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Bihar Politics: नीतीश के एक दांव से बदल जाएगा आरक्षण का सिस्टम... जानें क्या कुछ बदलेगा बिहार में
Bihar Politics: बिहार में जातिगत सर्वे के बाद अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75 फीसदी करने का प्रस्ताव दिया है। इसी में 10 प्रतिश आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को भी मिलेगा।
Bihar Politics: 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक और बड़ा दांव चल दिया है। उन्होंने मंगलवार को विधानसभा में आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव रख दिया। अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता है तो बिहार में आरक्षण का दायरा 65 प्रतिशत हो जाएगा। इसके अलावा 10 प्रतिशत आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों का भी होगा। यानी, कुल मिलाकर 75 प्रतिशत आरक्षण हो जाएगा। केवल 25 कोटा सामान्य रह जाएगा।
किसका कितना कोटा बढने का प्रस्ताव?-
बिहार में मौजूदा समय में ओबीसी और ईबीसी को 30 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। इसमें 18 प्रतिशत ओबीसी को और 12 प्रतिशत ईबीसी का कोटा है। यानी, अब नीतीश सरकार ने इनका कोटा 13 प्रतिशत और बढ़ाने का प्रस्ताव विधानसभा में रखा है। वहीं एससी का कोटा 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का प्रस्ताव दिया है। एसटी का कोटा 1 प्रतिशत से बढ़ाकर 2 प्रतिशत किए जाने का प्रस्ताव सरकार की ओर से विधानसभा में रखा गया है।
इन सबके अलावा, बिहार में अभी 3 प्रतिशत आरक्षण आरक्षित श्रेणी की महिलाओं को भी मिलता है। इनमें ईडब्ल्यूएस कोटे की महिलाएं शामिल नहीं हैं। ये आरक्षण सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मिलता है।
तो फिर आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव क्यों?-
बिहार में जब नीतीश सरकार ने जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए थे, तभी से ही जितनी आबादी, उतनी हक की बातें कही जा रही थीं। सर्वे के मुताबिक, बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है। इनमें 27 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग और 36 प्रतिशत अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी है। यानी, ओबीसी की कुल आबादी 63 प्रतिशत है। वहीं अनुसूचित जाति की आबादी 19 प्रतिशत और जनजाति 1.68 प्रतिशत है। जबकि, सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 प्रतिशत है।
चूंकि, पिछड़ा वर्ग की आबादी राज्य में सबसे ज्यादा है, इसलिए अब उनका कोटा सबसे ज्यादा बढ़ाने का प्रस्ताव नीतीश कुमार ने विधानसभा में रखा है।
क्या टूट गई आरक्षण की सीमा?-
संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। शुरुआत में आरक्षण की व्यवस्था केवल 10 साल के लिए थी। उम्मीद थी कि 10 साल में पिछड़ा तबका इतना आगे बढ़ जाएगा कि उसे आरक्षण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। पर ऐसा हुआ नहीं। फिर 1959 में संविधान में आठवां संशोधन कर आरक्षण 10 साल के लिए बढ़ा दिया गया। फिर 1969 में संविधान में 23वां संशोधन कर आरक्षण बढ़ा दिया। तब से हर 10 साल में संविधान में संशोधन होता है और आरक्षण 10 साल के लिए बढ़ जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था बड़ा फैसला-
सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला दिया था।तब सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी। शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती।
अभी किसे कितना मिल रहा है आरक्षण?-
फिलहाल, देश में 49.5 प्रतिशत आरक्षण है। जिसमें ओबीसी को 27 प्रतिशत, एससी को 15 प्रतिशत और एसटी को 7.5 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को भी 10 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। इस हिसाब से देखा जाए तो देश में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी के पार जा चुकी है। हालांकि, पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने को सही ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये कोटा संविधान के मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाता।
बिहार में भी अब तक आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत ही थी। ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण इससे अलग मिलता था, लेकिन अब अगर बिहार में नीतीश सरकार का प्रस्ताव पास हो जाता है, तो आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा टूट जाएगी।