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Maha shivratri Famous Shiva temple : शिव भक्त रावण की वजह से बना यह मंदिर, यहां कदम रखने मात्र से पूरी होती है हर इच्छा

Maha shivratri Famous Shiva temple : भगवान शिव एकाकार निराकार निरब्रह्म परमेश्वर है।जिनका न आदि है न अंत। वो मूर्ति और लिंग दोनों रूप में है जानिए इस मंदिर से जुड़ी कथा....

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 28 Feb 2024 8:15 AM IST (Updated on: 28 Feb 2024 11:10 AM IST)
World Famous karnataka Murudeshwar temple
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सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

World Famous temple

वर्ल्ड फेमस कर्नाटक में मुरुदेश्वर मंदिर

भारत में युगों युगों से मंदिरों का निर्माण होता आ रहा है जो सदियों तक साक्ष्य के रूप में स्थित है। सनातन धर्म में मंदिर और मूर्ति पूजा सदियों से चली आ रही है। यहां कई मंदिर स्थापित है। इन्ही मंदिरों में मुरुदेश्वर (Murudeshwar) धाम है जो शिव भगवान का मंदिर है। मुरुदेश्वर मंदिर कर्नाटक के भटकल तालुका में है। यह मंदिर भटकल नगर से लगभग 13 किमी दूर अरब सागर में स्थित है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भगवान शिव की मूर्ति है।

मुरुदेश्वर, भगवान शिव का ही एक नाम है। इस मंदिर की सबसे खास बात है कि इसके परिसर में भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति स्थापित है, जिसे दुनिया की दूसरी सबसे विशाल और ऊंची शिव प्रतिमा (मूर्ति) माना जाता है। शहर को पहले मृदेश्वर के नाम से जाना जाता था, बाद में मंदिर के निर्माण के बाद इसका नाम बदलकर मुरुदेश्वर कर दिया गया।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

मुरुदेश्वर मंदिर का रावण से संबंध

धर्मानुसार आत्म लिंग या शिव की आत्मा अजेयता और अमरता की कुंजी थी। रावण ने उसे प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की भक्तिपूर्वक प्रार्थना की थी। भक्ति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उसे आत्म लिंग प्रदान किया था। लेकिन उन्हें लंका पहुंचने से पहले जमीन पर नहीं रखना था। मगर भगवान गणेश और भगवान विष्णु ने उन्हें छल कर लिंग को जमीन पर रखवा दिया था। लिंग को गोकर्ण में जमीन पर रख दिया जिससे वह वहीं पर स्थापित हो गया। क्रोध से रावण ने लिंग को नष्ट करने की कोशिश की और हमले की ताकत से लिंग बिखर गया था। इसी क्रम में जिस वस्त्र से शिवलिंग ढंका हुआ था, वह म्रिदेश्वर के कन्दुका पर्वत पर जा गिरा। म्रिदेश्वर को ही अब मुरुदेश्वर के नाम से जाना जाता है। शिव पुराण में इस कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है।जो आज पूरे देश में कई पवित्र स्थान बन चुके है। उसमे मुरुदेश्वर भी शामिल था।

मुरुदेश्वर मंदिर का इतिहास

मुर्देश्वर नाम की उत्पत्ति रामायण काल से हुई है। हिंदू देवताओं ने आत्म-लिंग नामक एक दिव्य लिंग की पूजा करके अमरता और अजेयता प्राप्त की थी। उसके बाद लंका नरेश रावण भगवान शिव की आराधना करने के आत्मलिंग लेकर अपने राज्य लंका जा रहा था। उस समय रास्ते में आत्मलिंग को जमीन पर रखना पड़ा और शिव लिंग उस स्थान ही स्थापित हो गया था। उसके बाद लंकापति ने शिव लिंग को ले जाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए थे। उसके लिए उन्होंने शिवलिंग को अपने राज्य में लेने के लिए अपने राज्य को बढ़ाया था।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

मुरुदेश्वर मंदिर विशाल शिव मूर्ति

मुरुदेश्वर मंदिर के वास्तुकला में मुरुदेश्वर मंदिर कि उंचाई 123 फिट हैं। मुर्देश्वर मंदिर और राजगोपुरम का या गर्भगृह को छोड़कर मंदिर का आधुनिकीकरण हो चूका है। मंदिर परिसर में मंदिर और 20 मंजिला राजा गोपुरम है। मंदिर एक चौकोर आकार के अभयारण्य की तरह है। जिसमें लंबे और छोटे शिखर हैं, जो कुटीना प्रकार के हैं। नजदीक एक पिरामिडनुमा आकार है उसके पीछे हटने की व्यवस्था है। मीनार के शीर्ष पर मिनी मंदिरों और गुंबद देख सकते है।मंदिर में महाकाव्य रामायण और महाभारत के दृश्यों को उजागर करती कई मूर्तियाँ देख सकते हैं। उसमे सूर्य रथ, अर्जुन और भगवान कृष्ण हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर हाथी की दो विशाल मूर्तियाँ हैं। मंदिर में आधुनिक दिखता है क्योंकि उसका पुनः निर्माण हाल ही में हुआ है। गर्भगृह में अंधेरा और देवता श्री मृदेसा लिंग हैं। उसको प्रसिद्ध रूप से मुर्देश्वर कहा जाता है। मुरुदेश्वर मंदिर को जटिल और विस्तृत नक्काशीदार से बनाया गया हैं।


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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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