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Bihar Politics: बिहार में विपक्षमुक्त हालत, तेजस्वी की किरकिरी ने अंतिम कील भी ठोक दी

Bihar Politics: भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाईटेड के बीच बढ़ रही दूरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार विधानमंडल वाले कार्यक्रम में आने के बाद खत्म हो गई।

Shishir Kumar Sinha
Published on: 22 July 2022 6:59 AM GMT
Tejashwi Yadav
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तेजस्वी यादव (फोटो: सोशल मीडिया ) 

Bihar Politics: ओवैसी की पार्टी के 5 में से 4 विधायकों को अपने साथ लाकर राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार विधानसभा (Bihar Assembly) में अंतिम दांव खेल दिया। विधानसभा में राजद सर्वाधिक 80 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई। लेकिन, अब भी राजद के नेतृत्व वाला विपक्ष जादुई आंकड़े 122 से 7 अंक दूर है। और, अब यह दूरी कभी खत्म नहीं होने वाली है। क्योंकि, विपक्ष में आने लायक अब अधिकतम 1 विधायक बचे हैं, ओवैसी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष।

भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाईटेड के बीच बढ़ रही दूरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi )के बिहार विधानमंडल वाले कार्यक्रम में आने के बाद खत्म हो गई। इसी एक कार्यक्रम ने बिहार में विपक्ष की पूरी ताकत को कुंद कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने राजद के सीएम फेस तेजस्वी यादव की जुबान लड़खड़ाने के बाद अब सिर्फ एक ही बात चल रही है कि देश बाद में होगा, बिहार पहले ही विपक्षमुक्त हो गया है। तेजस्वी के पास झोंकने के लिए ताकत नहीं बची है और रही-सही कसर उस संबोधन ने निकाल दी है।

सारा गणित हो चुका हल, अब टूटने वाला नहीं कोई दल

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद सबसे ज्यादा परेशानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यही थी कि उनकी पार्टी जदयू सबसे कमजोर हो गई। राजद के साथ संकट यह था कि उसके विधायकों की संख्या भाजपा से कम थी। बाकी जगह भाजपा छोटे दलों को साथ लाने या बड़े उलटफेर की कोशिश में रहती है, लेकिन यहां दोनों ही क्षेत्रीय दलों ने विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद तिकड़म भिड़ाई। वजह भी वाजिब थी, क्योंकि 2015 के परिणाम इन दोनों के नाम ही थे। 2020 चुनाव के परिणाम में सबसे ज्यादा झटका जदयू को लगा था और इसकी बड़ी वजह दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी थी। चुनाव परिणाम के बाद जदयू ने खुद को संभालने के लिए अपने हिस्से में आने को तैयार इक्का-दुक्का, जो मिला- समेट लिया।

मायावती की बहुजन समाज पार्टी का खाता खोलने वाले जमा खान को मंत्री तक बना दिया। ऐसे ऑफर का संदेश अच्छा गया। लोजपा के भी इकलौते विधायक राजकुमार चले आए। उधर, पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के पुत्र सुमित कुमार सिंह इकलौते निर्दलीय विधायक होकर सत्ता में मंत्री के रूप में शामिल हो गए। वह जदयू में नहीं, मगर ताकत उसी के हैं। इस बीच, समय बदला और बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश साहनी ने तेवर दिखाए तो भाजपा ने उसे शांत कर दिया। वीआईपी प्रमुख सहनी को विधान परिषद् के रास्ते मंत्रीपद देने वाली भाजपा ने इस पार्टी के तीनों विधायक अपने साथ कर लिए।

चुनाव के समय यह भले वीआईपी के टिकट पर उतरे थे, लेकिन थे भाजपाई। इसलिए, इनका आना चौंकाने वाला नहीं था। इसके साथ ही एनडीए सरकार में शामिल चार विधायकों वाले हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा (हम) सेक्युलर के जीतनराम मांझी के तेवर फींके पड़ गए। उन्हें समझ में आ गया कि कुछ भी इधर-उधर किया तो कहीं के नहीं बचेंगे। इसके बाद सिर्फ एक कमजोर कड़ी नजर आ रही थी, वह थी असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम। इसके पांच विधायक न तो सत्ता में थे और न ही विपक्ष की ताकत बन रहे थे।

तेवर विपक्षी का था, लेकिन खुलकर साथ नहीं मिलता था। ऐसे में मौका मिलते ही तेजस्वी यादव ने ओवैसी की पार्टी को समेट लिया। पांच में से चार विधायक तेजस्वी के साथ राजद में चले गए। लालू प्रसाद के गंभीर होकर दिल्ली जाने के पहले यह पूरा प्रकरण हो गया। अब बिहार में सत्ता के गणित को लेकर कोई हिसाब-किताब नहीं बचा है। भीषण उलटफेर, मतलब राजद-जदयू या राजद-भाजपा जैसा होने की उम्मीद दूर-दूर तक नहीं। इसलिए, नंबर गेम खत्म है। सत्तापक्ष से निकलने वाला कोई नहीं है। हम के चारों विधायक और एआईएमआईएम के इकलौते शेष विधायक के विपक्ष में जाने पर भी इसकी संख्या 120 ही पहुंचेगी, जो जादुई आंकड़े से दो पीछे ही है। और, इतना होने पर भी नीतीश कुमार के खेमे के पास जादुई आंकड़े वाली संख्या रहेगी ही। इसलिए, अब जोड़-घटाव का अंतिम अध्याय खत्म हो चुका है।

और, इसी के साथ तेजस्वी के लड़खड़ाने को देख विपक्ष मन से हुआ कमजोर

विपक्ष में राजद ही इकलौता बड़ा दल है। कांग्रेस के पास महज 19 विधायक हैं। बाकी, वामपंथी दल हैं। सहयोगियों में राजद का विरोध करने की ताकत संख्याबल के हिसाब से भी नहीं और परिस्थिति के हिसाब से भी नहीं। कांग्रेस के अंदर कई गुट हैं, इसलिए वह खुद में ही परेशान रहती है। इसके बावजूद कांग्रेस बीच-बीच में राजद से मुक्त होने की कसमसाहट दिखा जरूर देती है। गुटबाजी की एक बड़ी वजह यह भी है। कांग्रेस के कई मजबूत नेता राजद से अलग होकर पार्टी को अपनी ताकत बटोरने का यही सही समय बताते हैं।

पिछले दिनों विधानमंडल के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तेजस्वी यादव के हेल्थ को लेकर मिली नसीहत को सकारात्मक अंदाज से लेने वाले कांग्रेसी नेता उसी कार्यक्रम में तेजस्वी के लड़खड़ाने को मुद्दा बना चुके हैं। इन नेताओं का मानना है कि विपक्ष के नेता का इस तरह सरस्वती मंद होना कमजोरी प्रदर्शित कर गया है। प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर सदाकत आश्रम में इसी बात की चर्चा चल रही है कि इस तरह की कमजोर और लड़खड़ाने वाली स्थिति में राजद के साथ बने रहना कांग्रेस के अस्तित्व पर भी संकट लाएगा।

वैसे, तेजस्वी के भाषण के ऐसे अंशों के वायरल होने के बाद कांग्रेस के ही कुछ नेता पार्टी आलाकमान तक किसी न किसी रास्ते अपना संदेश पहुंचाना चाह रहे कि संगठन को मजबूत कर आगामी चुनाव में राजद से अलग निकलने का यही मुफीद वक्त है। अब देखना यह है कि कांग्रेस के तीन में से दो गुटों की यह इच्छा पूरी करने के लिए आलाकमान का कोई संदेश आता भी है या नहीं। वैसे, कोई संदेश आए या नहीं लेकिन यह तय है कि अब विपक्षी दलों के पास न करने को कुछ बचा है और न आत्मबल ही शेष नजर आ रहा है।

सत्ता में शामिल

भाजपा 77

जदयू 45

हम-से 04

निर्दलीय 01

कुल 127

विपक्ष में शामिल

राजद 80

कांग्रेस 19

माले 12

सीपीआई 02

सीपीएम 02

कुल 115

विपक्ष के साथ, मगर बाहर

एआईएमआईएम

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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