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पीएम मोदी ने नीतीश को नहीं दिया भाव, सिर्फ एक मंत्री पद से जदयू को करना पड़ा संतोष

Modi Cabinet Expansion 2021: केंद्रीय मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में जदयू की ओर से केवल रामचंद्र प्रसाद सिंह ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Shreya
Published on: 7 July 2021 9:04 PM IST
पीएम मोदी ने नीतीश को नहीं दिया भाव, सिर्फ एक मंत्री पद से जदयू को करना पड़ा संतोष
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Modi Cabinet Expansion 2021: मोदी कैबिनेट के विस्तार में जदयू (JDU) को सिर्फ एक मंत्री पद मिलना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। बुधवार को शाम हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल (Union Cabinet) के शपथ ग्रहण समारोह (Oath Ceremony) में जदयू की ओर से सिर्फ रामचंद्र प्रसाद (RCP) सिंह ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली। नीतीश के सिर्फ एक मंत्री पद पर तैयार होने के फैसले पर सियासी हलकों में आश्चर्य जताया जा रहा है।

कैबिनेट विस्तार के पहले चर्चाएं थीं कि जदयू को सम्मानजनक तरीके से तीन या चार मंत्री पद दिए जा सकते हैं मगर आखिरकार जदयू के कोटे में सिर्फ एक मंत्री पद ही गया। 2019 के चुनाव के बाद भी पीएम मोदी (PN Narendra Modi) की ओर से जदयू को एक कैबिनेट मंत्री पद का प्रस्ताव दिया गया था मगर उस समय नीतीश (Nitish Kumar) इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुए थे। उन्होंने जदयू के मोदी कैबिनेट (Modi Cabinet) से बाहर रहने का फैसला किया था। यही कारण है कि अब जदयू के तैयार होने पर हैरानी जताई जा रही है।

नीतीश कुमार (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पहले नीतीश ने ठुकरा दिया था प्रस्ताव

2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू और भाजपा दोनों ने बिहार की 17-17 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे। चुनावी नतीजों में जदयू को 16 सीटें हासिल हुई थीं जबकि भाजपा 17 सीटों सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। उस समय रामविलास पासवान की अगुवाई वाली लोजपा 6 सीटों पर विजय हासिल करने में कामयाब हुई थी। लोकसभा चुनावों के बाद पीएम मोदी की ओर से कैबिनेट में एक मंत्री पद का प्रस्ताव किए जाने पर नीतीश कुमार तैयार नहीं हुए थे और उन्होंने जदयू के मोदी कैबिनेट से बाहर रहने का फैसला किया था।

सियासी जानकारों का कहना था कि नीतीश कुमार मोदी कैबिनेट में ज्यादा मंत्री पदों की मांग कर रहे थे। पीएम मोदी के इस पर तैयार न होने के बाद नीतीश ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में जदयू के शामिल होने से मना कर दिया था।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अब पुराने प्रस्ताव पर ही करना पड़ा समझौता

दो साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद अब मोदी केबिनेट का विस्तार हुआ है और इस बार माना जा रहा था कि जदयू के तीन या चार नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी मगर इस बार भी ऐसा नहीं हो पाया है। इस बार भी नीतीश की पार्टी से सिर्फ एकमात्र चेहरे आरसीपी सिंह को मोदी कैबिनेट में मौका मिला है।

इसे लेकर बिहार के सियासी हलकों में अचरज भी जताया जा रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा कहते रहे हैं कि किसी को भी मंत्रिमंडल में शामिल करना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है। वही इस पर आखिरी फैसला लेंगे मगर नीतीश के तैयार होने के पीछे रहे दूसरे कारण बताए जा रहे हैं।

विधानसभा चुनाव के नतीजे बड़ा कारण

जदयू के कदम वापस खींचने के पीछे पिछले साल बिहार में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे भी बड़ा कारण बताए जा रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा जदयू से ज्यादा ताकतवर बन कर उभरी थी। विधानसभा चुनाव में भाजपा को 74 सीटों पर विजय हासिल हुई थी जबकि जदयू के खाते में सिर्फ 43 सीटें ही गई थीं।

हालांकि भाजपा ने अपने वादे को पूरा करते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री जरूर बना दिया मगर नीतीश कुमार भाजपा के सामने पहले से कमजोर साबित हो रहे हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि यही कारण है कि नीतीश कुमार पुरानी डील पर ही समझौता करने के लिए बाध्य हुए और जदयू को सिर्फ एक मंत्री पद से संतोष करना पड़ा।

नीतीश कुमार (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सीएम की कुर्सी बचाने की चर्चा

मीडिया के इस बाबत सवाल पूछने पर नीतीश कुमार ने सीधा जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि 2019 मैं जदयू के अध्यक्ष था और अध्यक्ष के रूप में मैंने फैसला किया था मगर अब आरसीपी सिंह जदयू के अध्यक्ष बन चुके हैं और पार्टी के संबंध में वही फैसला लेने के लिए अधिकृत हैं।

दूसरी ओर बिहार के सियासी हलकों में चर्चा है कि अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए नीतीश कुमार सिर्फ एक मंत्री पद से संतुष्ट हो गए। हाल के दिनों में भाजपा के कई नेता नीतीश की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने पीएम मोदी की ओर से किए गए फैसले का विरोध नहीं किया और जदयू को सिर्फ एक मंत्री पद से ही संतुष्ट होना पड़ा।

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