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Yogini Ekadashi Ki Katha:लोक में भोग,परलोक में मुक्ति देने वाला है योगिनी एकादशी की कथा, इस दिन जरूर सुने

Yogini Ekadashi Ki Katha: योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की महिमा का बखान करने वाली कथा जो भी व्यक्ति सुनता है उसके हर कष्ट दूर होते हैं। किसी भी तरह की बीमारी दूर होती है।

Suman Mishra। Astrologer
Published on: 12 Jun 2023 10:08 AM IST (Updated on: 14 Jun 2023 7:32 AM IST)
Yogini Ekadashi Ki Katha:लोक में भोग,परलोक में मुक्ति देने वाला है योगिनी एकादशी की कथा, इस दिन जरूर सुने
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सांकेतिक तस्वीर,सौ. से सोशल मीडिया

Yogini Ekadashi Ki Katha: योगिनी एकादशी की कथा

आषाढ़ माह के कृष्णा पक्ष में पड़ने वाले एकादशी तिथि के व्रत का नाम है योगिनी एकादशी। आषाढ़ माह में पड़ने वाले दोनों एकादशी, योगिनी एकादशी और देव शयनी एकादशी, भगवन विष्णु के पांचवे अवतार, भगवान वामन को समर्पित है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से यह मान्यता है की बिमारीया और रोगों से मुक्ति मिलता है। पद्मा पुराण में दिए गए व्रत कथा में भी यही बात बताई गयी है की कैसे हेम नामक माली, जोह राजा कुबेर का सेवक था, योगिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से कुष्ट रोग से मुक्ति पाता है।

पद्मा पुराण में लिखित व्रत कथा इस प्रकार है -

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा-- हे जनार्दन, आप मुझे योगिनी एकादशी की कथा सुनायें।

श्रीकृष्ण भगवान बोले-हे राजन! आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी है। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है। हे राज राजेश्वर! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इसके व्रत से पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं आपसे पुराण में कही हुई कथा दोहराता हूं। ध्यानपूर्वक सुनो-

अलकापुरी नगरी में कुबेर यक्षों का राजा राज्य करता था और वह शिव भक्त था। उसकी पूजा के लिए हेममाली नाम का एक सेवक मानसरोवर से पुष्प लाया करता था, सेवक की विशालाक्षी नाम की अत्यन्त सुन्दर पत्नी थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प ले आया, परन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी पत्नी के साथ रमण करने लगा और कुबेर के पास पुष्प लेकर नहीं गया। जब राजा कुबेर को उसकी राह देखते-देखते दोपहर हो गयी तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर हेममाली का पता लगाओ कि अभी तक पुष्प क्यों नहीं लाया है ? जब सेवकों ने उसका पता लगा लिया तो वह कुबेर के पास आकर कहने लगे- हे राजन! वह माली अभी तक अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है। सेवकों की इस बात को सुनकर कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी।

हेममाली कुबेर के सम्मुख डर से कांपता हुआ उपस्थित हुआ! उसको देखकर कुबेर को अत्यन्त क्रोध आया और उसके होठ फड़फड़ाने लगे। उसने कहा- "रे पापी! महानीच कामी! तूने मेरे परम पूज्यनीय ईश्वरों के भी ईश्वर शिवजी का अनादर किया है। इससे में तुझे श्राप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग भोगेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा!"

कबेर के श्राप से हेममाली कोढ़ी हो गया था। भटकता-भटकता एक दिन वह एक आश्रम में पहुंचा। वह आश्रम मार्कण्डेय ऋषि का था। हेममाली को दुःखी और कोढ़ी देखकर ऋषि ने पूछा-“यह तुम्हारा कैसा रूप हो गया है। मैंने तपोबल से जाना है तुम्हारी काया तो बड़ी ही सुन्दर थी।”

हाथ जोड़कर हेममाली बोला-“हे मुनि! में यक्षराज कुबेर का निजि सेवक था। मेरा नाम हेममाली है। मैं राजा की पूजा के लिए नित्यप्रति पुष्प लाया करता था। एक दिन अपनी पत्नी के साथ विहार करते-करते देर हो गई | और दोपहर तक पुष्प लेकर न पहुंचा। उन्होंने मुझे श्राप दिया कि तू अपनी स्त्री का वियोग भोग और मृत्यु लोक में जाकर कोढ़ी बन तथा दुःख भोग। इससे मैं कोढ़ी हो गया हू और महान दुःख भोग रहा हू अतः आप कोई ऐसा उपाय बतलाइये जिससे मेरी मुक्ति हो।”

इस पर मार्कण्डेय ऋषि बोले-क्योंकि तूने मेरे सन्मुख सत्य बोला है। इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूं। यदि तू आषाढ़ मास के कुष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा, तो तेरे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे और तू ठीक हो जाएगा। मार्कण्डेय ऋषि से ऐसे सुभाषित वचन सुनकर हेममाली अति प्रसन्न हुआ और उनके वचनों के अनुसार योगिनी एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने लगा। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।

भगवान श्री कृष्ण ने कहा: हे राजन! इस योगिनी एकादशी की कथा का फल 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। इसके

योगिनी एकादशी उदयातिथि शुभ मुहूर्त

सर्वार्थसिद्धि योग -13 जून 01:32 PM - 05:44 AM जून 14
अमृतसिद्धि योग - 13 जून 01:32 PM - 05:44 AM 14 जून

अभिजीत मुहूर्त - 12:02 PM से 12:56 PM

अमृत काल - नहीं

ब्रह्म मुहूर्त - 04:10 AM से 04:58 AM

पारना: 05:23 AM से 08:10 AM

योगिनी एकादशी की पूजा-विधि

योगिनी एकादशी के दिन सुबह साफ-सफाई के बाद स्‍नान कर साफ वस्‍त्र धारण करें। उसके बाद भगवान श्रीहरि की मूर्ति स्‍थापित करें। फिर प्रभु को फूल, अक्षत, नारियल और तुलसी पत्ता अर्पित करें। फिर पीपल के पेड़ की भी पूजा करें।सबसे पहले भगवान विष्‍णु को पंचामृत से स्‍नान कराएं। साथ में भगवान विष्‍णु के मंत्र का भी जप करते रहें। उसके बाद चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सदस्‍यों पर छिड़कें और उसे पिएं। मान्‍यता है कि इससे शरीर के रोग दूर होते हैं और पीड़ा खत्‍म होती है। योगिनी एकादशी व्रत की कथा सुनें और अगले दिन पारण करें।

Suman Mishra। Astrologer

Suman Mishra। Astrologer

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