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Bihar Politics: रामविलास पासवान के बंगले का चिराग जलाए न रख सके चिराग
Bihar Politics: दलित नेता रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का कुनबा बिखर चुका है।
Bihar Politics: दलित नेता रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का कुनबा बिखर चुका है। झोपड़ी पर बना बंगला बागियों की बगावत से ढह गया है। क्या पासवान के घर में उनके राजनीतिक चिराग से आग लगी या फिर चिराग को बुझाने की कोशिश हुई। रामविलास पासवान अपने राजनीतिक सफर में केंद्र की राजनीति में हमेशा बने रहे। सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने देश के 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया, लेकिन इस सबके बावजूद बिहार की सियासत में वह अपनी लोक जनशक्ति पार्टी को खड़ा नहीं कर सके। हालांकि वह नौ बार सांसद और दो बार राज्यसभा सदस्य रहे।
पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगरिया जिले के शाहरबन्नी गांव में अनुसूचित जाति परिवार में हुआ था। उनकी पहली शादी बाल विवाह थी जो कि 1960 के दशक में हुई थी। उनकी पत्नी राजकुमारी शादी के समय महज 13 साल की थीं। रामविलास उस समय 14 साल के थे। शादी के बाद कई साल तक दोनों गांव में रहे फिर पटना आये। 1967 में एमएलए बनने के बाद राजकुमारी देवी, रामविलास पासवान के साथ आर ब्लॉक स्थित एमएलए फ्लैट में रहीं। फिर रामविलास पासवान एमपी बन गए। सालों तक सबकुछ ठीक रहा, लेकिन फिर सब बदल गया। उनकी बेटी आशा पासवान जिसकी अब शादी हो चुकी है और पटना में रहती है उसने एक बार कहा था कि याद नहीं पापा हमसे कब अलग हुए, लेकिन मैं शायद तब 7 साल की थी।
लोकसभा नामांकन पत्रों को चुनौती दिये जाने के बाद पासवान ने खुलासा किया था कि 1981 में उन्होंने पहली पत्नी राजकुमारी को तलाक दे दिया था। उनकी पहली पत्नी राजकुमारी से उषा और आशा दो बेटियां हैं। 1983 में, अमृतसर से एक एयरहोस्टेस और पंजाबी हिन्दू रीना शर्मा से पासवान ने दूसरा विवाह किया। चिराग पासवान इन्हीं रीना पासवान के पुत्र हैं जो अभिनेता से राजनेता बने हैं।
पासवान चमत्कारी नेता थे। 1977 में वह हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से पहली बार जनता पार्टी की टिकट से चुनाव जीते और पहले ही चुनाव में उन्होंने सर्वाधिक वोटों से जीतने का विश्व रिकॉर्ड बनाया। तब से वे लगातार हाजीपुर से चुनाव लड़ते रहे। इसी दौरान दूसरे चुनाव में श्री पासवान ने सर्वाधिक मतों से जीतने के अपने ही रिकॉर्ड को देखकर उससे भी अधिक मतों से जीत कर दोबारा अपने नाम विश्वस्तरीय रिकॉर्ड में दर्ज कराया। पासवान को लोग राजनीति का मौसम विज्ञानी भी कहते थे जो हवा का रुख भांप कर फैसले लिया करते थे।
चिराग पासवान का राजनीतिक सफर पासवान के समय ही शुरू हो गया था और यह मान लिया गया था कि पासवान को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी मिल गया है। 2014 में पासवान को भाजपा के साथ लाने का श्रेय चिराग पासवान को दिया गया था। 2014 में भाजपा से समझौते के बाद हुए चुनाव में लोजपा के खाते में 7 सीटें आई और मजबूत चुनाव की रणनीति ने लोजपा के खाते में 6 सीटें डालीं। लेकिन 2019 में जदयू के साथ आ जाने के बाद लोजपा ने चुनाव के दौरान तेवर बदल दिए।
चिराग पासवान की जिद की सियासत दूसरे राजनीतिक दलों को हजम नहीं हुई। लेकिन चिराग की जमीन पर मजबूती गठबंधन धर्म की मजबूरी बन गई थी। लेकिन चिराग जमीन पर पकड़ बनाए नहीं रख सके। विधानसभा चुनावों में यह साबित भी हुआ। 2020 के चुनाव में वह भाजपा से दूर चले गए लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ। अंततः चाचा पशुपति नाथ पारस को अध्यक्ष बना दिया गया और चिराग पिता की विरासत से दूर हो गए चूंकि बाकी सांसद भी चाचा के साथ चले गए।
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