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Delhi via BIHAR: तीर 'छोड़ेंगे' नीतीश, बिहार भी न निकले और दिल्ली भी पहुंच जाएं...ऐसा होगा प्लान

Nitish Kumar: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होने के साथ आर-पार के मूड में नजर आ रहे हैं। अनुमान है कि, लालू यादव के बिहार लौटने के बाद राजनीतिक सरगर्मी और तेज होगी।

Shishir Kumar Sinha
Published on: 16 Aug 2022 3:25 PM IST
Delhi via BIHAR: तीर छोड़ेंगे नीतीश, बिहार भी न निकले और दिल्ली भी पहुंच जाएं...ऐसा होगा प्लान
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Nitish Kumar Future Politics: दो कदम आगे की बात है। और यह इसलिए है क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो कदम आगे बढ़ा चुके हैं, इस बार उसे पीछे नहीं खीचेंगे। शुरुआत गरमा-गरम चर्चा से और तलाश संभावनाओं की। तो, चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब इस नजरिए से आगे बढ़ेंगे कि बिहार भी हाथ से न जाए और दिल्ली भी मिल जाए। इसलिए, इन दिनों उनकी पार्टी जनता दल यूनाईटेड (JDU) और लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के विलय की चर्चा खूब उड़ रही है। ऐसा क्यों हो सकता है या इसकी संभावना ही नहीं और ऐसा होने के बाद क्या करना होगा, इस स्टोरी में पढ़िए बिहार के भविष्य की कहानी।

यह कहानी आज मौजूं इसलिए भी है, क्योंकि 2015 से बिहार में जिन आयोगों-बोर्डों का गठन होना मुश्किल था, वह भी हो रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंच से भी अपने उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की बातों का समर्थन दो कदम आगे बढ़कर करना शुरू कर दिया है। ऐसा लगता कि भाजपा से अलग होने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आर-पार के मूड में आ गए हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार।

विलय की चर्चा के पीछे क्या और आगे क्या?

विलय हुआ तो कुछ नया नहीं होगा। क्योंकि, जदयू और राजद निकले ही जनता दल से थे। दोनों के नेता तब भी लगभग यही चेहरे थे। नीतीश कुमार के साथ जॉर्ज फर्नांडीस थे, अब वह इस दुनिया में नहीं हैं। लालू प्रसाद अब भी राजद के सर्वेसर्वा हैं। पूछेंगे कि 2013-14 में साथ आए तो विलय क्यों नहीं हुआ? जवाब उसका भी है। उस समय महागठबंधन बना तो ढेर सारे चेहरे निकलकर आ गए थे नरेंद्र मोदी के खिलाफ। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ फिलहाल पहले वाले सारे चेहरे शांत पड़ गए हैं। मुलायम सिंह यादव सीन से बाहर हैं। ममता बनर्जी को सोनिया गांधी पसंद नहीं कर रहीं। राहुल गांधी अपनी पूरी ताकत आजमा कर किनारे हो चुके हैं। बाकी भी कोई नहीं। इस बीच बिहार में महाराष्ट्र जैसी 'भाजपाई साजिश' की बात कहते हुए नीतीश कुमार ने महागठबंधन का मुख्यमंत्री बनकर यह संदेश दिया है कि देश में वही इकलौते हैं, जिनके पास भाजपा को जवाब देने का माद्दा है। अब, विलय की चर्चा को यहीं से समझना होगा।

नीतीश, तेजस्वी को कुर्सी सौंपकर जाएंगे !

दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को केंद्र की राजनीति में उतरना है तो बिहार में उनके पास ताकत होना जरूरी है। बिहार में कुर्सी पर रहते हुए वह केंद्र में महागठबंधन को चेहरा नहीं बन सकते। इसलिए, अगर वह आगे बढ़े तो उन्हें यह कुर्सी छोड़नी होगी। जहां तक इस कुर्सी का सवाल है तो जिस दिन बिहार में जदयू-राजद के तमाम दावों से उलट एनडीए की सरकार गिरी और महागठबंधन की बनी। उसी दिन से यह बात फिजा में है कि नीतीश कुछ दिन बाद तेजस्वी यादव को कुर्सी देकर जाएंगे।

धुआं अंदर भी

सरकार बनने के तत्काल बाद पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और लालू-राबड़ी के बड़े बेटे तेज प्रताप का यह बयान भी आ गया कि हमलोग तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। मतलब, धुआं अंदर भी है। ऐसे में, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार आगे बढ़ना चाहेंगे तो भी सीधे-सीधे राजद के युवराज को मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं सौंप जाएंगे। 'चाणक्या स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च' के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं, "विलय की चर्चा के पीछे कई वजह संभव है। विलय होने पर बिहार में उस एक दल की सरकार होगी, जो अपने एक नेता को बिहार में और दूसरे नेता को दिल्ली में देखना चाहेगी। साथ ही, ऐसा करने से त्याग की छवि भी बनेगी जो फिलहाल उठ रही नकारात्मक आवाजों को दबाएगी।'

सब कुछ फिलहाल 'अगर' में

यह सब कुछ फिलहाल 'अगर' में है और लालू प्रसाद यादव के फिर बिहार आने के बाद इन सभी चर्चाओं को स्वरूप या तो सामने आएगा या फिर गायब हो जाएगा। जदयू को आगे बढ़ने के लिए तीर छोड़ना भी तो है

'तीर' का निशान भी वजह तो नहीं

विलय की चर्चा अपनी जगह, अगर नीतीश कुमार जदयू और इसके चुनाव चिह्न के साथ राज्य से बाहर निकलेंगे तो उन्हें परेशानी होगी। झारखंड में यह परेशानी सामने आ चुकी है। वहां झारखंड मुक्ति मोर्चा के चुनाव चिह्न में तीर शामिल है, जिसके कारण जदयू को यहां विधानसभा चुनाव के समय परेशानी और गतिरोध का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा, महाराष्ट्र में भी शिवसेना के चुनाव चिह्न में भी इसी तरह तीर का निशान शामिल है। संभव है कि अन्य राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों के भी चिह्नों में कहीं यह निशान हो। ऐसे में जदयू को राष्ट्रीय स्तर पर जाने के लिए इस चिह्न का भी त्याग करना पड़ेगा। इसके लिए कोई नया चिह्न ढूढ़ना ही होगा। ऐसे में अगर विलय की बात हो और चिह्न बदलने की मजबूरी भी तो एक 'तीर' से दो निशाने लगाए जा सकते हैं।

मतलब, चिन्ह बदलने के बहाने विलय हो या विलय के बहाने कोई नया चुनाव चिन्ह ले आया जाए। न तो जदयू और न ही राजद की ओर से फिलहाल विलय की चर्चाओं पर कोई विराम लगा रहा है और न कोई प्रतिक्रिया मिल रही है।

कल का 'असंभव' आज संभव हो रहा

फिलहाल, यह चर्चा और ज्यादा गरम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गांधी मैदान में स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान दिए भाषण के कारण भी गरम हुई है। मुख्यमंत्री ने तेजस्वी यादव की 10 लाख नौकरी-सृजन के वादे को अपनी सहमति दी और उससे आगे 10 लाख अन्य रोजगार की बात भी कह डाली। 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ने जब इतनी भारी संख्या में नौकरियों के सृजन की बात कही थी तो उनके प्रतिद्वंद्वी रहे नीतीश कुमार ने इसे असंभव करार दिया था। मतलब, अब जब यह संभव हो सकता है तो आगे चल रही चर्चाओं का संभव होना भी संभव है।



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Content Writer

अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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