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Bihar Politics: बिहार में रंग दिखा सकता है कांग्रेस का दलित कार्ड, राजेश कुमार की ताजपोशी से राजद को भी बड़ा संकेत

Bihar Politics: माना जा रहा है कि पार्टी ने बिहार में सामाजिक समीकरण साधने के लिए यह बड़ा कदम उठाया है। इसे बिहार में कांग्रेस की सियासी जमीन मजबूत बनाने की दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है।

Anshuman Tiwari
Published on: 19 March 2025 1:11 PM IST
Bihar Politics: बिहार में रंग दिखा सकता है कांग्रेस का दलित कार्ड, राजेश कुमार की ताजपोशी से राजद को भी बड़ा संकेत
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राजेश कुमार राहुल गांधी  (photo: social media ) 

Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल अपना समीकरण दुरुस्त करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। बिहार में राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस भी इस बार पूरी ताकत लगाने की कोशिश में जुटी हुई है। पार्टी की ओर से ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा निकाली गई है। इस बीच पार्टी ने बड़ा सियासी दांव खेलते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बदल दिया है।

पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने भूमिहार बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह के स्थान पर अब दलित समुदाय के नेता राजेश कुमार को प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपी है। पार्टी की ओर से उठाए गए इस कदम के जरिए राज्य के दलित मतदाताओं पर डोर डालने का प्रयास किया गया है। माना जा रहा है कि पार्टी ने बिहार में सामाजिक समीकरण साधने के लिए यह बड़ा कदम उठाया है। इसे बिहार में कांग्रेस की सियासी जमीन मजबूत बनाने की दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है।

कांग्रेस के दलित कार्ड का क्या है मकसद

बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेतृत्व की ओर से उठाया गया कदम दलित कार्ड खेलने की रणनीति माना जा रहा है। बिहार के चुनाव में जातीय समीकरण का पहले ही काफी असर दिखाता रहा है और ऐसे में कांग्रेस ने दलित मतदाताओं को साधने के लिए यह कदम उठाया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए राजेश कुमार मौजूदा समय में बिहार की कुटुंबा विधानसभा सीट से विधायक हैं और उनकी पहचान दलित समाज के मजबूत नेता के रूप में रही है।

राजेश कुमार को राहुल गांधी का करीबी माना जाता रहा है। एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि बिहार में कांग्रेस के पूर्व प्रभारी भक्त चरण दास ने भी अखिलेश प्रसाद सिंह से पहले राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की सिफारिश की थी मगर उस समय कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी सिफारिश को अनदेखा करते हुए अखिलेश प्रसाद सिंह को प्रदेश में कांग्रेस की कमान सौंप दी थी। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने राजेश कुमार की ताजपोशी के जरिए अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है।

कांग्रेस ने क्यों बनाया दलित अध्यक्ष

बिहार में करीब 17 फ़ीसदी दलित मतदाता हैं और इन मतदाताओं पर अब कांग्रेस ने नजरे गड़ा रखी हैं। बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं और लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में दलित मतदाताओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। बिहार में केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी और चिराग पासवान को दलित मतदाताओं की धुरी माना जाता रहा है।

दोनों नेता इस समय एनडीए के साथ हैं और ऐसे में कांग्रेस की ओर से दलित अध्यक्ष बनाने का कदम बड़ा असर डालने वाला साबित हो सकता है। यदि दलित समाज का कांग्रेस प्रत्याशियों को समर्थन मिला तो पार्टी को बड़ी मजबूती हासिल हो सकती है।

अखिलेश प्रसाद सिंह से क्यों छिन गई कमान

कांग्रेस की ओर से प्रदेश प्रभारी बदले जाने के बाद से ही प्रदेश अध्यक्ष में भी बदलाव की उम्मीद जताई जा रही थी। दरअसल प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरू के साथ अखिलेश प्रसाद सिंह की ट्यूनिंग नहीं बैठ पा रही थी। दोनों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद उजागर हुए थे। इसके साथ ही कांग्रेस की ओर से बिहार में कन्हैया कुमार को महत्व दिए जाने से भी अखिलेश प्रसाद सिंह नाराज बताए जा रहे थे। कांग्रेस की ओर से निकाली गई यात्रा ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ में कन्हैया कुमार प्रमुख भूमिका में है। कन्हैया कुमार को बिना उनकी राय लिए प्रमुखता देने से अखिलेश नाराज चल रहे थे।

इसके साथ ही कांग्रेस में गुटबाजी और समन्वय की कमी की शिकायत भी शीर्ष नेतृत्व तक पहुंची थी। अखिलेश प्रसाद सिंह को राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव का करीबी माना जाता रहा है। कांग्रेस इस बार कांग्रेस ने इस बार अधिक सीटों पर नज़रें गड़ा रखी हैं और ऐसे में माना जा रहा था कि अखिलेश प्रसाद सिंह के रहते पार्टी की ओर से राजद नेतृत्व पर उचित दबाव नहीं बनाया जा सकेगा। सियासी जानकारों का मानना है कि इन्हीं सब कारणों की वजह से कांग्रेस नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष को बदलने का फैसला किया है।

कांग्रेस ने राजद को भी दिया बड़ा संकेत

बिहार में 90 के दशक के बाद से ही कांग्रेस की पहचान राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव की पिछलग्गू पार्टी के रूप में रही है। उसके बाद से ही पार्टी लालू यादव के इशारों पर ही नाचती रही है मगर कांग्रेस हाईकमान अब इस सिलसिले को खत्म करना चाहता है। पार्टी के फैसलों से साबित हो गया है कि अब वह लालू यादव के उंगलियों पर नाचने वाली नहीं है।

पार्टी की ओर से प्रदेश प्रभारी की नियुक्ति के साथ ही इसकी शुरुआत हो गई थी। लालू खेमे के करीबी माने जाने वाले मोहन प्रकाश को हटाकर पार्टी ने कृष्ण अल्लावरु को प्रदेश प्रभारी बनाया था। अपनी नियुक्ति के बाद अभी तक अल्लावरु लालू के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए नहीं पहुंचे हैं। अब प्रदेश अध्यक्ष को भी बदल दिया गया है जिन्हें लालू यादव का करीबी माना जाता रहा है।

प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को बदलने के साथ यह भी साफ हो गया है कि अब पार्टी सीट शेयरिंग के मामले में भी झुकने वाली नहीं है। राजद मुखिया लालू यादव और तेजस्वी के लिए अब अपनी शर्तें मनवाना आसान साबित नहीं होगा। कांग्रेस भी अब पूरी मजबूती के साथ राजद के सामने खड़ी होगी।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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