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Buddhadeb Bhattacharjee: पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ने ठुकराया पद्म पुरस्कार
अगर सचमूच में ऐसा कुछ ऐलान हुआ है तो मैं इसे ठुकराता हूं। बुद्धदेव भट्टाचार्य के अलावा जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम औऱ सीनियर कांग्रेस लीडर गुलाम नबी आजाद, रम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साइरस पूनावाला, भारत बायोटेक के कृष्णा इल्ला, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला, गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई समेत 17 हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित करने का ऐलान किया गया है। जिसे राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस की संध्या पर देंगे।
Buddhadeb Bhattacharjee: वयोवृध्द माकपा नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पद्म विभूषण का पुरस्कार ठुकरा दिया है। खराब स्वास्थ्य से गुजर रहे दिगग्ज वामपंथी नेता ने पद्म विभूषण को ठुकराते हुए कहा कि उन्हें यह सम्मान देने के बारे में कोई सूचना नहीं दी गई है।
अगर सचमूच में ऐसा कुछ ऐलान हुआ है तो मैं इसे ठुकराता हूं। बुद्धदेव भट्टाचार्य के अलावा जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम औऱ सीनियर कांग्रेस लीडर गुलाम नबी आजाद, रम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साइरस पूनावाला, भारत बायोटेक के कृष्णा इल्ला, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला, गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई समेत 17 हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित करने का ऐलान किया गया है। जिसे राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस की संध्या पर देंगे।
वहीं सीपीएम के राज्यसभा सांसद औऱ विकास भट्टाचार्य ने मोदी सरकार द्वारा दिए जा रहे इन पुरस्कारों को बोगस करार देते हुए कहा कि वो (बुद्धदेव भट्टाचार्य) इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। दस साल 2000 से लेकर 2011 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य दिग्गज वामपंथी नेता के तौर पर जाने जाते हैं। कभी सीपीएम के अभेध किले के रूप में जाने जाने वाले पश्चिम बंगाल के वो आखिरी कम्यूनिस्ट मुख्य़मंत्री रहे। इसके साथ ही सीपीएम के पोलित ब्यूरो के सदस्य भी रहे।
बुद्धदेव का सियासी सफर
बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म 1944 में उतरी बंगाल में हुआ था। उनका परिवार बंग्लादेश से भारत आकर बस गया था। कोलकाता के प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज से बंगाली साहित्य में स्नातक करने के बाद वो सीपीएम से जुड़ गए। इस दौरान उन्हें सीपीएम की यूथ विंग डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया का राज्य सचिव बनाया गया। 2000 में बंगाल में सीपीएम के कद्दावर नेता ज्योति बसु के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद इन्हें राज्य का सीएम बनाया गया। वामपंथी होने के बावजूद भी उन्होंने राज्य में औद्योगीकरण का अभियान चलाया। बंगाल में उद्योगों की स्थापना के लिए उन्होंने देशी विदेशी कंपनियों को का प्लांट कोलकाता के करीब सिंगुर में लगाया गया।
सिंगुर आंदोलन
सिंगुर में प्लांट के लिए बड़ी संख्या में किसानों से जमीन ली गई। जमीन अधिग्रहण का किसानों ने विरोध किया और देखते ही देखते विरोध हिंसक आंदोलन में तब्दिल हो गया। जिसने राज्य से वामपंथी शासन की पटकथा तैयार कर दी। 2009 के लोकसभा चुनाव में इसका ट्रैलर दिखा वहीं 2011 के विधानसभा चुनाव में लाल किया ढ़ह गया। इसी के साथ बंगाल में ममता बनर्जी के यूग का सूत्रपात हुआ। वहीं सीपीएम उसहार से आजतक उबर नहीं पाई ।