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बंगाल में BJP की नैया इन कमियों ने डुबोई, ताकत तो बढ़ी मगर सपना अधूरा

BJP ने ममता को सत्ता से बेदखल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था, लेकिन अपना लक्ष्य हासिल करने में नाकाम साबित हुई

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Ashiki
Published on: 3 May 2021 12:37 PM GMT
Modi- Shah
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File Photo

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत व संसाधन झोंकने और टीएमसी के तमाम बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल करने के बावजूद भाजपा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराने में कामयाब नहीं हो सकी। अबकी बार 200 पार का नारा देने वाली भाजपा 76 सीटों पर ही अटक गई। हालांकि पार्टी को पिछले विधानसभा चुनावों की अपेक्षा 73 सीटों का फायदा हुआ है मगर पार्टी का वह सपना पूरा नहीं हो सका जिसे लेकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने जोरदार अभियान छेड़ रखा था।

माना जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस के दागी और बागी नेताओं को थोक मात्रा में टिकट देना, मजबूत स्थानीय नेता की कमी, मुस्लिम मतदाताओं और बंगाली भद्रलोक के एकजुट होकर ममता के साथ खड़े रहने,बाहरी-भीतरी का मुद्दा, ध्रुवीकरण का असर न दिखने, लेफ्ट और कांग्रेस का पूरी तरह सफाया होने और अति आत्मविश्वास ने भाजपा की नैया डुबो दी।

लक्ष्य हासिल करने में पार्टी हुई नाकाम

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 47.9 फ़ीसदी मतों के साथ 214 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की है। भारतीय जनता पार्टी को 38.1 फ़ीसदी मतों के साथ 76 सीटों पर जीत हासिल हुई है। 2016 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ तीन सीटें जीत सकी थी। इस नजरिए से पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर माना जा सकता है मगर सच्चाई यह है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस बार ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा था और पार्टी अपना लक्ष्य हासिल करने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई।

टीएमसी के बागी बन गए बोझ

केंद्रीय गृह मंत्री और चुनावी राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले अमित शाह लगातार यह दावा कर रहे थे कि पार्टी इस बार 200 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब होगी मगर चुनावी बिसात पर ममता बनर्जी ने राजनीति के चाणक्य को जबर्दस्त मात दे दी है। भाजपा ने इस बार टीएमसी के बागियों को काफी संख्या में टिकट दिए थे मगर ये सभी बागी पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके।


शुभेंदु ने दिलाई पार्टी को सबसे बड़ी जीत

हालांकि टीएमसी के बागी शुभेंदु अधिकारी के बल पर ही भाजपा नंदीग्राम का बड़ा संग्राम जीतने में कामयाब जरूर हुई। शुभेंदु अधिकारी ने सबसे दिलचस्प चुनाव क्षेत्र माने जाने वाले नंदीग्राम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनाव हराने में कामयाबी हासिल की। शुभेंदु अधिकारी ने पिछले साल दिसंबर में भाजपा की सदस्यता ली थी।

शुभेंदु अधिकारी के अलावा टीएमसी के दो और बागी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। टीएमसी से 2017 में इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने वाले मुकुल रॉय ने कृष्णानगर सीट से जीत हासिल की है जबकि उत्तरी बंगाल की नाडाबाड़ी सीट से टीएमसी विधायक रहे मिहिर गोस्वामी ने भी अपनी सीट जीतकर भाजपा की सदस्य संख्या बढ़ाई है। गोस्वामी ने पिछले साल नवंबर में भाजपा की सदस्यता ली थी।

अधिकांश बागियों को जनता ने नकारा

जानकारों के मुताबिक 2017 के बाद टीएमसी के 37 विधायकों समेत करीब 140 नेताओं ने भाजपा का दामन थामा। इनमें कई ऐसे नेता भी थे जिन्होंने 2020 के अंत और इस साल की शुरुआत में भाजपा में शामिल होकर टिकट भी हासिल कर लिया, लेकिन इन सभी नेताओं को जनता ने नकार दिया। ऐसे नेताओं में राजीव बनर्जी, रविंद्र नाथ भट्टाचार्य, मुकुल रॉय के बेटे शुभ्राशु राय, रुद्रनील घोष, वैशाली डालमिया, दीपक हलदर, प्रबीर घोषाल और विश्वजीत कुंडू आदि शामिल हैं।

टीएमसी के दागियों को टिकट देने से भाजपा के जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी असंतोष फैला और इसका भी चुनावी नतीजों में असर दिखा है। टीएमसी के बागियों को टिकट देने के बाद कई इलाकों में भाजपा कार्यकर्ताओं ने असंतोष जताया था, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उसे किसी तरह मैनेज कर लिया। हालांकि जनता तक संदेश पहुंचाने में नेतृत्व पूरी तरह विफल साबित हुआ और ऐसे नेता पार्टी के लिए बोझ ही साबित हुए।

मजबूती स्थानीय नेता की कमी खरी

भाजपा ने पार्टी की चुनावी नैया पार लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह सहित पार्टी नेताओं की पूरी फौज उतार रखी थी मगर पार्टी के पास मजबूत स्थानीय नेता की कमी साफ तौर पर अखरी। मजबूत स्थानीय नेता न होने का पार्टी को खामियाजा उठाना पड़ा। पार्टी ने मध्यप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले कैलाश विजयवर्गीय को पश्चिम बंगाल का प्रभारी बना रखा था मगर वे जमीनी हकीकत का आंकलन करने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राज्य में कोई मजबूत चेहरा न होने के कारण भी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। पार्टी ने इस पूरे चुनाव को मोदी का नाम ममता बना दिया था क्योंकि पार्टी के पास सीएम पद का कोई मजबूत चेहरा नहीं था।

शाह ने कभी नहीं किया खुलासा

इस बाबत सवाल पूछे जाने पर शाह हमेशा कहा करते थे कि पश्चिम बंगाल से ही कोई चेहरा मुख्यमंत्री बनेगा। हालांकि उन्होंने कभी भी किसी नाम का खुलासा नहीं किया। माना जा रहा है कि ममता के खिलाफ एक मजबूत चेहरे का अभाव भी भाजपा को महंगा साबित हुआ है।


विरोधी वोटबैंक ममता के साथ एकजुट

भाजपा ने पूरी ताकत झोंककर और ममता पर लगातार तीखे हमले करके पूरे मुकाबले को द्विपक्षीय बना दिया, लेकिन यह समीकरण भी उसके लिए भारी पड़ा। दरअसल मोदी बनाम ममता की लड़ाई में लेफ्ट और कांग्रेस का सफाया हो गया। बीजेपी के खिलाफ एकजुट हुआ वोट बैंक पूरी तरह टीएमसी के साथ खड़ा हो गया। खास तौर पर मुस्लिम समुदाय ने एकजुट होकर टीएमसी को वोट दिया है। इसे मालदा के उदाहरण से समझा जा सकता है जिसे अभी तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन मुस्लिम बहुल मालदा में तृणमूल कांग्रेस ने पूरी तरह कब्जा कर लिया।

मुस्लिमों का स्ट्रैटेजिक मतदान

एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम बहुल इलाके की सात सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। बिहार के मुस्लिम बहुल इलाके में ताकत दिखाने वाले ओवैसी बंगाल में पूरी तरह विफल साबित हुए और उनके सभी प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई। मुस्लिम बहुल इन सभी सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं ने ओवैसी को नकार कर ममता का स्ट्रैटेजिक तरीके से पूरी तरह साथ दिया। चुनावी नतीजों से साफ है कि मुस्लिम मतों का विभाजन नहीं हुआ और भाजपा को हराने के लिए वे ममता के साथ दम लगाकर खड़े रहे।

बंगाली भद्रलोक ने भी उम्मीदों पर पानी फेरा

भाजपा की आक्रामक और विभाजनकारी बातों से बंगाल का भद्र लोक भी नाराज नजर आया। उन्होंने पूरी तरह ममता का साथ दिया। ममता बनर्जी अपने भाषणों में बंगाली अस्मिता का सवाल लगातार उठाती रहती थीं। बंगाली भद्रलोक ने इस चुनाव में ममता का साथ देकर भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। बंगाल का प्रेसीडेंसी इलाका जिसमें कोलकाता शहर भी आता है , वहां तृणमूल को 92 सीटों पर जीत हासिल हुई है जबकि भाजपा को सिर्फ 16 सीटें मिली हैं।

महिला मतदाताओं का समर्थन

इसके अलावा महिला मतदाताओं ने भी ममता का साथ नहीं छोड़ा। ममता सरकार ने महिलाओं के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं और इस कारण भी ममता महिलाओं का समर्थन पाने में कामयाब रहे। इसके साथ ही व्हीलचेयर पर बैठकर चुनाव प्रचार करने वाली ममता बनर्जी लोगों की सहानुभूति बटोरने में भी कामयाब रहीं।

ध्रुवीकरण का नहीं मिला फायदा

बंगाल में इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से जय श्रीराम के नारे की जबर्दस्त गूंज सुनाई दी। भाजपा की रैलियों और रोड शो में जय श्रीराम का नारा खूब उछला। जानकारों का कहना है कि भाजपा को इस नारे के जरिए ध्रुवीकरण की बड़ी उम्मीद थी मगर चुनावी नतीजों में ऐसा होता नहीं दिखा है।


भाजपा के लिए यह नारा कुछ इलाकों में तो वह उल्टा ही असर कर गया और विरोधी भाजपा के खिलाफ पूरी तरह गोलबंद हो गए। भाजपा उम्मीदों के मुताबिक हिंदू मतों का ध्रुवीकरण नहीं कर सकी। उल्टी प्रतिक्रिया में विरोधी मतों ने ममता की झोली पूरी तरह मतों से भर दी।

टीएमसी के मतों का प्रतिशत बढ़ा

2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 44.91 फीसदी मतों के साथ 211 सीटों पर जीत हासिल की थी मगर इस बार पार्टी में अपने मत प्रतिशत में भी इजाफा किया है। पार्टी को इस बार 47.9 फीसदी मत मिले हैं और इन बढ़े हुए मतों के साथ पार्टी ने 214 सीटों पर बाजी मारी है।

यदि भाजपा के मत प्रतिशत का विश्लेषण किया जाए तो पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा भाजपा के मत काफी बढ़े हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में 10.16 फ़ीसदी मतों के साथ भाजपा ने 3 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि इस बार पार्टी ने 38.1 फीसदी मतों के साथ 76 सीटों पर जीत हासिल की है।

भाजपा के मध्य प्रतिशत में गिरावट

यदि 2019 के लोकसभा चुनाव को देखा जाए तो टीएमसी ने इस बार लोकसभा पिछले लोकसभा चुनाव से भी ज्यादा मत हासिल किए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने 43.3 फ़ीसदी मतों के साथ 22 सीटों पर कब्जा किया था। यदि भाजपा के मत प्रतिशत को देखा जाए तो लोकसभा चुनाव की अपेक्षा इस बार भाजपा के मत प्रतिशत में गिरावट आई है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 40.7 फ़ीसदी मतों के साथ 18 सीटों पर जीत हासिल की थी मगर इस बार उससे 38.1 फीसदी मत ही हासिल हुए हैं।

मुहिम में इस कारण विफल हुई भाजपा

राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा के सामने दो रास्ते थे। पहला रास्ता तो यह कि वह पिछले लोकसभा चुनाव में मिले 40 फीसदी वोटों में और बढ़ोतरी करे या फिर दूसरा रास्ता यह कि तृणमूल कांग्रेस को मिले 43.3 फीसदी मतों में और कमी लाए। भाजपा अपनी मुहिम में पूरी तरह विफल रही क्योंकि वह अपना वोट प्रतिशत कायम रखने में भी सफल नहीं हो सकी और दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस को वोटों में बढ़ोतरी करने से रोक भी नहीं पाई। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सिर्फ ढाई फ़ीसदी मतों का अंतर था मगर यह अंतर कम होने के बजाय इस बार और बढ़कर 11 फ़ीसदी हो गया और भाजपा को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

अब खामियों के मूल्यांकन की कोशिश

हालांकि भाजपा अपना सपना पूरा करने में कामयाब नहीं हो सकी है मगर एक मजबूत विपक्ष बनकर जरूर उभरी है और उसने अपनी ताकत में इजाफा किया है। भाजपा ममता बनर्जी को हराने का सपना तो नहीं पूरा कर सकी है मगर उसने पश्चिम बंगाल में मजबूत दस्तक जरूर दी है। पश्चिम बंगाल मैं भाजपा के विजय प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि हम अपनी खामियों का मूल्यांकन करेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि क्या कमी रह गई जिसकी वजह से हम अपने मिशन में कामयाब नहीं हो सके।

Ashiki

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