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Bihar Land Survey: बिहार में जमीन सर्वे, दस्तावेज जुटाने में ही मारामारी
Bihar Land Survey: बिहार सरकार ने भू-स्वामियों को जमीन का मालिक होने के लिए सबूत के तौर पर कुछ दस्तावेज दिखाने को कहा है। इन्हीं दस्तावेजों को जुटाने में लोगों को कई तरह की परेशानी हो रही है, खास तौर पर उन्हें जो राज्य के बाहर मेहनत मजदूरी करते हैं।
Bihar Land Survey: बिहार के करीब 45,000 गांवों में इन दिनों जमीन का सर्वेक्षण हो रहा है। इस प्रक्रिया को जुलाई 2025 तक पूरा होना है।बिहार राज्य सरकार का मानना है कि इस सर्वे के पूरा होने के बाद जमीन से जुड़े विवाद के 95 प्रतिशत मामले कम हो जाएंगे।
मांगे जा रहे सबूत
बिहार सरकार ने भू-स्वामियों को जमीन का मालिक होने के लिए सबूत के तौर पर कुछ दस्तावेज दिखाने को कहा है। इन्हीं दस्तावेजों को जुटाने में लोगों को कई तरह की परेशानी हो रही है, खास तौर पर उन्हें जो राज्य के बाहर मेहनत मजदूरी करते हैं। लोगों में डर है कि कागजात न दिखाने पर कहीं उनकी जमीन छिन न जाए। लोग कागज जुटाने में ही हैरान परेशान हैं। सर्वे शुरू होने से पहले सभी पंचायतों में ग्राम सभाएं हो रही हैं और लोगों को बताया जा रहा है कि जमीन पर दावा करने के लिए उन्हें कौन-कौन से दस्तावेज जमा करने होंगे। इसमें पूर्वजों का मृत्यु का प्रमाण पत्र, मालगुजारी रसीद और खतियान की कॉपी शामिल हैं। जमीन यदि दान की है या जमींदार द्वारा बंदोबस्त की गई है तो फिर दान पत्र या बंदोबस्त से संबंधित दस्तावेज दिखाना होगा। जिस जमीन पर दावा किया जा रहा है, उस भूखंड की चौहद्दी भी दर्ज करनी होगी।
इसके बाद सर्वे कर्मी भूखंड पर जाकर जांच करेंगे, उस वक्त जमीन मालिक या उसके प्रतिनिधि का होना अनिवार्य है। लेकिन अगर, उस वक्त किसी और ने दावा कर दिया तो उसे भी दर्ज किया जाएगा। तय अवधि के बीच किसी तरह की आपत्ति नहीं होने पर प्रारूप प्रकाशन के बाद अंत में जमीन उसके वर्तमान मालिक के नाम पर दर्ज हो जाएगा। बिहार में आजादी के पहले जमीन का सर्वे किया गया था, बाद में साठ के दशक में फिर सर्वे किया गया हालांकि यह पूरा नहीं हो पाया। सरकार के पास कोई अपडेट रिकॉर्ड नहीं है कि जमीनों का वर्तमान मालिक कौन है। लोगों के पूर्वजों के नाम से जमीन है और उन्हीं के नाम से भू-लगान की रसीद कट रही है। कई जमीनें ऐसी हैं, जिनका खाता-खेसरा तक गायब है।
बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनकी पुश्तैनी जमीन का मौखिक बंटवारा हुआ है। उनके पास कोई लिखित दस्तावेज नहीं है। दिक्कत ये है कि सर्वे के लिए मौखिक बंटवारा मान्य नहीं है। ऐसे लोगों के लिए यह परेशानी का सबब बन गया है। बहरहाल, एक बार अगर सर्वे का काम पूरा हो जाता है तो डिजिटल होने के कारण जमीन का रिकॉर्ड पारदर्शी हो जाएगा और पता चल सकेगा कि जमीन का असली मालिक कौन है। इससे खरीद-बिक्री में धोखाधड़ी की आशंका भी कम हो जाएगी और अदालतों में मुकदमों के बोझ में खासी कमी आ जाएगी। बिहार में सबसे ज्यादा हत्याएं भूमि विवाद में होती हैं। सर्वे में जनता के लिए दिक्कतें कई हैं। आम जन कागजातों के लिए चक्कर ही लगाते रह जाएंगे। भू-राजस्व विभाग के मंत्री ने भी कुछ दिनों पहले यह स्वीकार किया था कि उनका विभाग भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है और यहां बिना पैसे के कोई काम नहीं होता।