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Diwali 2022: क्या आप जानते हैं दीपावली पर गणेश-लक्ष्मी साथ-साथ क्यों पूजे जाते हैं?
Diwali 2022: गणेश जी को माता लक्ष्मी का आशीर्वाद है कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें। दीवाली कार्तिक अमावस्या को मनायी जाती है।
Diwali 2022 : आज दीपावली का पर्व है। तकरीबन सभी घरों में गणेश लक्ष्मी का पूजन होगा। लोग ऐसा परंपरागत रूप से करते आ रहे हैं। कोई कहता है लक्ष्मी गणेश (Ganesha Lakshmi) की मां हैं तो कोई मौसी बताता है। क्योंकि ये सर्वविदित है कि गणेश जी माता पार्वती (Mother Parvati) के पुत्र हैं। फिर पार्वती की जगह माता लक्ष्मी गणेश जी के साथ क्यों पूजी जाती हैं। आज हम आपके इस सवाल का जवाब देंगे। आप newstrak.com को सबस्क्राइब करना न भूलें।
गणेश चालीसा में कहा गया है-
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥3॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
यानी गणेश माता पार्वती के घर में पुत्र रूप में प्रकट हुए थे। लेकिन गणेश शाश्वत हैं। वह बुद्धि के देवता हैं। ऐसा आस्थावान लोग मानते हैं। अब आपके आते हैं मूल सवाल पर कि माता लक्ष्मी और गणेश का आपस में क्या रिश्ता है, दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है
यह तो सभी जानते हैं कि समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं। भगवान विष्णु से उनका विवाह हुआ। माता लक्ष्मी धन और ऐश्वर्य की देवी हैं। लेकिन धन के देवता कुबेर हैं। लेकिन सनातन धर्म में देवता भी गलत काम करने पर दंडित होते हैं। शापित होते हैं। कुबेर धन के देवता बना दिये गए तो उन्हें घमंड हो गया। साथ ही कंजूसी भी आ गई और उन्होंने धन बाँटने का काम बंद कर दिया। और खुद धन के भंडारी बन कर अपने धन का प्रदर्शन करने लगे।
गणेश ने तोड़ा कुबेर का घमंड
पौराणिक कथा के अनुसार, जब कुबेर ने लोगों को धन संपदा बांटना बंद कर दिया तो उनको इस बात का घमंड हो गया कि उनके पास तीनों लोकों में सबसे ज्यादा धन संपत्ति है। सनातन परंपरा में धन और शक्ति का प्रदर्शन अपराध तुल्य माना जाता है। उधर अपना वैभव दिखाने के लिए कुबेर ने सभी देवताओं को अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया। वह सबसे पहले निमंत्रण लेकर कैलाश पहुंचे, जहां उन्होंने भगवान शिव को सपरिवार के साथ भोज पर आने का न्योता दिया। भगवान शिव तो त्रिकालदर्शी हैं वह कुबेर की मंशा भांप गए। उन्होंने कहा कि उनकी जगह उनका पुत्र गणेश भोजन पर चला जाएगा।
महाभोज वाले दिन कुबेर ने अपनी संपन्नता का प्रदर्शन करते हुए पकवानों को सोने-चांदी के थालों में सभी देवताओं को परसा। सभी देवता पेट भर भोजन करने के बाद वहां से विदा हुए। इसके बाद सबसे अंत में गणेश जी पहुंचे। कुबेर ने गणेश को भोजन परसा। गणेश जी ने मुस्कराते हुए खाना शुरू किया। कुबेर भोजन परसवाते रहे। काफी समय बीत गया गणेश जी खाते ही चले गए। अब कुबेर के परेशान होने की बारी थी उनका अन्न भोजन भंडार खाली होने लगा, लेकिन गणेश जी का पेट अभी नहीं भरा था। इसके बाद उन्होंने महल में जो कुछ सोना चांदी था उसे खाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में कुबेर को अपनी गलती का अहसास हुआ और गणेश के चरणों में गिर गए। तब गणेश जी ने उन्हें सद्बुद्धि दी।
इसी से जुड़ी दूसरी कथा लक्ष्मी के अहंकार की है। कहते हैं कि लक्ष्मी जी को भी अहंकार हुआ हो गया कि सारा जगत उनकी ही पूजा करता है सब उन्हें पाने के लिए परेशान रहते हैं। भगवान विष्णु ये बात समझ गए। उन्होंने कहा कि लक्ष्मी तुम्हारे अंदर एक कमी है। लक्ष्मी ने कहा क्या। भगवान विष्णु ने कहा कि जब तक कोई स्त्री मां नहीं बनती अपूर्ण रहती है। इसलिए आप अपूर्ण हैं। अब माता लक्ष्मी परेशान थीं कि उनके कोई सन्तान नहीं है जिससे उन्हें संतान की कृपा नहीं मिल रही है। उन्होंने अपनी व्यथा माता पार्वती को बताई और माता पार्वती से अपने दो पुत्रों में से एक पुत्र गणेश को पुत्र रूप में प्राप्त करने की कामना की।
माता पार्वती इसके लिए तैयार हो गईं। लेकिन जब गणेशजी के पास ये प्रस्ताव गया तो उन्होंने कहा कि माता मै आपका पुत्र बनने को तैयार हूं लेकिन मैं जिसका नाम बताऊं आपकी कृपा उस पर होनी चाहिए। लक्ष्मी जी इसके लिए तैयार हो गईं। इससे धन के स्वामी कुबेर को भी बुरा नहीं लगा। आपको बता दें कि यक्षों के राजा कुबेर भगवान विष्णु के परम भक्त हैं। इसके बाद गणेश जी लोगों के सौभाग्य में बाधक विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे। कुबेर जी भंडार का हिसाब किताब देखते रहे।
अब मूल सवाल पर आते हैं गणेश लक्ष्मी का साथ पूजन क्यों
गणेश जी को माता लक्ष्मी का आशीर्वाद है कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें। दीवाली कार्तिक अमावस्या को मनायी जाती है। भगवान विष्णु इस समय योगनिद्रा में होते हैं। वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को इस समय पृथ्वी पर भ्रमण करने आना होता है। शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिन, तो वे गणेश जी को साथ लेकर आती हैं। इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है। खासकर लोगों को गणेश जी से अपनी सिफारिश भी लगवानी होती है। ताकि उनका नाम धन पाने वालों की लिस्ट में जुड़ जाए।