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Bihar News: खिसकती सियासी जमीन के बीच एक और यात्रा पर निकलेंगे नीतीश कुमार
Bihar News: साल 2005 से बिहार की राजनीति को अपने इशारे पर चलाने वाले नीतीश की सफलता में इन यात्राओं का भी खासा योगदान है।
Bihar News: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक यात्राओं के लिए जाने जाते हैं। साल 2005 से बिहार की राजनीति को अपने इशारे पर चलाने वाले नीतीश की सफलता में इन यात्राओं का भी खासा योगदान है। उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) पिछले 17 सालों से लगातार बिहार में सरकार चला रही है। इनमें जीतरराम मांझी का लघु कार्यकाल निकाल दें तो बाकी पूरा समय नीतीश ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहे हैं।
उन्हें जब – जब बिहार की सियासी नब्ज को टटोलने की जरूरत महसूस होती है, वो यात्रा पर निकल पड़ते हैं। मुख्यमंत्री अब तक राज्य में ऐसी 13 यात्राएं कर चुके हैं।
चंपारण की धरती से करेगें 14वीं यात्रा की शुरूआत
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रपति महात्मा गांधी की कर्मभूमि कही जाने वाली चंपराण की धरती से अपनी14वीं यात्रा की शुरूआत नए साल में करेंगे। जल संसाधन मंत्री और सीएम नीतीश के काफी करीबी माने जाने वाले संजय झा के मुताबिक, यात्रा की शुरूआत 5 जनवरी से होगी।
इस दौरान वो सरकार की ओर से कराए जा रहे विकास कार्यों का जायजा लेंगे और इसकी जमीनी हकीकत को जानेंगे। यात्र के दौरान जनता दरबार भी लगेगा, जिसमें मंत्री से लेकर अधिकारी तक मौजूद होंगे और जनता की समस्याओं को ऑन स्पॉट निदान की कोशिश की जाएगी।
नीतीश की यात्रा के मायने
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तेजी से अपनी सियासी जमीन गंवा रहे हैं। साल 2014 में केंद्र की सियासत में नरेंद्र मोदी के उभार के बाद से उनका राजनीति सफर हिचकौले खाता रहा है। वो कभी आरजेडी तो कभी बीजेपी के साथ अपना सियासी भविष्य सुरक्षित करने की जुगत में रहते हैं।
साल 2005 में नीतीश ने बीजेपी के साथ मिलकर राजद को बिहार की सत्ता से उखाड़ फेंका था। शुरूआती दस वर्षों में बिहार में राजद की स्थिति काफी खास्ताहाल हो चुकी थी। लेकिन 2014 के बाद देश की राजनीति के साथ बिहार की राजनीति ने भी करवट ली।
उस करवट ने राजनीतिक रूप से नेपथ्य में गई लालू प्रसाद यादव की आरजेडी को नई संजीवनी प्रदान कर दी। वहीं, बीजेपी भी बिहार में अब उतनी कमजोर नहीं रह गई थी।
साल 2005 से लेकर 2014 तक नीतीश के सामने एक कमजोर विपक्ष और एक कमजोर सहयोगी था। इसका उन्होंने जमकर फायदा उठाया और अपने तरीके से काम किया। लेकिन 2014 के नतीजे आने के बाद न तो उनका विपक्ष कमजोर रह गया था और न ही उनके सहयोगी।
बीजेपी और राजद बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से कहीं अधिक ताकतवर हो चुके हैं। लगातार पाला बदलने के कारण उनकी सियासी विश्वसनीयता कम होती जा रही है। नीतीश कुमार अपने गिरते जनाधार से कितने परेशान हैं, ये उनके हाव-भाव से प्रकट होता है।
मृदुभाषी और सौम्य स्वभाव वाले नीतीश अब अक्सर तीखे सवालों पर आपा खो बैठते हैं। हाल – फिलहाल में उनके खिलाफ मीडिया में अधिकतर नकारात्मक खबरें ही छपी हैं। माना जा रहा है कि नीतीश इस यात्रा के दौरान सामाजिक मुद्दों और अपनी सरकार द्वारा कराए जा रहे विकास कार्यों को सामने रखकर विपक्ष और मीडिया का ध्यान शराबकांड समेत अन्य मुद्दों से हटाना चाहते हैं।
नीतीश के खिलाफ माहौल गरम
एक समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने कार्यों को लेकर देश के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में शुमार थे। प्रसिद्ध इतिहास रामचंद्र गुहा ने तो यहां तक कह दिया था कि देश को एक नहीं बल्कि 50 नीतीश कुमार की जरूरत है। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता नीतीश की लोकप्रियता का ग्राफ नीचे गिरने लगा।
साल 2005 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी जदयू 10 साल बाद यानी 2015 के विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर आ गई और पांच साल बाद वह खिसककर तीसरे नंबर पर चली गई। हालांकि मुख्यमंत्री की कुर्सी जरूर नीतीश कुमार के पास ही रही लेकिन जनता में उनके खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
खासकर युवाओं में उनके विरूद्ध काफी आक्रोश देखा जा रहा है। लालू प्रसाद यादव के बेटे और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की सियासी सफलता के पीछे भी नीतीश के प्रति लोगों के विशेषकर युवाओं के होते मोहभंग को जिम्मेदार माना जा रहा है।
तेजस्वी के सीएम बनने की अटकलें
विधानसभा चुनाव में मिली हार का ठीकरा बीजेपी की दगाबाजी पर फोड़ने वाले नीतीश की हालत उपचुनावों में भी काफी खराब है। राजद, कांग्रेस समेत अन्य दलों के समर्थन के बावजूद वो बीजेपी को नहीं हरा पाए और न ही उनके वोट गठबंधन के सहयोगियों को ट्रांसफर हो पाया।
ऐसे में लालू परिवार नीतीश की अलोकप्रियता और उनकी सियासी हैसियत को भांप चुका है और अपने नेताओं से नीतीश को जल्द से जल्द तेजस्वी के लिए गद्दी छोड़ने की बात कहलवा रहा है।
राजद नेताओं को डर है कि कहीं नीतीश की सियासी नाकायाबी का खामियाजा चुनावों में उन्हें न भुगतना पड़ जाए। वैसे भी बिहार के सियासी हलकों में इन दिनों होली से पहले किसी बड़े राजनीतिक उलटफेर की चर्चा खूब हो रही है। बिहार सीएम की यात्रा को इन सब चीजों से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
कितनी यात्राएं कर चुके हैं नीतीश कुमार ?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार का राजनीतिक यात्री कहा जाता है। बिहार ही नहीं संभवतः देश के भी किसी राज्य में किसी मुख्यमंत्री ने पद पर रहते हुए शायद ही इतनी यात्राएं की होंगी।
नीतीश कुमार ने साल 2005 में सबसे पहले न्याय यात्रा, जनवरी 2009 में विकास यात्रा, जून 2009 में धन्यवाद यात्रा, सितंबर 2009 में प्रवास यात्रा, अप्रैल 2010 में विश्वास यात्रा, 9 नवंबर 2011 में यात्रा, सितंबर 2012 में अधिकार यात्रा, मार्च 2014 में संकल्प यात्रा, नवंबर 2014 मे संपर्क यात्रा, नवंबर 2016 में निश्चय यात्रा, दिसंबर 2017 में समीक्षा यात्रा, दिसंबर 2019 में जल-जीवन हरियाली यात्रा और 2021 में समाज सुधार यात्रा।
बिहार में यात्राओं का दौर
बिहार में राजनीतिक यात्राओं का दौर चल रहा है। राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर इसी चंपारण की धरती से नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार के खिलाफ दो अक्टूबर 2022 से पदयात्रा पर निकले हुए हैं। साल 2015 में नीतीश को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगाने वाले पीके अब उन्हीं को सियासी अखाड़े चुनौती दे रहे हैं।
इसके अलावा 5 जनवरी से ही बिहार की महागठबंधन में सहयोगी कांग्रेस भी राज्य में भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पटना के कांग्रेस दफ्तर से इस यात्रा को हरी झंडी दिखाएंगे। यह यात्रा बिहार में 1200 किमी का फासला तय करेगी।