TRENDING TAGS :
Employment in Bihar: बिहार में 10 लाख नौकरी, 10 लाख रोजगार देना कहां संभव?
Employment in Bihar: बिहार में 3.10 लाख कर्मी, 3.80 लाख पेंशनर और बाकी शिक्षकों पर ही पूरे बजट का एक चौथाई खर्च। राज्य का कुल बजट अभी 2,37,691 करोड़ जबकि सैलरी, पेंशन, मानदेय में खर्च 59,760 करोड़।
Employment in Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में नौकरी-रोजगार को राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के युवा नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने बड़ा मुद्दा बना दिया था। बिहार के किसी चुनाव में यह भी मुद्दा हो सकता है, पहली बार दिखा। तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) ने तत्कालीन विपक्षी तेजस्वी यादव की ओर से की गई उस घोषणा की हंसी उड़ाई थी, जिसमें उन्होंने सरकार बनाने पर पहली कैबिनेट से 10 लाख नौकरियों का प्रस्ताव पास कराने की बात कही थी।
उस समय तेजस्वी हार गए, लेकिन अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ सरकार में उप मुख्यमंत्री बन चुके हैं। 16 अगस्त को नई सरकार की पहली कैबिनेट निकल गई, लेकिन सिर्फ एक मुद्दे- जल जीवन हरियाली के विस्तारीकरण पर चर्चा हुई। इससे पहले 15 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव की पुरानी घोषणा 10 लाख नौकरी-सृजन पर अमल करने के साथ 10 लाख और रोजगार-सृजन की बात कह दी। लेकिन, अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि इनके लिए पैसा कहां से आएगा?
शराबबंदी के कारण भारी राजस्व घाटा
यह सवाल इसलिए है कि बिहार ने चालू वित्त वर्ष के लिए जितनी राशि का बजट पेश किया था, उसमें से एक चौथाई से ज्यादा तो फिलहाल कार्यरत कर्मियों की सैलरी, पेंशन और मानदेय पर खर्च हो जा रहे हैं। बुनियादी सुविधाओं की जद्दोजहद के बीच शराबबंदी के कारण भारी राजस्व घाटा सह रहे प्रदेश के बजट का 25 प्रतिशत से ज्यादा सैलरी, पेंशन और मानदेय में तब जा रहा है, जब स्थायी कर्मियों की संख्या करीब 3.10 लाख है और पेंशनर लगभग 3.80 लाख। बाकी खर्च शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मचारी एवं संविदा शिक्षक पर हैं।
सबसे ज्यादा संभावना वाले RJD के दो मंत्री मांगेंगे पैसा
बिहार में नौकरी (Job in Bihar) या संविदा बहाली (Contract Basis Job), किसी भी तरह की संभावना सबसे ज्यादा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में है। शिक्षकों की कमी का हाल ऐसा है कि जिन विद्यालयों को सरकार ने उत्क्रमित किया, वहां वर्षों से एक शिक्षक की पोस्टिंग नहीं हो सकी है। ऐसे उदाहरण राजधानी पटना तक में हैं। बाकी जिलों और जिला मुख्यालय से दूर के स्कूलों का हाल समझना मुश्किल नहीं है। कई ऐसे स्कूल हैं, जो गणित-विज्ञान के शिक्षकों के बगैर ही चल रहे हैं। संविदा पर शिक्षकों की बहाली के दौरान भी इन विषयों के शिक्षकों के पद खाली रह गए।
स्वास्थ्य विभाग का हाल भी 'नासाज'
कुछ यही हाल स्वास्थ्य विभाग का है, जहां डॉक्टरों की भारी कमी के साथ मेडिकल उपकरणों के लिए टेक्नीशियन नहीं रखे जा सके हैं। अगर सभी पीएचसी, एपीएचसी, सीएचसी में एक्स-रे और पैथो जांच जैसी मूलभूत सुविधाएं और सभी सदर अस्पतालों में इमरजेंसी वार्ड या आईसीयू जैसी जरूरी सुविधाएं पूरी तरह शुरू करनी होगी तो भारी संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों के साथ डॉक्टरों की बहाली करनी होगी।
वित्त मंत्री JDU के
शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग की जरूरतों को ही मानक स्तर पर पूरा करना हो तो 10 लाख का वादा पूरा हो जाएगा, लेकिन ऐसा होना बेहद मुश्किल है। नई सरकार में शिक्षा मंत्री भी राजद से हैं और स्वास्थ्य विभाग तो खुद तेजस्वी यादव ने संभाला है। तेज प्रताप यादव की जगह तेजस्वी के स्वास्थ्य विभाग संभालने की एक बड़ी वजह नौकरी देने की संभावना भी बताई जा रही है। दोनों विभाग तेजी से खाली पदों का रिकॉर्ड और जरूरी पदों के सृजन का प्रस्ताव दे भी दें तो उसे जदयू के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी के पास आना है।
सरकारी खजाने की हालत खस्ता
विजय कुमार चौधरी अब तक शिक्षा मंत्री रहे थे। इसलिए शिक्षा विभाग में संविदा शिक्षकों की नियुक्ति का पूरा गणित उनकी समझ में है। स्वास्थ्य विभाग की जरूरतों को समझने में उन्हें भी समय लगेगा। यह सब हो भी गया तो सवाल इतने पदों की सृजन-स्वीकृति के लिए खजाने की हालत का आएगा। शराबबंदी के कारण राजस्व का भारी नुकसान हुआ है। शराब से बिहार को एक साल में अधिकतम 3217 करोड़ रुपए तक उत्पाद कर आ जाता था, जिसे आम लोगों के स्वास्थ्य के मद्देनजर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बंद करना स्वीकार किया था।
सिर्फ राशि का संकट ही नहीं, संख्या को लेकर भी चौंक रहे लोग
चुनावी वादे अपनी जगह, लेकिन जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन के नए नेता के रूप में स्वतंत्रता दिवस समारोह के मंच से 10 लाख नौकरी-सृजन के साथ 10 लाख और रोजगार की बात कह दी तो सवाल उठने लगा है, कि इतनी भारी संख्या में लोगों को नौकरी देना आसान नहीं होगा। बाकी संसाधनों का विकास भी करना होगा, सिर्फ नौकरी देने से काम नहीं चलेगा। विपक्ष-पक्ष के राजनेता जो आरोप-बचाव करें, लेकिन हकीकत यह है कि अभी के हिसाब से मानव संसाधन के लिए अन्य संसाधनों को भी बढ़ाना होगा। टेक्नीशियन रखे जाएंगे तो उनके लिए उपकरण भी खरीदने होंगे।
समझें खर्च का गुणा-गणित
इसी तरह शिक्षक रखे जाएंगे तो क्लास लेने की व्यवस्था भी दुरुस्त करनी होगी। अन्य विभागों में भी मानव संसाधन के हिसाब से इसी तरह अन्य जरूरी संसाधनों को बढ़ाना होगा। फिलहाल, राज्य में लगभग 3.10 लाख कर्मचारी हैं, जो खुद को बिहार सरकार का कर्मी कह सकते हैं। इसके अलावा, 3.80 लाख पेंशनर को भुगतान जा रहा है, जिनके लिए बाकी संसाधन की जरूरत नहीं। इन दोनों के मद में करीब 3800 करोड़ रुपए महीने खर्च हो रहे हैं। इसके अलावा, 330 करोड़ रुपए कॉलेज-विश्वविद्यालय के शिक्षकों और गैर-शैक्षणिक कर्मियों पर माहवार खर्च हो रहे हैं। इनसे ज्यादा स्कूल में कार्यरत शिक्षकों और संविदा शिक्षकों पर 850 करोड़ रुपए प्रतिमाह खर्च हो रहे हैं।
हवा-हवाई गणित से नहीं चलेगा काम
बिहार सरकार ने कई अन्य राज्यों की तरह कोरोना के दौरान नुकसान की भरपाई के लिए इनके भुगतान में कटौती नहीं की थी। इन पर प्रतिमाह करीब 4980 करोड़ रुपए, यानी सालाना 59,760 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। यह राशि, बिहार के सबसे भारी शिक्षा विभाग के वार्षिक बजट 39,191 करोड़ से भी भारी है। ऐसे में फिलहाल सिर्फ हवा-हवाई गणित ही बैठाया जा सकता है कि 10 लाख नौकरियों पर सरकार कितना खर्च करेगी और यह पैसा कहां से लाएगी। बाकी 10 लाख रोजगार सृजन के लिए बैंकों से लोन दिलाने या किसी योजना के तहत सब्सिडी पर पैसा देना कहां तक संभव होगा, यह भी आने वाला वक्त ही बताएगा। निश्चित तौर पर इसके लिए नई महागठबंधन सरकार और खासकर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मिलकर कुछ नया ही रास्ता सोचना होगा।
बिहार में सरकारी डॉक्टरों की संख्या
बीते वर्ष सरकार ने कहा था कि बिहार में 40,000 डॉक्टर विभिन्न स्थानों पर पदस्थापित हैं। वहीँ आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सहजानंद सिंह कहते हैं कि राज्य सरकार ने कोरोना और उसके बाद नियुक्तियों में तेजी लाई और करीब 7,500 डॉक्टर बिहार के अस्पतालों को दिए। इसके अलावा 2,000 डॉक्टर मेडिकल कॉलेजों को मिले हैं। कॉलेजों को संविदा वाले डॉक्टर मिले हैं, जबकि बाकी अस्पतालों में स्थायी और संविदा दोनों हैं।