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Bihar Mathematics Guru: पूर्व सांसद को मसीहा बताने वाले बिहार के शिक्षक, नाम दर्ज है कई रिकॉर्ड बुक में
Mathematics Guru RK Srivastava: पूर्व सांसद आरके सिन्हा(RK Sinha) को मसीहा बताने वाले बिहार के एक शिक्षक का नाम कई रिकॉर्ड बुक में दर्ज है।
Mathematics Guru RK Srivastava: पूर्व सांसद आरके सिन्हा(RK Sinha) को मसीहा बताने वाले बिहार के एक शिक्षक का नाम कई रिकॉर्ड बुक में दर्ज है। वर्षों बाद नेशनल मीडिया की इन पर नजर पड़ी, तब तक ये वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लंदन, गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। आरके श्रीवास्तव पर हमेशा टैलेंट को सम्मान देने वाले पूर्व सांसद आरके सिन्हा (RK Sinha) की नजर पड़ी। बिक्रमगंज के छोटे शहर से निकालकर बिहार की राजधानी पटना में दिया इस वर्ष से पढ़ाने का मौका।
खुद मैथमेटिक्स गुरु(Mathematics Guru) ने बताया कि वर्षों से उनका सपना था कि मैं पटना में स्थाई रूप से पढ़ा सकू। जिस सपने को पूर्व सांसद आरके सिन्हा(RK Sinha) ने अब साकार कर दिया। अपने उपलब्धि और सफलता का श्रेय पूर्व राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा(RK Sinha) को देने वाले मैथमेटिक्स गुरु बताते हैं कि आज के युग में पूर्व सांसद आरके सिन्हा(RK Sinha) जैसा नेक इंसान मिलना मुश्किल है।
गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ाते
मैथमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव (Mathematics Guru RK Srivastava) ने बताया कि पूर्व सांसद आरके सिन्हा का आशीर्वाद मुझे और मेरे परिवार को निरंतर मिलता ही रहता है, चाहे मेरी भतीजी की शादी में की गई मदद हो या मेरे कैरियर को सवारने में, ये सारी बातें आरके श्रीवास्तव ने बताया।
वर्तमान में आर के सिन्हा की संस्था "अवसर ट्रस्ट"जो गरीब बच्चों के जीवन संवारने का काम करता है उसमें कोर्स डायरेक्टर और गणित शिक्षक के रूप में मैथमेटिक्स गुरु को मौका मिला है। कोरोना काल में आर के सिन्हा की संस्था अवसर ट्रस्ट से पढ़कर 7 गरीब स्टूडेंट्स आईआईटी और एनआईटी में पहुंचे।
मैथमेटिक्स गुरु ने बताया कि अवसर ट्रस्ट का दायित्व मिलने के बाद अपने गांव बिक्रमगंज के स्टूडेंट्स को अब समय नहीं दे पा रहा हूं इसलिए कुछ सीनियर स्टूडेंट्स और परिवारिक सदस्य अपने रोहतास के गरीब बच्चों को शाम को तीन से चार घंटे निशुल्क पढ़ाते हैं।
वे बताते हैं कि पिछले कई वर्षों से मैं बिक्रमगंज के स्टूडेंट्स को नहीं पढ़ा पा रहा हूं लेकिन खुशी इस बात की है कि मेरे कुछ सीनियर स्टूडेंट जो अब स्थानीय शिक्षक बन चुके हैं वह समय निकालकर शाम को 3 से 4 घंटे मेरे आग्रह पर निशुल्क पढ़ाते हैं इसके लिए मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं।
बातचीत को आगे बढ़ाते हुए मैथमेटिक्स गुरु ने बताया कि पूर्व सांसद आरके सिन्हा को मैं बाबूजी कहता हूं और वह भी मुझे बेटे की तरह प्यार देते हैं, उन्होंने कहा कि जब कोरोना के कारण वर्ष 2020 में सारी शैक्षणिक संस्थाएं बंद थीं तो देश के सभी शिक्षकों को घर का खर्च चलाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। इसका मुख्य कारण था कोचिंग इंस्टिट्यूट का बंद होना, आरके श्रीवास्तव ने बताया कि मसीहा के रूप में फिर एक बार पूर्व सांसद आरके सिन्हा का साथ मिला जो मुझे और मेरे परिवार को हमेशा मिलता रहता है।
देश-दुनिया में नाम कमाया बिहार का एक शिक्षक:
किसी ने सोचा भी नहीं था कि एकदिन गांव की दहलीज से निकलकर कोई देश-दुनिया के लिए खुद एक संदेश बन जाएगा। लेकिन ऐसा अक्सर देखा जाता है कि जो अभाव में रहते हैं वही दुनिया के मानचित्र पर अपनी विद्वता के बूते कृति खींचने में कामयाब साबित होते हैं।
ऐसे ही एक आम लड़के या यों कहें ऑटो चालक से गणितज्ञ बनने का सफर तय किया जो आगे चलकर एक इतिहास पुरुष बन जाएंगे ये किसे पता था। पर, ऐसा ही हुआ युवा गणितज्ञ आर के श्रीवास्तव के साथ। कल तक जो गांव की पगडंडियों तक सिमटे हुए थे वो एकदिन दुनिया के मानचित्र पर छा जाएंगे ये किसी को पता नहीं था।
हम बात कर रहे हैं बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज के रहने वाले आर के श्रीवास्तव की, जो खुद मुफलिसी में जिंदगी को गुजारते हुए गरीब और पिछले 14 वर्षों से अपने गांव के असहाय स्टूडेंट्स को 1 रूपया गुरु दक्षिणा लेकर इंजीनियर बना रहे हैं। आर के श्रीवास्तव अबतक 540 स्टूडेंट्स को बना चुके है इंजीनियर इसके अलावा अन्य प्रतिष्ठित प्रवेश परीक्षाओं में सफलता दिला चुके हैं और यह कारवां निरंतर जारी है।
जीवन में काफी उतार-चढ़ाव
जिंदगी के कई पहलुओं को बहुत करीब से आरके श्रीवास्तव(RK Srivastava Life Struggle)) को देखने का मौका मिला है। इन्होंने अपने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। मगर किसी भी परिस्थिति से हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य पर चलते हुए एक दिन अपने मुकाम को पाने में कामयाब हुए।
राष्ट्रपति से सम्मानित हो चुके मैथमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव ने अपने घर को चलाने के लिए ऑटो रिक्शा तक चलाया। दरअसल इनके घर की माली हालत बहुत बूरी थी। बाल्यावस्था में ही इनके पिता का निधन हो गया। बड़े भाई ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली, तब आरके बहुत छोटे थे।
जब बड़े हुए तो पढ़ाई करना और बड़े भाई जब थक हारकर आते थे तो आरके ऑटो लेकर सड़कों पर कमाने निकल जाते थे। घर कि स्थिति में थोड़ी सुधार होने लगी। मगर आरके ने अपनी पढ़ाई के आगे कभी हार नहीं मानी। जिस क्लास में पढ़ते थे उसी क्लास के लड़कों को मैथेमैटिक्स पढ़ाने लगे। जब आमदनी होने लगी तो परिवार चलाने में सपोर्टिव साबित हुई।
मगर क्या बताउं होनी को कुछ और ही मंजूर था। जब घर की जिम्मेदारी पटरी पर लौटने लगी तो आरके श्रीवास्तव के बड़े भाई का असमय निधन हो गया। घर पर विपत्ति का पहाड़ टूट गया। सारी उम्मीदों पर पल में पानी फिर गया।
बिखरते परिवार पर जब नजर पड़ी आरके की तो उन्होंने हिम्मत बांधते हुए घर की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर आगे निकल पड़े। इस बूरे दौर में उनकी पढ़ाई ही इनके लिए वरदान साबित हुई। यहां से आरके श्रीवास्तव उभरकर निकले मैथेमैटिक्स गुरु के रुप में।