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Anand Mohan Singh: जानें कौन है आनंद मोहन सिंह, जिनका जेल में रहते हुए रसूख अब तक बरकरार

Mafia Anand Mohan Singh: बिहार के बाहुबली नेता पूर्व सांसद आनंद मोहन किसी परिचय के मोहताज नहीं, जिनका नाम उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक बच्चों से लेकर बुजुर्गों की जुबान पर रहता है।

Jugul Kishor
Published on: 16 Feb 2023 5:15 PM IST
Anand Mohan Singh
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आनंद मोहन सिंह (फोटो: सोशल मीडिया)

Mafia Anand Mohan Singh: बिहार की राजनीति में हमेशा से ही बाहुबलियों का जोर रहा है। फिर चाहें वो शहाबुद्दीन, सूरजभान हों या फिर अपने बड़बोलेपन के लिए मशहूर अनंत सिंह। ऐसे ही बिहार के एक बाहुबली नेता पूर्व एमपी हैं आनंद मोहन सिहं। आनंद मोहन किसी परिचय के मोहताज नहीं, जिनका नाम उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक बच्चों से लेकर बुजुर्गों की जुबान पर रहता है। आनंद मोहन इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं। चर्चा का विषय है उनकी बेटी की शादी। आनंद मोहन कुछ दिन पहले ही बेटी की शादी के लिए जेल से पैरोल पर बाहर आये हैं। 15 फरवरी यानी कि कल उनकी बेटी की शादी हो गई शादी में बिहार के सीएम व कई दिग्गज नेता शामिल हुए। हम इस रिपोर्ट में आनंद मोहन के बारे में जानेंगे कैसे एक नेता बाहुबली बन गया।

कौन है आनंद मोहन (Mafia Anand Mohan Singh Biography)

आनंद मोहन बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। आनंद मोहन की राजनीति में एंट्री 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के दौरान हुई थी। आनंद मोहन राजनीति में महज 17 साल की उम्र में आ गये थे। जिसके बाद उन्होने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी। इमरजेंसी के दौरान पहली बार 2 साल जेल में रहे। आनंद मोहन का नाम उन नेताओं में शामिल है जिनकी बिहार की राजनीति में 1990 के दशक में तूती बोला करती थी।


आनंद मोहन के राजनीति गुरु

आनंद मोहन के राजनीतिक गुरु स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर समाजवादी नेता परमेश्वर कुंवर थे। बिहार में माना जाता है कि राजनीति जातिगत समीकरणों और दबंगई के आधार पर होती है। आनंद मोहन इन्ही सब बातों का फायदा उठाते हुए राजपूतों के नेता बन गये। साल 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भाषण जब भाषण दे रहे थे उस दौरान उन्हे आनंद मोहन न काले झंडे दिखाकर चर्चा में आ गये। जिसके बाद आनंद मोहन ने 1980 में समाजवादी क्रांति सेना कि स्थापना की। जिसके बाद उनका नाम भी अपराधियों की लिस्ट में जुड़ गया। इन्होने लोकसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गये। साल 1983 में आनंन मोहन को 3 महीने की सजा हो गयी।


पहली बार बने विधायक

आनंद मोहन ने साल 1990 में जनता दल के बैनर तले विधानसभा का चुनाव लड़ा। जिसमें उनको जीत भी मिल गयी। लेकिन उस दौरान वो बिहार के एक सांप्रदायकि गिरोह को लीड कर रहे थे जिसे प्राइवेट आर्मी कहा जाता है। विधायक रहते हुए उनकी बिहार के पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के की गैंग के किसी बात को लेकर ठन गयी। उस दौरान कोसी में गृहयुद्ध की जैसी स्थिति बन गयी थी माना जा रहा किसी भी समय ये तनातनी बड़ी लड़ाई में बदल सकती है।

बनाई खुद की पार्टी, पत्नी को बना दिया सांसद

साल 1993 में आनंद मोहन ने खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी बना ली। उसके बाद समता पार्टी के साथ हाथ मिला लिया। जिसके बाद उनकी पत्नी लवली आनंद की राजनीति में 1994 में एंट्री होती है। उनकी पत्नी वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़ती हैं और जीत जाती है। 1995 में एक ऐसा समय आया जब लालू यादव के सामने आनंद मोहन का नाम मुख्यमंत्री के तौर पर उभरने लगा। क्योंकि आनंद मोहन की पार्टी ने नीतीश की समता पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया था। लेकिन खुद तीन सीटों पर चुनाव लड़े और हार गये।

जेल में रहते हुए पहली बार बने सांसद

1996 में लोकसभा के आम चुनावों में आनंद मोहन लोकसभा की शिवहर सीट से चुनाव लड़ा और जीत गये। ये चुनाव आनंद ने जेल में रहते हुए लड़ी थी। इसके बाद 1998 में लोकसभा चुनावों में आनंद मोहन फिर इसी सीट विजयी हुए। लेकिन 1999 के आम चुनाव में बीजेपी के समर्थन के बावजूद वे जीत नहीं सके और राजद उम्मीदवार ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद तमाम प्रकार के प्रयोगों के बावजूद उनकी पत्नी और वे चुनाव नहीं जीत पाए।

जिलाधिकारी की हत्या में हुई सजा

आनंद मोहन ने जब से राजनीति में कदम रखा उसके बाद से उन पर कई मामले दर्ज किए गये। कई बार सलाखों के पीछे भी गये। लेकिन साल 1994 में एक मामला ऐसा आया जिससे बिहार सहित पूरे राज्य में भूचाल मच गया। 5 दिसंबर 1994 को गोपालगंज के दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की भीड़ ने पीट-पीटकर व गोली मारकर हत्या कर दी। इस भीड़ को आनंद मोहन ने उकसाया था। इस मामले में आनंद मोहन व उनकी पत्नी लवली आनंद समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया। हाईकोर्ट ने साल 2007 में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई। हालांकि साल 2008 में इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था। साल 2012 में आनंद मोहन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करवाने के लिए दया याचिका दायर की जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।



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Jugul Kishor

Jugul Kishor

Content Writer

मीडिया में पांच साल से ज्यादा काम करने का अनुभव। डाइनामाइट न्यूज पोर्टल से शुरुवात, पंजाब केसरी ग्रुप (नवोदय टाइम्स) अखबार में उप संपादक की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद, लखनऊ में Newstrack.Com में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। भारतीय विद्या भवन दिल्ली से मास कम्युनिकेशन (हिंदी) डिप्लोमा और एमजेएमसी किया है। B.A, Mass communication (Hindi), MJMC.

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