Bihar Political Crisis: देश में हमेशा बिहार से चली है परिवर्तन की बयार, इस बार क्या असर डालेगा राज्य का सियासी बदलाव

Bihar Political Crisis: बिहार में हुए सियासी घटनाक्रम को विपक्ष की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है। वैसे ही आप भी इस सच्चाई है कि बिहार देश भर में असर डालने वाले बदलाव की धरती रही है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 9 Aug 2022 2:40 PM GMT
nitish kumar 8th time bihar cm in 22 years nitish political career
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CM Nitish Kumar

Bihar Political Crisis: बिहार की सियासत (Bihar Political Crisis) में मंगलवार का दिन काफी अहम रहा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने भाजपा (BJP) को बड़ा झटका देते हुए एनडीए गठबंधन से नाता तोड़ लिया और राजद और अन्य दलों की मदद से राज्य में नई सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया। भाजपा के साथ नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की काफी दिनों से चल रही तनातनी के बाद बिहार में यह बड़ा सियासी बदलाव हुआ है। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं और 2017 में भी उन्होंने राजद का साथ छोड़कर भाजपा (BJP) के समर्थन से अपनी सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी।

बिहार में हुए सियासी घटनाक्रम को विपक्ष की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है। वैसे ही आप भी इस सच्चाई है कि बिहार देश भर में असर डालने वाले बदलाव की धरती रही है। संपूर्ण क्रांति के नायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Loknayak Jayaprakash Narayan) ने अपने समय की सबसे ताकतवर नेता मानी जाने वाली इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को सत्ता से बेदखल करने में कामयाबी हासिल की थी। बिहार के निकट पुरी ठाकुर ने समाज में बदलाव की बड़ी शुरुआत की थी। यदि प्राचीन भारत के इतिहास को देखा जाए तो मगध राज्य में आचार्य चाणक्य ने शक्तिशाली महाराज नंद का गुरूर तोड़ा था।

आचार्य चाणक्य ने दिया था बड़ा संदेश

यदि पुराने इतिहास को देखा जाए तो महाराज नंद को आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) का अपमान करना महंगा पड़ा था। मगध राज्य में यज्ञ के आयोजन के दौरान आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) प्रधान आसन पर जाकर बैठ गए थे। चाणक्य की वेशभूषा को देखकर महाराज नंद ने उनका काफी अपमान किया और उन्हें आसन से उठने का आदेश दे दिया था। इससे क्रोधित होकर आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) में भरी सभा में नंद वंश के राजा से बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी।

उनका कहना था कि व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर होता है। ऊंचे आसन पर बैठने से कोई ऊंचा नहीं हो जाता। बाद में आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) ताकतवर नंद राजा का गुरूर तोड़ने में कामयाब हुए थे और उन्होंने एक साधारण से बालक राजकुमार चंद्रगुप्त को शिक्षा दीक्षा देकर सम्राट की गद्दी पर बिठाने में कामयाबी हासिल की थी। इस कदम के जरिए आचार्य चाणक्य ने बड़ा संदेश देने की कोशिश की थी।

जेपी के सामने इंदिरा को टेकने पड़े घुटने

बिहार संपूर्ण क्रांति (Bihar Sampoorna Kranti) के नायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Nayak Loknayak Jayaprakash Narayan) की धरती रही है। जेपी के आंदोलन के सामने उस समय की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी को भी घुटने टेकने पड़े थे और उनके हाथ से सत्ता छिन गई थी। आयरन लेडी कहीं जाने वाली इंदिरा गांधी न तो जेपी को मनाने में कामयाब हो पाईं और न उनका आंदोलन खत्म कराने में। उन दिनों बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार के कारण देश की जनता का आक्रोश चरम पर था। गुजरात में कांग्रेस सरकार (Congress Government) के खिलाफ छात्रों ने बड़ा आंदोलन छेड़ दिया था। 1974 में शुरू हुए इस आंदोलन को पुलिसिया कार्रवाई से कुचलने की कोशिश की गई तो छात्रों का गुस्सा और भड़क उठा।

इस आंदोलन को जेपी का समर्थन हासिल था और बाद में यह आंदोलन बिहार की राजधानी पटना तक पहुंच गया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Nayak Loknayak Jayaprakash Narayan) ने पहले इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया और बाद में इसका नेतृत्व किया। जेपी की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। जेपी की अगुवाई में क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में भड़क उठी थी।

जेपी की अगुवाई में वही बदलाव की बयार

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Former Prime Minister Indira Gandhi) को चुनावी धांधली का दोषी ठहराया था और उनका चुनाव रद्द कर दिया था। इंदिरा गांधी के 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद इंदिरा गांधी (Former Prime Minister Indira Gandhi) ने 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी थी। दरअसल इसी दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में ऐतिहासिक रैली का आयोजन किया गया था जिसे लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने संबोधित किया था।

अपने संबोधन के दौरान लोकनायक ने इंदिरा गांधी से इस्तीफा देने की मांग की और प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां पढ़ते हुए नारा दिया था कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। बाद में इमरजेंसी के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Loknayak Jayaprakash Narayan) समेत तमाम नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया मगर 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा। लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Loknayak Jayaprakash Narayan) के मजबूत नेतृत्व की वजह से ही देश में बदलाव की यह बयार बही थी।

कर्पूरी ठाकुर ने भी उठाए थे बड़े कदम

बदलावों की दिशा में काम करने वाले बिहार के एक और नेता कर्पूरी ठाकुर को याद करना जरूरी है। कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 में बिहार में पहली विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद वे विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। वे पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे और अपने दो मुख्यमंत्रियों काल में वे कुल मिलाकर ढाई साल ही मुख्यमंत्री रह सके मगर इतने कम समय में ही उन्होंने बिहार के समाज पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।

कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को को 1967 में पहली बार बिहार का डिप्टी सीएम बनने का मौका मिला था और इस दौरान उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करने का बड़ा फैसला लिया था। हालाकि इस फैसले के कारण उन्हें तमाम हमले भी जेल में पड़े मगर सच्चाई यह है कि इस फैसले के जरिए उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाने में बड़ी कामयाबी हासिल की। शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने मिशनरी स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई शुरू कराई। गरीब बच्चों की स्कूल की फीस माफ करने का कदम भी उन्होंने ही उठाया था। देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे जिसने मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी।

समाज को दिया बदलाव का संदेश

1977 में बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने मुंगेरीलाल कमीशन (Mungerilal Commission) की सिफारिशों को लागू किया था। इसके जरिए राज्य की नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था लागू हुई। हालांकि इस फैसले को लेकर उन्हें सवर्णों का बड़ा हमला भी खेलना पड़ा। सवर्णों की जबर्दस्त नाराजगी के बावजूद कर्पूरी ठाकुर ने अपने पैर वापस नहीं खींचे। वे उस दौर में भी अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन देने की कोशिश में जुटे हुए थे।

किसी भी अंतरजातीय विवाह की जानकारी मिलने पर वे उसमें शिरकत करने के लिए जरूर पहुंचते थे और उनका कहना था कि इसके जरिए समाज में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। बिहार की सत्ता में दबे और पिछड़े लोगों की भागीदारी की जमीन कर्पूरी ठाकुर ने ही तैयार की थी। वे समतामूलक समाज के हिमायती थे और उन्होंने ईमानदारी के ऐसी मिसाल कायम की कि जिस समय उनका निधन हुआ, उस समय उनके पास एक मकान तक नहीं था। अपने सियासी जीवन में बड़े कदमों की वजह से कर्पूरी ठाकुर बदलाव का बड़ा संदेश देने में कामयाब हुए थे।

Deepak Kumar

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