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बिहार विधानसभा चुनाव 2020ः पिछले सारे समीकरण ध्वस्त, नतीजे होंगे अप्रत्याशित
बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के समीकरण और जातीय समीकरण ध्वस्त, कुछ नया ऐसा हो रहा है जिसने बदल दी फिजां, भाजपा जदयू राजद को भी लग सकता है झटका
शशिशंकर सिंह
बिहार की राजनीति में तीन मुख्य दल हैं- भाजपा, राजद एवं जद (यू)। इनमें से जिन दो दल का गठबंधन होता हैं, माना जाता हैं कि वो गठबंधन लड़ाई जीत गया। बाकी पार्टियाँ सहयोगी के रूप में हैं। तीनों मुख्य पार्टियों सहित सभी दल का एक सोशल अम्ब्रेला हैं एवं इसी को देखते हुए पार्टियां गठबन्धन करती हैं। पिछले चार चुनाव की बात करें तो जनता का मैंडेट साफ़ झलक रहा था और आगे चल रहे गठबंधन ने विरोधी गठबंधन में भी सेंध लगाईं थी।
क्या कहता है इतिहास
बात करें 2010 विधानसभा चुनाव की तो भाजपा एवं जद (यू) को अपने सोशल अम्ब्रेला का एकतरफा मत मिला था एवं नीतीश कुमार को सत्ता में दोबारा वापसी के लिए मतदाता मत दिया था।
बात करे 2015 विधानसभा चुनाव की तो राजद+जद (यू) गठबंधन को अपने सोशल अम्ब्रेला का एकतरफा मत मिला था एवं इस गठबंधन ने एनडीए के गठबंधन में भी सेंध लगाई थी। 2015 विधानसभा चुनाव में राजद+जद (यू) गठबंधन को बहुतायत कुशवाहा एवं ओबीसी वैश्य वर्ग का मत मिला था। मूल रूप से कुशवाहा समाज विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ या अपनी जाति के उम्मीदवार के साथ रहता हैं।
2014 एवं 2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को अपने सोशल अम्ब्रेला से बाहर का भी मिला था। 2014 लोकसभा चुनाव में मतदाता कांग्रेस को केंद्र से हटाने के लिए तत्पर था एवं 2019 लोकसभा में नरेन्द्र मोदी को सत्ता में दोबारा लाने के लिए मत दिया था।
मतदाता में उत्साह नहीं
2020 चुनाव में मतदाता में नीतीश कुमार के प्रति उत्साह नहीं है। दूसरी ओर यूपीए के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव के प्रति भी उत्साह नहीं हैं। किसी भी विशेष नेता के नाम पर जनता वोट नहीं डाल रही हैं। चुनाव हर जगह विधानसभा वार देखने को मिल रहा है।
यूपीए का सोशल अम्ब्रेला पिछले चार चुनाव के मुकाबले ज्यादा Intact है। एनडीए के मुख्यमंत्री एवं नेता जितना भी विकास का दावा कर लें, मतदाता मानने को तैयार नहीं हैं।
एनडीए के मतदाताओं में एक बेचैनी हैं। एनडीए के सोशल अम्ब्रेला को लोजपा के टिकट पर और निर्दलीय लड़ रहे उम्मीदवार कमजोर कर रहे हैं। जद (यू) के प्रदर्शन को लोजपा बहुत ही कमजोर कर रही है।
बागी उम्मीदवारों की बरसात
1990 एवं 1995 के बाद पहली बार इतने ज्यादा बागी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं एवं अधिकतर उम्मीदवारों को मत मिल रहा है। इनको मत देने वाले मतदाता हार-जीत भी नहीं देख रहे हैं। ये जो बागी उम्मीदवार हैं, जो लोजपा या निर्दलीय लड़ रहे हैं, लगभग 40-50 विधानसभा में प्रभावित कर रहे हैं।
पहले चरण की शाहाबाद क्षेत्र से लेकर मगध क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों पर नजर डालते हैं, तो पाते हैं कि रोहतास जिला के दिनारा सीट में भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री- राजेंद्र सिंह लोजपा के टिकट पर हैं। ये जद (यू) के मंत्री- जय कुमार सिंह को लड़ाई से बाहर कर दिये हैं।
पड़ोस की सीट करगहर में लोजपा के टिकट पर लड़ रहे राकेश कुमार सिंह और बसपा के टिकट पर लड़ रहे पूर्व मंत्री रामधनी सिंह के पुत्र उदय सिंह से जद (यू) के उम्मीदवार- वसिष्ठ सिंह को दिक्कत हो रही है।
रोहतास जिला के सासाराम सीट से भाजपा के पूर्व विधायक- रामेश्वर चौरसिया लोजपा के टिकट पर मैदान में हैं। इस सीट से जद (यू) ने राजद के विधायक अशोक कुमार को उम्मीदवार बनाया हैं। रामेश्वर चौरसिया राजद एवं जद (यू) दोनों के मत में सेंध लगा रहे हैं।
सब हैं परेशान
भोजपुर जिला की तरारी सीट से लोजपा के पूर्व विधायक- सुनील पाण्डेय निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। इनके लड़ने से भाजपा लड़ाई से बाहर हो गयी है। बगल की सीट सन्देश में भाजपा की नेत्री एवं मुखिया श्वेता सिंह लोजपा के टिकट पर मैदान में हैं एवं ये जद (यू) को कमजोर कर रही हैं।
भोजपुर जिला के जगदीशपुर सीट में जद (यू) के पूर्व विधायक- श्रीभगवान कुशवाहा लोजपा के टिकट पर लड़ रहे हैं। इनके लड़ने से राजद को लाभ हो रहा हैं। बगल की सीट शाहपुर में घर में ही लड़ाई में है। भाजपा की उम्मीदवार- मुन्नी देवी के विपक्ष में जेठानी- शोभा देवी भी निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं।
बक्सर जिला की ब्रह्मपुर सीट से पूर्व विधान परिषद् सदस्य- हुलास पाण्डेय लोजपा के टिकट पर लड़ रहे हैं। इनके लड़ने से एनडीए के घटक दल- VIP पार्टी लड़ाई से बाहर प्रतीत हो रही है।
बगल की सीट डुमरावं में जद (यू) के विधायक- ददन यादव और डुमरावं महाराज- शिवांग सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। लोजपा के टिकट पर अखिलेश सिंह लड़ रहे हैं। ये तीनों उम्मीदवार जद (यू) का खेल बिगाड़ रहे हैं।
बिगड़ रहा खेल
कैमूर जिला की हॉट सीट रामगढ़ में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र- सुधाकर सिंह को राजद के पूर्व विधायक- अम्बिका सिंह यादव के बसपा के टिकट पर लड़ने के कारण बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ रहा हैं।
पड़ोस की सीट भभुआ में जद (यू) के पूर्व विधायक- प्रमोद सिंह एवं रालोसपा के वीरेंदर कुमार के लड़ने के कारण भाजपा का मत कट रहा है।
औरंगाबाद की रफीगंज सीट में एनडीए की जीत तय थी, पर प्रमोद सिंह के मैदान में आ जाने के बाद जद (यू) का विजयी रथ रुक गया हैं।
बगल की सीट कुटुम्बा में जद (यू) लड़ाई से बाहर प्रतीत हो रही हैं एवं मुख्य लड़ाई जद (यू) के बागी उम्मीदवार ललन भुइयां एवं कांग्रेस के राजेश कुमार के बीच में प्रतीत हो रही है।
बगल की सीट गोह में जद (यू) के पूर्व विधायक- रणविजय कुमार के लड़ने के कारण भाजपा उम्मीदवार- मनोज शर्मा को दिककत का सामना करना पड़ रहा हैं।
लड़ाई हो रही रोचक
पटना जिला की पालीगंज में एनडीए की जीत जीत तय थी, पर जद (यू) के द्वारा राजद के यादव विधायक- जयवर्धन यादव के टिकट दिये जाने के बाद पूर्व भूमिहार विधायक उषा विद्यार्थी के लोजपा के उम्मीदवार बनने के बाद लड़ाई रोचक हो गयी हैं।
बगल की सीट बिक्रम में भाजपा के पूर्व विधायक- अनिल कुमार के लड़ जाने के कारण भाजपा को दिक्कत हो रही हैं।
जहानाबाद जिला की जहानाबाद सीट में लोजपा के टिकट पर लड़ रही भाजपा के पूर्व नेत्री- इंदु कश्यप ने शिक्षा मंत्री- कृष्णनंदन वर्मा का खेल बिगाड़ दिया है।
जमुई जिला की झाझा सीट में विधायक- रविन्द्र यादव के लोजपा के टिकट पर लड़ जाने के कारण राजद के मतों में सेंध लग रहा हैं। बगल की सीट चकाई में पूर्व विधायक- सुमित सिंह के लड़ने के कारण जद (यू) लड़ाई से बाहर हो गयी है।
ये हो सकते हैं नतीजे
मुख्य लड़ाई राजद एवं सुमित सिंह के मध्य देखने को मिल रही हैं। जमुई सीट में सुमित सिंह के भाई व् पूर्व विधायक- अजय कुमार सिंह रालोसपा के टिकट पर हैं। अगर इनको ज्यादा मत आता हैं, तो भाजपा की उम्मीदवार- श्रेयसी सिंह को दिक्कत हो सकती है।
एनडीए के विजय रथ को केंद्र सरकार के ही सहयोगी दल- लोजपा से जोरदार झटका लगा हैं। नीतीश कुमार की नाराजगी का लाभ भले ही प्रत्यक्ष रूप से यूपीए को नहीं मिल रहा हो, पर लोजपा या बागी उम्मीदवार को मिल रहे मत से अप्रत्यक्ष से यूपीए को लाभ हो रहा हैं। जहां- जहां लोजपा या बागी उम्मीदवार अच्छा चुनाव लड़ रहे हैं, एक- दो सीट छोड़ अधिकतर जगह या तो लोजपा जीतेगी या राजद- कांग्रेस का उम्मीदवार जीतेगा।