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पटना के महावीर मंदिर ने शिक्षा मंत्री और स्वामी प्रसाद को दिखाया सच, रामचरितमानस में शूद्र नहीं, 'क्षुद्र' और समुद्र की बात
Ramcharitmanas Controversy: रामचरितमानस पर उठ रहे सवालों पर पटना महावीर मंदिर ने पहली बार छपे मानस का साक्ष्य दिया। 212 साल पुराने इस प्रथम संस्करण में काफी कुछ साफ है।
Ramcharitmanas Controversy: गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों पर पिछले कुछ समय से विवाद जारी है। रामचरितमानस पर विवाद की शुरुआत बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर (Pro. Chandrasekhar) के बयान से हुई थी। धीरे-धीरे ये आग उत्तर प्रदेश तक पहुंच गई। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य तो बिहार के शिक्षा मंत्री से भी आगे निकल गए। इस पूरे बवाल पर के केंद्र में एक शब्द है, 'शूद्र'। इस पर पटना के महावीर मंदिर ने मोर्चा खोल दिया है। महावीर मंदिर न्यास की तरफ से विवाद को हवा देने वाले को 'सच का आईना' दिखाया है।
रामचरितमानस पर उठाए गए सवालों पर महावीर मंदिर पूरी तैयारी के साथ उतरी। महावीर मंदिर न्यास ने उस रामचरितमानस को सामने लाया, जो पहली बार छपा था। आचार्य किशोर कुणाल (Acharya Kishore Kunal) ने तथ्य के तौर पर 212 साल पुराने मानस के प्रथम संस्करण को रखा। किशोर कुणाल ने बताया कि रामचरितमानस में 'शूद्र' नहीं बल्कि क्षुद्र लिखा है। उन्होंने विवाद खड़ा करने वाले बिहार के शिक्षा मंत्री और स्पा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को 'सच का सामना' करवाया।
क्या कहा था बिहार के शिक्षा मंत्री ने?
नालंदा खुला विश्वविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर (Chandrasekhar) ने बच्चों को बैकवर्ड और फॉरवर्ड पर जमकर पाठ पढ़ाया था। उन्होंने कहा था, कि आपको मालूम है कि मनुस्मृति को ज्ञान के प्रतीक बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने क्यों जलाया? गूगल पर आप देखेंगे तो पाएंगे कि मनुस्मृति में वंचितों और वंचितों के साथ-साथ नारियों को शिक्षा से अलग रखने की बात कही गई है। शिक्षा का अधिकार (Right to Education), संपत्ति का अधिकार (Right to property) न नारियों को था, न वंचितों को और न शूद्रों को। उसके बाद 15वीं-16वीं सदी में रामचरितमानस लिखी गई जिसमें तुलसीदास जी ने लिखा है कि पूजिये न पूजिये विप्र शील गुण हीना, शुद्र ना गुण गन ज्ञान प्रवीना...अगर ये विचारधारा चलेगा तो भारत को ताकतवर बनाने का सपना कभी पूरा नहीं होगा।
बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर (Chandrasekhar) ने कहा था कि, 'तुलसीदास की मनुस्मृति, रामचरित मानस और माधव सदाशिवराव गोलवलकर की बंच ऑफ थॉट्स जैसी किताबों ने देश में 85 प्रतिशत आबादी को पिछड़े रखने की दिशा में काम किया है। हिंदू ग्रंथ रामचरितमानस को मनुस्मृति की तरह जलाया जाना चाहिए। क्योंकि, यह समाज में 'जाति विभाजन' को बढ़ावा देता है। मंत्री के इसी बयान के बाद से देश की सियासत में उबाल आ गया है।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी खोला मोर्चा
बिहार के शिक्षा मंत्री के बाद सपा नेता और पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी रामचरितमानस के खिलाफ हल्ला बोल दिया। उन्हें भी चौपाई में 'शूद्र' शब्द पर आलोचना है। मामला जब पूरी तरह राजनीतिक हो गया। बीजेपी हमलावर हुई तो अखिलेश ने भी अपने नेता का सपोर्ट किया और खुद को 'शूद्र' भी बताया। बिहार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति भी अब गरमा चुकी है। साथ ही, इस मुद्दे पर देशभर में विमर्श शुरू हो गया।
शूद्र नहीं, 'क्षुद्र' और समुद्र की बात
इस पूरे विवाद पर पटना के महावीर मंदिर ने मोर्चा खोल रखा है। महावीर मंदिर न्यास ने बिहार के शिक्षा मंत्री और स्वामी प्रसाद मौर्य को सच का आईना दिखाया। रामचरितमानस पर उठाए गए सवालों पर महावीर मंदिर ने उस रामचरितमानस को सामने लाया, जो पहली बार छपा था। आपको बता दें,कि जिस रामचरितमानस का किशोर कुणाल ने उद्धरण दिया है वह 212 साल पुराने मानस के प्रथम संस्करण से लिया गया है। जिसमें 'ढोल, गंवार, 'क्षुद्र', पशु, नारी' लिखा है। इसमें 'शूद्र' का उल्लेख नहीं है। आचार्य किशोर कुणाल के अनुसार संदर्भ के मुताबिक यहां 'नारी' का अर्थ 'समुद्र' से है।
1810 में प्रकाशित मानस ही 'मानक'
धार्मिक न्यास परिषद के पूर्व अध्यक्ष और महावीर मंदिर न्यास के आचार्य किशोर कुणाल (Acharya Kishore Kunal) ने बताया कि, 'भोजपुर निवासी पंडित सदल मिश्र (Pandit Sadal Mishra) ने कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज से वर्ष 1810 में रामचरितमानस को पहली बार प्रकाशित कराया था। इसे ही रामचरितमानस का प्रथम प्रकाशित संस्करण माना जाता है। यही सर्वाधिक प्रमाणिक भी है। इसके बाद मानस की प्रति 65 साल बाद यानी 1875 में प्रकाशित हुई। सदल मिश्र के मानस की ही डिजिटल प्रति में पशु मारी और 'पशु नारी' को लेकर असमंजस है। मगर, मूल प्रति में ऐसा कोई संशय नहीं है। जहां तक संदर्भ का सवाल है तो समुद्र ने यह बातें श्रीराम से कही है। कहने का स्पष्ट आशय है कि भयभीत समुद्र भगवान को 'ताड़नहार' मानता है। समुद्र विनम्रतापूर्वक तर्क दे रहा है ढोल, गंवार, क्षुद्र, पशु और नारी (समुद्र खुद) यह सब ताड़ना के अधिकारी हैं। क्षुद्र का अभिप्राय भी यहां जाति से नहीं, बल्कि व्यवहार से है।