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बंगाल का खूनी इतिहास: यहां हिंसा ही संस्कार हैं सत्ता के, हमला होना आम बात

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हुए हमले से 30 साल पहले की यादें ताजा हो गई। सन् 1990 में हुआ वो हमला जिससे ममता मौत के दरवाजे तक पहुंच गई थी। उस समय ये हमला CPI-M के कथित गुंडे लालू आज़म ने किया था। जिसमें ममता बुरी तरह घायल हो गई थीं।

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Published on: 11 March 2021 7:56 AM GMT
बंगाल का खूनी इतिहास: यहां हिंसा ही संस्कार हैं सत्ता के, हमला होना आम बात
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पश्चिम बंगाल सीएम ममता ने बंगाल में हिंसा कम होने के दावे किए, लेकिन हाल ही में हमले का ठीकरा बीजेपी के सिर फोड़ा, लेकिन सच यह भी है।

नई दिल्ली। बीते दिन पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हुए हमले से 30 साल पहले की यादें ताजा हो गई। सन् 1990 में हुआ वो हमला जिससे ममता मौत के दरवाजे तक पहुंच गई थी। उस समय ये हमला CPI-M के कथित गुंडे लालू आज़म ने किया था। जिसमें ममता बुरी तरह घायल हो गई थीं। लेकिन लेफ्टिस्ट को तब यह हमला बहुत भारी पड़ा था क्योंकि उसके बाद ममता बंगाल की नेता बनकर सामने आई और उनकी सियासी आंधी में लेफ्टिस्ट की सत्ता को गिरा दिया।

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राजनीतिक हिंसा के लिए बदनाम

बंगाल सीएम ममता ने बंगाल में हिंसा कम होने के दावे किए, लेकिन हाल ही में हमले का ठीकरा बीजेपी के सिर फोड़ा, लेकिन सच यह भी है कि बंगाल हमेशा ही राजनीतिक हिंसा के लिए बदनाम रहा। लेकिन बंगाल में अकेली महिला सियासी खून खराबे के बीच सियासी सत्ता की जानदार खिलाड़ी बनकर सामने आई।

बात है सन् 1990 की जब ममता कांग्रेस की युवा नेता थीं। उस दौरान खाद्य तेल में मिलावट के चलते मौतें होने के विरोध में कांग्रेस ने विरोध प्रदर्शन किए। जिसके चलते ममता ने कई जगह रैलियां कीं। और इसी सिलसिले में हाज़रा में जब ममता रैली के लिए जा रही थीं, तभी करीब 11 बजे सुबह कम्युनिस्ट पार्टी के कथित गुंडे आज़म ने धारदार हथियार से ममता का सिर फोड़ दिया था।

Mamta Banerjee (फोटो:सोशल मीडिया)

बताया जाता है कि ये हमला इतना खतरनाक था कि ममता की जान पर बात बन गई थी। फिर अदालत ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए हत्या की कोशिश और दंगे के आरोप में केस शुरू किया था। जिसमें आलम दो महीने के बाद जेल से बेल पर रिहा हुआ था। अब सवाल यह भी उठना चाहिए कि आलम आखिर कौन था?

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आज़म की हिमाकत बढ़ने लगी

तो हमला करने वाला लालू आजम पहले कांग्रेस का ही कार्यकर्ता रहा फिर 1980 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में जुड़ गया था। अपने भाई और जिला स्तर के कम्युनिस्ट नेता बादशाह के रसूख के चलते आज़म की हिमाकत बढ़ने लगी थी।

जिसके बाद ममता पर हमले की बहुत आलोचना के बाद दोनों भाइयों को पार्टी ने बाहर कर दिया था। और ममता के खिलाफ हमले का यह केस 1992 में शुरू हुआ था, जो लेफ्ट की सियासत के चलते सालों तक लटका रहा।

ऐसे में ममता या उनकी पार्टी पर हमला होना कोई नई बात नहीं है और ये भी कोई नई बात नहीं है कि ममता की पार्टी ने हमले किए हों। बीते दो सालों में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस एक दूसरे पर कार्यकर्ताओं की हत्याओं के आरोप लगाते रहे हैं। ऐसे में बंगाल में सियासी हमले तो कहा जाए तो खून खराबा बंगाल की सियासत का मानो संस्कार ही रहा है।

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