×

LJP Crisis: विधानसभा चुनाव में ही पड़ी थी लोजपा में बगावत की नींव, चिराग को अड़ियल रवैया पड़ा महंगा

LJP Crisis : चिराग पासवान का हर सियासी दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। लोजपा में से सिर्फ चिराग को छोड़कर बाकी सभी पांच सांसदों ने बगावती तेवर अपना लिया है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Shivani
Published on: 14 Jun 2021 5:16 AM GMT (Updated on: 14 Jun 2021 5:17 AM GMT)
LJP Crisis: विधानसभा चुनाव में ही पड़ी थी लोजपा में बगावत की नींव, चिराग को अड़ियल रवैया पड़ा महंगा
X

LJP Crisis: लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के पिछले साल अक्टूबर में हुए निधन के बाद उनके बेटे चिराग पासवान (Chirag Paswan) का हर सियासी दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Chunav 2019) में लोजपा 6 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी मगर अब इनमें से सिर्फ चिराग को छोड़कर बाकी सभी पांच सांसदों ने बगावती (Sansad Bagawat) तेवर अपना लिया है। इन सांसदों में हाजीपुर सीट से जीतने वाले चिराग के चाचा (Chirag Paswan Uncle) पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) भी शामिल हैं।

दरअसल, लोजपा में इस टूट (LJP Me Tut) की पटकथा पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhan Sabha Election) के दौरान ही लिखी जा चुकी थी। एनडीए (NDA) से बाहर निकलकर चुनाव लड़ने के चिराग के फैसले से पशुपति पारस समेत अन्य वरिष्ठ नेता सहमत नहीं थे मगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ हमलावर रवैया अपनाने वाले चिराग ने लोजपा के अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया।

हालांकि इसे पार्टी का फैसला बताया गया मगर सच्चाई यह है कि पार्टी के अधिकांश नेता इस फैसले के खिलाफ थे। पार्टी की बुरी हार के बाद नेताओं की नाराजगी और बढ़ गई। अब इसका नतीजा पार्टी में बड़ी टूट के रूप में सामने आ रहा है।

एनडीए से अलग होकर उतारे प्रत्याशी

पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान का पिछले साल अक्टूबर में निधन हुआ था। उनके निधन के बाद पार्टी के मुखिया के रूप में चिराग पासवान की ताजपोशी हुई। हालांकि रामविलास पासवान की बीमारी के समय से ही पार्टी के अधिकांश फैसले चिराग पासवान ही ले रहे थे। रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग के सिर कांटों का ताज सजा था क्योंकि उन्हें तुरंत ही विधानसभा चुनाव में लोजपा की ताकत दिखानी थी।


चुनाव के पहले से ही चिराग पासवान लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला कर रहे थे और जदयू के अन्य नेताओं की ओर से इन हमलों का जवाब भी दिया जा रहा था। चुनाव से पहले से ही वे लगातार लोजपा के अकेले अपने दम पर ताकत दिखाने की बात कर रहे थे और बाद में दिल्ली में हुई लोजपा की बैठक में भी एनडीए से अलग होकर अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया गया।

चिराग के फैसले के खिलाफ थे अधिकांश नेता

जानकारों का कहना है कि लोजपा के अधिकांश नेता एनडीए से बाहर चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं थे मगर चिराग अपनी जिद पर अड़े हुए थे। पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले पर भी सांसदों में टूट की बात सामने आई थी मगर बाद में चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस ने इस तरह की खबरों को गलत बताते हुए एकजुटता का दावा किया था।

सूत्रों के मुताबिक चिराग के फैसले का विरोध कर रहे पार्टी नेताओं की नाराजगी विधानसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद और बढ़ गई। पार्टी के अधिकांश नेताओं ने पार्टी की बुरी हार के लिए चिराग को ही जिम्मेदार ठहराया था।

जदयू को हराने में निभाई बड़ी भूमिका

विधानसभा चुनाव में लोजपा ने 143 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। चिराग की खास नाराजगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर थी और उन्होंने ऐलान कर रखा था कि वे किसी भी सूरत में चुनाव के बाद नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। इसी कारण उन्होंने 115 ऐसी सीटों पर लोजपा के उम्मीदवार उतारे थे जहां से जदयू प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे।


विधानसभा चुनाव में लोजपा कोई खास प्रदर्शन नहीं कर सकी और उसे सिर्फ एक सीट हासिल हुई मगर उसने कई सीटों पर जदयू प्रत्याशियों को हराने में बड़ी भूमिका निभाई है। चुनावी नतीजों की घोषणा के बाद जेडीयू ने 36 सीटों पर पार्टी की हार के लिए लोजपा को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया था।

एकमात्र विधायक ने भी छोड़ दिया साथ

चुनाव के बाद चिराग को उस समय भी बड़ा झटका लगा था जब मटिहानी सीट से जीतने वाले पार्टी के एकमात्र विधायक रामकुमार शर्मा ने भी जदयू की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।

चुनाव परिणाम के आने के बाद कई जिलाध्यक्षों समेत 200 से ज्यादा नेता पहले ही एलजेपी से इस्तीफा देकर जदयू में शामिल हो चुके हैं।

अलग गुट के रूप में मांगी मान्यता

अब पांच सांसदों की बगावत के बाद चिराग पासवान पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं। इन पांच सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर सदन में अलग गुट के रूप में मान्यता देने का अनुरोध किया है। इन सांसदों की अगुवाई रामविलास पासवान के छोटे भाई सांसद पशुपति पारस कर रहे हैं।

जानकारों का कहना है कि चिराग पासवान के रवैये से नाराज चल रहे सांसद प्रिंस कुमार, वीणा देवी, चंदन कुमार और महबूब अली कैसर ने पशुपति पारस को अपना नेता मान लिया है। अब इस मामले में लोकसभा अध्यक्ष के फैसले का इंतजार किया जा रहा है। अब लोकसभा में चिराग पासवान लोजपा के अकेले प्रतिनिधि रह जाएंगे।

नीतीश के करीबी सांसद ने निभाई भूमिका

लोजपा की इस टूट के पीछे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी और जदयू सांसद ललन सिंह की बड़ी भूमिका बताई जा रही है। जानकारों के मुताबिक पशुपति कुमार पारस और ललन सिंह की हाल के दिनों में कई बार मुलाकात हो चुकी है।

पटना में दोनों नेताओं के बीच कई मुलाकातों के दौरान लंबी बातचीत हुई है। दिल्ली में भी दोनों नेताओं ने आपसी संवाद का सिलसिला कायम रखा था। माना जा रहा है कि लोजपा के अन्य सांसदों के साथ भी ललन सिंह का संपर्क बना हुआ था।

पारस को मिल सकता है मंत्री पद का तोहफा

मौजूदा समय में मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार की चर्चाएं भी काफी तेजी से चल रही हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि पशुपति पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी मौका मिल सकता है। 2019 में दोबारा कमान संभालने के बाद पीएम मोदी जल्द ही अपने मंत्रिमंडल का पहला विस्तार करने वाले हैं। जदयू ने भी इस बार मंत्रिमंडल में शामिल होने की सहमति दे दी है।


रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा कोटे का मंत्री पद रिक्त पड़ा हुआ है और जानकारों का कहना है कि इस पद पर अब पशुपति पारस को मौका मिल सकता है। जदयू ने पहले से ही चिराग पासवान के नाम पर वीटो लगा रखा है। पार्टी का कहना है कि चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव के दौरान जदयू और एनडीए को काफी नुकसान पहुंचाया है और इसलिए उन्हें अब मोदी मंत्रिमंडल में कोई मौका नहीं दिया जाना चाहिए। जदयू के तेवर को देखते हुए ब पारस को मंत्री पद का तोहफा भी मिल सकता है।

Shivani

Shivani

Next Story