाओ और वो निकल गए। अब गोस्वामीजी पागलों की तरह खोजते हुए घूम रहे हैं कब मिलेंगे? कब मिलेंगे? हनुमानजी प्रकट हुए और बोले कि मिले? गोस्वामीजी बोले – कहाँ मिले?

हनुमानजी ने सिर पकड़ लिया और बोले अरे अभी मिले तो थे। जो घोड़े पर सवार राजकुमार थे वो ही तो थे। आपसे ही तो रास्ता पूछा और कहते हो मिले नहीं। चूक गए और ये गलती हम सब करते हैं। न जाने कितनी बार भगवान हमारे सामने आये होंगे और हम पहचान नहीं पाए। कितनी बार वो सामने खड़े हो जाते हैं हम पहचान नहीं पाते। न जाने वो किस रूप में आ जाये।

सबका कर आदर समान जो तेरे घर आये

क्योंकि न जाने किस रूप में नारायण मिल जाये।

गोस्वामीजी कहते हैं हनुमानजी आज बहुत बड़ी गलती हो गई। फिर कृपा करवाओ। फिर मिलवाओ।हनुमानजी बोले कि थोड़ा धैर्य रखो। एक बार और फिर मिलेंगे। गोस्वामीजी बैठे हैं। मन्दाकिनी के तट पर स्नान करके बैठे हैं। स्नान करके घाट पर चन्दन घिस रहे हैं। मगन हैं और गा रहे हैं। श्री राम जय राम जय जय राम। ह्रदय में एक ही लग्न है कि भगवान कब आएंगे। और ठाकुर जी एक बार फिर से कृपा करते हैं। ठाकुर जी आ गए और कहते हैं बाबा.. बाबा… चन्दन तो आपने बहुत प्यारा घिसा है। थोड़ा सा चन्दन हमें दे दो… लगा दो।

गोस्वामीजी को लगा कि कोई बालक होगा। चन्दन घिसते देखा तो आ गया। तो तुरंत लेकर चन्दन ठाकुर जी को दिया और ठाकुर जी लगाने लगे, हनुमानजी महाराज समझ गए कि आज बाबा फिर चूके जा रहे हैं। आज ठाकुर जी फिर से इनके हाथ से निकल रहे हैं। हनुमानजी तोता बनकर आ गए शुक रूप में और घोषणा कर दी कि

चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर।

तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।

हनुमानजी ने अत्यंत करुणरस में इशारा किया कि अब मत चूक जाना। आज जो आपसे चन्दन ग्रहण कर रहे हैं ये साक्षात् रघुनाथ हैं और जो ये वाणी गोस्वामीजी के कान में पड़ी तो गोस्वामीजी चरणों में गिर गए ठाकुर जी तो चन्दन लगा रहे थे। बोले प्रभु अब आपको नहीं छोडूंगा।

जैसे ही पहचाना तो प्रभु अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हो गए हैं और बस वो झलक ठाकुर जी को दिखाई दी है। ठाकुर जी अंतर्ध्यान हो गए और वो झलक आखों में बस गई ह्रदय तक उतरकर। फिर कोई अभिलाषा जीवन में नहीं रही है। परम शांति। और इस तरह से तुलसीदास जी का राम से मिलन हनुमानजी ने करवाया है ।

(मिस्टर एस्ट्रो फेसबुक पेज से साभार)

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