Bihar : पिछड़ी जातियों की जनगणना में है पेंच, केंद्र सरकार ने जातिवार गणना से किया इनकार

Bihar : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ राजनीतिक दलों के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर जाति आधारित जनगणना की मांग की है।

Akhilesh Tiwari
Written By Akhilesh TiwariPublished By Shraddha
Published on: 24 Sep 2021 4:34 AM GMT
Bihar : पिछड़ी जातियों की जनगणना में है पेंच, केंद्र सरकार ने जातिवार गणना से किया इनकार
X

Bihar : पिछड़ी जातियों की जनगणना के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) समेत अन्य राजनीतिक दलों की ओर से की गई मांग को पूरा करना व्यावहारिक नहीं है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) को यह जानकारी दी है कि इस बार भी केवल अनुसूचित जाति, जनजाति, धार्मिक और भाषाई समूहों की गिनती ही कराई जाएगी।

जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से जोर शोर से की जा रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ राजनीतिक दलों के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) से मुलाकात कर जाति आधारित जनगणना की मांग की है। महाराष्ट्र की आघाडी विकास सरकार ने भी इस मुद्दे को उठाया है और सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है। इस याचिका पर केंद्र सरकार की ओर से जो शपथ पत्र दाखिल किया गया है उसमें कहा गया है कि देश की आबादी की जांच आधारित आंकड़े जुटाना और उन्हें सार्वजनिक करना व्यवहारिक नहीं है।

केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि अन्य पिछड़ी जातियों के उपनाम बेहद जटिल और उलझे हुए हैं । उनके उपनाम में इतने मामूली अंतर हैं कि यह समझ पाना बेहद कठिन हो जाता है कि कौन सा जातीय उपनाम किस वर्ग से आता है। मंत्रालय की ओर से सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया गया है कि 2011 में जो सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना कराई गई थी , उसे ओबीसी की गणना नहीं कहा जा सकता है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)


केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2011 के सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना का मकसद देश के परिवारों के पिछड़ेपन का आकलन था। इस सूची का विश्लेषण किया गया तो पता चला कि सामाजिक आर्थिक आधार पर पिछड़ों की सूची में लाखों जातियां शामिल हो गई हैं जबकि केंद्र और राज्यों की ओबीसी लिस्ट में सिर्फ कुछ हजार जातियां हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों ने अपने गोत्र को भी जाति के तौर पर दर्ज करवा दिया है । इस वजह से लोगों की जातियों की संख्या का सही सही अनुमान लगाया जाना मुश्किल है। जातियों के उपनाम में उनकी स्पेलिंग में इतना मामूली अंतर है कि पिछड़ी जाति या अन्य जाति का सही-सही आकलन करना संभव नहीं हो पाता। महाराष्ट्र में पोवार जाति को ओबीसी में शामिल किया गया है । लेकिन पवार इस श्रेणी में शामिल नहीं है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा है कि 2022 में होने जा रही जनगणना में जातियों की गिनती किया जाना संभव नहीं है और यह कि सरकार का एक नीतिगत विषय है। सुप्रीम कोर्ट को नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी जातिगत जनगणना की समर्थक

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी समेत अन्य राजनीतिक दल भी जातिगत जनगणना की वकालत कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी का कहना है कि जिन जातियों की जितनी आबादी है , उनको उतना अवसर मिलना चाहिए। जब तक जातिगत जनगणना नहीं होगी तब तक जातियों के साथ हो रहा विभेद खत्म नहीं होगा। उनको मिलने वाले अवसरों पर दूसरे लोग डाका डालते रहेंगे।

Shraddha

Shraddha

Next Story