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बंगाल में विधानपरिषद का गठन आसान नहीं, ममता और केंद्र की तल्खी से संसद की मंजूरी मुश्किल
Bengal Vidhan Parishad Revive : मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य में विधानपरिषद के गठन के लिए सक्रिय हो गई हैं। राज्य में विधानपरिषद के गठन के लिए उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में प्रस्ताव पारित करा लिया है। विधानपरिषद के गठन के लिए पेश किए गए प्रस्ताव के पक्ष में 196 मत पड़े जबकि 69 सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया।
Bengal Vidhan Parishad Revive : पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Election 2021) के समय घोषणा पत्र में किए गए वादे पर अमल करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य में विधानपरिषद के गठन के लिए सक्रिय हो गई हैं। राज्य में विधानपरिषद के गठन के लिए उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में प्रस्ताव पारित करा लिया है। विधानपरिषद के गठन के लिए पेश किए गए प्रस्ताव के पक्ष में 196 मत पड़े जबकि 69 सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया। इससे पहले ममता मंत्रिमंडल ने विधानपरिषद के गठन से जुड़े बिल को मंजूरी दी थी।
विधानसभा से प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद अब इसे संसद की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। केंद्र सरकार के साथ ममता के रिश्ते पहले ही तल्खी भरे रहे हैं और विधानसभा चुनावों ने इस तल्खी को और बढ़ा दिया है। मोदी सरकार से तल्खी भरे रिश्तों के कारण इस बिल का संसद में पास होना आसान नहीं माना जा रहा है। हाल के दिनों में ममता विभिन्न मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर रही हैं। ऐसे में इस बिल को संसद से पास कराना ममता के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा। संसद से पास होने के बाद इस पर राष्ट्रपति की मंजूरी भी जरूरी है।
ममता ने घोषणापत्र में किया था वादा
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनावों से पहले जारी घोषणापत्र में चुनाव जीतने पर राज्य में विधानपरिषद के गठन का वादा किया था। विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने एक साथ सभी सीटों के लिए तृणमूल कांग्रेस के टिकटों की घोषणा करके दूसरे दलों पर लीड ले ली थी।
ममता ने इस बार कई वरिष्ठ नेताओं का टिकट काट दिया था। इस बात को लेकर वरिष्ठ नेताओं में नाराजगी भी थी। वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी दूर करने के लिए ममता ने उन्हें विधानपरिषद में समायोजित करने की बात कही थी। उन्होंने वरिष्ठ नेताओं की बगावत की आशंका से उन्हें यह कहकर समझाया था कि विधान परिषद का गठन होने पर उन्हें इसका सदस्य बनाया जाएगा। यही कारण है कि ममता बनर्जी अब राज्य में विधानपरिषद के गठन के लिए सक्रिय हो गई हैं। वैसे सियासी जानकारों का मानना है कि ममता के लिए इस मामले में कामयाबी हासिल करना एक बड़ी चुनौती साबित होगा।
विधानपरिषद में हो सकते हैं 98 सदस्य
पश्चिम बंगाल विधानसभा में 294 सीटें हैं और नियम के मुताबिक विधानपरिषद में सदस्यों की संख्या विधानसभा के सदस्यों की संख्या से एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है। ऐसे में पश्चिम बंगाल में विधानपरिषद का गठन होने पर इसके सदस्यों की संख्या 98 हो सकती है।
भाजपा ने विधानपरिषद के गठन के सरकार के प्रस्ताव का जबर्दस्त विरोध किया।।भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति को लेकर भी हंगामा किया। प्रतिपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने राज्य में विधानपरिषद के गठन को गलत कदम बताते हुए कहा कि वित्तीय नजरिए से भी यह उचित नहीं है। देश के 30 राज्यों में विधानपरिषद नहीं है और स्मार्ट गवर्नेंस के लिए ममता सरकार का यह कदम ठीक नहीं है।
उन्होंने कहा कि विधानपरिषद का गठन करके ममता अपने नेताओं को उसमें भरना चाहती हैं। ममता बनर्जी खुद चुनाव हार चुकी हैं और वे पीछे के दरवाजे से विधानपरिषद सदस्य बनना चाहती हैं। अपनी कुर्सी बचाने के लिए उन्होंने यह कदम उठाया है।
1969 में खत्म हुई थी विधानपरिषद
पश्चिम बंगाल में 1969 तक विधानसभा और विधानपरिषद दोनों सदन थे मगर 1969 में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार ने विधानपरिषद को समाप्त करा दिया था। यूनाइटेड फ्रंट ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में विधानपरिषद को खत्म करने की बात कही थी और सत्ता में आने के बाद सरकार ने इस बाबत विधानसभा में बिल पेश किया और उसे दो तिहाई बहुमत से पास करा लिया।
राज्य विधानसभा में बिल के पास होने के चार महीने बाद इसे संसद के दोनों सदनों की मंजूरी भी मिल गई। इसके साथ ही बंगाल में विधानपरिषद खत्म हो गई। अब ममता बनर्जी ने 52 साल बाद एक बार फिर राज्य में विधानपरिषद के गठन की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
बिल को संसद की मंजूरी मिलना मुश्किल
जानकारों के मुताबिक संसद में विधानपरिषद के गठन का बिल पास करना इतना आसान काम नहीं है। कई बार इसे लेकर पेंच फंसता रहा है। असम विधानसभा की ओर से 2010 में और राजस्थान विधानसभा की ओर से 2012 में राज्य में विधानपरिषद के गठन का बिल पास किया गया था मगर अभी भी दोनों राज्यों के ये बिल राज्यसभा में अटके हुए हैं।
सियासी जानकारों का कहना है कि ममता सियासत की माहिर खिलाड़ी हैं। इसलिए वे निश्चित रूप से अपनी कुर्सी बचाने के लिए विधानपरिषद के गठन का सपना नहीं देख रही हैं। उन्हें पता है कि 6 महीने के भीतर इस बिल का पारित होना काफी कठिन है। यही कारण है कि उनकी कुर्सी को बचाने के लिए भवानीपुर सीट से जीते शोभन देव भट्टाचार्य ने इस्तीफा दे दिया है। अब ममता के इसी सीट से चुनाव मैदान में उतरने की चर्चाएं हैं क्योंकि यह विधानसभा सीट काफी दिनों से ममता का मजबूत गढ़ रही है।
देश के छह राज्यों में दो सदनों वाली व्यवस्था
मौजूदा समय में देश के 6 राज्यों में दो सदनों वाली व्यवस्था है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक में विधानसभा के साथ ही विधानपरिषद की भी व्यवस्था है। मजे की बात यह है कि इनमें से तीन राज्यों के मुख्यमंत्री तो विधानपरिषद का सदस्य बनकर ही अपनी-अपनी कुर्सियों पर काबिज हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानपरिषद के ही सदस्य हैं।
सबसे दिलचस्प बात तो नीतीश कुमार के साथ जुड़ी हुई है। वे लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं मगर इसके लिए उन्होंने विधानसभा चुनाव कभी नहीं लड़ा। वे विधानपरिषद का सदस्य बनकर ही मुख्यमंत्री के रूप में बिहार की कमान संभालते रहे हैं।
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