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मां के संघर्ष और समर्पण के बल पर पापड़ बेचने और ऑटो वाला बने प्रसिद्ध मैथमेटिक्स गुरु
बिहार की जयंती देवी और आरती देवी ने संघर्ष के दम पर अपने बेटों को देश का गौरव बनाया।
पटना: जिंदगी मिलती है कुछ कर गुजरने के लिए ही, अगर इसे सलिके से संवारा जाए तो वहीं आगे चलकर इतिहास बन जाती है, लेकिन उस इतिहास के बनने से पहले कितने संघर्ष के रास्तों से गुजरना पड़ता है। मातृ दिवस पर पढ़े बिहार की जयंती देवी और आरती देवी के संघर्षो के बारे में कैसे बने इनके बेटे प्रसिद्ध मैथेमैटिक्स गुरु इसे जानने के लिए पढ़िए एक खास रिपोर्ट।
बिहार की जयंती देवी और आरती देवी ने संघर्ष के दम पर अपने बेटों को देश का गौरव बनाया। 'मां' जितना संक्षिप्त शब्द, उसका सार उतना ही विशाल है। मां ही है जो अपनी औलाद पर कोई मुश्किल आने ही नहीं देती। फिर चाहे मुश्किलों की राह में उसे खुद ही क्यों न चलना पड़े। हम ऐसी ही माताओं को नमन कर रहे हैं, जिन्होंने खुद अकेले दम पर अपने बच्चों की जिंदगी संवारी। कांटों भरी राह पर खुद चलीं लेकिन बच्चों को इसका एहसास तक नहीं होने दिया। आइए रूबरू कराते है कुछ ऐसी ही माताओं से जो बिना पति के भी बच्चों को अकेले संभाल बनाया देश का गौरव। आपको आज सपुर 30 फेम आनंद कुमार की माँ जयंती देवी और मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव की मां आरती देवी के संघर्षो से आपको रूबरू कराते हैं।
आरती देवी (आरके श्रीवास्तव की मां)
जब आरके श्रीवास्तव बचपन में पांच वर्ष के थे तभी उनके पिता परास नाथ लाल इस दुनिया को छोड़ चले गये। एक पिता के न होने से एक परिवार को कितनी तकलीफें आर्थिक और सामाजिक रूप से होती हैं ये सभी जानते हैं। आरती देवी ने काफी गरीबी के दौर से गुजरते हुए अपने बेटे रजनी कांत श्रीवास्तव (आरके श्रीवास्तव ) को पढ़ा लिखा एक काबिल इंसान बनाया। आरके श्रीवास्तव बताते हैं कि मां के आशिर्वाद के बिना कोई भी उपलब्धि को पाना असंभव है।
आरके श्रीवास्तव बताते हैं कि अपनी सफलता में मां के योगदान को शब्दों में बताना सम्भव नहीं है। इस विश्व के सारे कागज और स्याही भी कम पड़ जाएं मां के संघर्षों को व्याख्यान करने में। पति के बिना अकेले दम पर बेटे और बेटियों का पालन-पोषण करना और उन्हें पढ़ा लिखा काबिल इंसान बनाना। बचपन मे गरीबी के दिन ऐसे रहे कि कभी खाली पेट भी बिना भोजन किये सोना पड़ता था, मां खुद अपने हिस्से की रोटी हमे दे देती और अपने खाली पेट सो जाती। लेकिन एक कहावत है कि हर अंधेरे के बाद उजाला जरूर आता है। आरके श्रीवास्तव बचपन से ही पढ़ने में अधिक रुचि रखते, खासकर गणित विषय परय़ जब आरके श्रीवास्तव वर्ग 7 में थे तो वे 8 वी के स्टूडेंट्स को गणित का ट्यूशन पढ़ाते थे। अपने वर्ग से हमेशा आगे के प्रश्नों को हल करते, ट्यूशन पढ़ाने से जो भी लोग अपनी इच्छा से जो पैसा देते उससे आरके श्रीवास्तव अपने आगे की पढ़ाई का खर्च निकालते।
जिम्मेदारी कब किसको किस उम्र मे निभाना पड़े। यह सब समय का चक्र ही बता सकता है। हर अंधेरे के बाद उजाला जरूर होता है। पति पारस नाथ लाल के गुजरने के बाद कैसे आरती देवी ने अपने संघर्ष के बल पर अपने बेटे- बेटियो को पढ़ाया लिखाया । बेटियो की शादी भी धूमधाम से शिक्षित परिवार में किया। आरके श्रीवास्तव बताते हैं कि पांच वर्ष के उम्र में ही पिता को खोने का गम अभी दिल और मन दोनों से मिटा भी नहीं था की पिता तुल्य इकलौते बड़े भाई भी इस दुनिया को छोड़ चले गये। पापा का चेहरा तो हमें याद भी नहीं बस कभी रात को सोते वक्त सोचता हूं तो धुॅधला धुधला सा दिखाई देता है। मां ने पिताजी और भैया के गुजरने के बाद भी हमे यह अहसास नहीं होने दिया कि उसके जीवन पर कितना बड़ा पहाड़ टूटा। पूरे परिवार को वो सारी खुशियां देते रहीं जो एक माध्यम वर्गीय परिवार का जरूरत होता है।
मां ने पापा की कमियां कभी हमें महसूस होने नहीं दिया। वह अपने क्षमता से भी बढ़कर हर वह जरूरी आवश्यकता की हमें बस्तुए , काॅपी - किताबें, खिलौने आदि उपलब्ध करातीं जो हमारी जरूरत और मांगें रहती। आरके श्रीवास्तव ने बताया कि मां के आशिर्वाद के बिना कोई भी उपलब्धि को पाना असंभव, आज मैं जो कुछ भी हुं वह मां के आशीर्वाद से है
आपको बताते चलें कि दिन प्रतिदिन अपने ज्ञान और कौशल के बल पर देश में अपना पहचान बना चुके चर्चित मैथेमेटिक्स गुरू आर के श्रीवास्तव ने लोगों को संदेश देते हुए मां के महत्व के बारे में समझाया। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर, एवम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर मैथमेटिक्स गुरु फेम ने बताया कि आज मैं जो कुछ भी हूं तथा अपने साथ जुड़ रहे निरंतर उपलब्धियां यह सब मां के आशीर्वाद और इनके द्वारा दिये जा रहे निरंतर संस्कारों से हो रहा है।
आपको बता दें कि आरती देवी ने अपने संघर्ष के बल पर गरीबी को काफी पीछे छोड़ते हुए आरके श्रीवास्तव के सपने को पंख लगाया। बिहार के मान सम्मान को विश्व पटल पर बढ़ाने वाले मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव हैं। हजारो स्टूडेंट्स के रोल मॉडल हैं। सैकड़ो गरीब प्रतिभाओं के सपने को आईआईटी, एनआईटी, एनडीए, बीसीईसीई में सफलता दिलाकर लगा चुके हैं। अमेरिकी विवि डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित कर चुका है। वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी नाम है दर्ज है।
शिक्षक आरके श्रीवास्तव न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के इंजीनियरिंग स्टुडेंट्स के बीच एक चर्चित नाम हैं। इनका '1 रूपया गुरु दक्षिणा' प्रोग्राम विश्व प्रसिद्ध है। इसके तहत वे आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को 1 रूपया गुरु दक्षिणा लेकर इंजीनियर बना रहें हैं। आरके श्रीवास्तव की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उनके शैक्षणिक कार्यशैली के तहत आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को 1 रूपया में इंजीनियर बनाकर राष्ट्र निर्माण मे योगदान के लिये प्रशंसा कर चुके हैं।
बता दें कि बिहार के आरके श्रीवास्तव सैकडों गरीबों को आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई सहित देश के प्रतिष्ठित संस्थानो मे दाखिला दिलाकर उनके सपने को पंख लगा चुके है। 540 स्टूडेंट्स को इंजीनियर बना चुके हैं। जिन स्टूडेंट्स के पास कुछ नहीं वे भी जाते आईआईटी, एनआईटी सहित देश की प्रतिष्टित संस्थाओ में पिछले 10 वर्षों से गरीब बच्चों को आरके श्रीवास्तव गणित पढ़ा रहे हैं।
प्रतियोगिता का दौर, गिरता शिक्षा स्तर और स्टूडेंट्स की मजबूरी। शायद इन्हीं कारणों से कोचिंग संस्थानों का बाजार गर्म है, लेकिन व्यवसीयकता के इस दौर में बिहार के युवा गणितज्ञ मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव के लिए शिक्षा कोई 'बजारू' चीज नही है। वे छात्रों का भविष्य सवारने और कोचिंग संस्थानों को करारा जवाब देने के लिए पिछले 10 वर्षो से निःशुल्क शिक्षा दे रहे हैं।
आमतौर पर शिक्षा स्तर का गिरावट का सबसे बड़ा खामियाजा इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे तकनीकी विषयो की पढ़ाई करने वाले छात्र- छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है। जिन्हें कोचिंग के लिए लाखों रुपये देने पड़ रहे हैं। पिछले कई वर्षों से आरके श्रीवास्तव रेगुलर क्लासरूम प्रोग्राम के तहत वंडर किड्स प्रोग्राम, निःशुल्क मैथमेटिक्स क्लासेज के अलावा शिविर लगाकर इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे हजारो गरीब स्टूडेंट्स को नाईट क्लासेज प्रारूप के माध्यम से पूरे रात लगातार 12 घण्टे तक गणित के सवाल हल करने की नई -नई तकनीको और बारीकियों की जानकारी दे रहे हैं। आरके श्रीवास्तव के नाईट क्लासेज प्रारूप के तहत लगातार 12 घण्टे निःशुल्क शिक्षा देने हेतु इनका नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड एवम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज हो चुका है।
उनका दावा है कि इस शिविर में पढ़ाई करने वाले में से प्रत्येक वर्ष 60% से अधिक छात्र-छात्राएं आईआईटी, एनआईटी, एनडीए सहित तकनीकी प्रवेश परीक्षाओं में सफल होते हैं। छात्रों के इस नाईट क्लासेज शिविर की ओर आकर्षित होने के चलते हजारो स्टूडेंट्स के रोल मॉडल बन चुके हैं। मैथमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव न सिर्फ बिहार में लोकप्रिय है बल्कि अपने गणित पढ़ाने के जादुई तरीके एवम गणितीय शोध के लिए प्रायः सुर्खियों में भी रहते हैं। क्लासरूम प्रोग्राम में पाइथागोरस प्रमेय को बिना रुके 50 से ज्यादा अलग-अलग तरीको से सिद्ध कर आरके श्रीवास्तव ने गणित विरादरी में काफी वाहवाही लुटी है। इसके लिए इनका नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स लंदन में भी दर्ज हो चुका है। ब्रिटिश पार्लियामेंट के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने आरके श्रीवास्तव के इस उपलब्धि के लिए इन्हें बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएं भी दी। गूगल बॉय कौटिल्य पंडित के गुरु के रूप में भी देश इन्हें जानता है।
फिलहाल वह गरीब छात्रों को निःशुल्क शिक्षा देने में जुटे हुए हैं। उनके इस प्रयास से प्रभावित होकर अलग-अलग क्षेत्रों के ऊंचे ओहदे के कुछ लोगों ने शिविर में अतिथि शिक्षक के बतौर छात्र- छात्राओं को पढ़ाया। बकौल आरके श्रीवास्तव कहते हैं कि गणित की शिक्षा देना मेरा पेशा नहीं बल्कि शौक है, वयववसायिक शिक्षण में छात्र- छात्राओं और शिक्षकों के बीच परस्पर प्रेम और विश्वास का संबंध नही रह पाता।
आपको बता दें कि आरके श्रीवास्तवा के नाईट क्लास के मॉडल को जानने और समझने के लिए अभिभावक सहित शिक्षक भी उनके क्लास में बैठते हैं कि कैसे आरके श्रीवास्तवा पूरे रात लगातार 12 घण्टे विद्यार्थियों को पूरे अनुसाशन के साथ मैथमेटिक्स का गुर सीखा रहे हैं। सुबह क्लास खत्म होने के बाद स्टूडेंट्स के माता पिता इस बात से काफी चकित थे की मेरा बेटा-बेटी घर पर एक घण्टे भी ठीक से पढ़ नहीं पाते उन्हें आरके श्रीवास्तव ने लगातार पूरे रात 12 घण्टे तक अनुसाशन के साथ बैठाकर मैथमेटिक्स का गुर सिखाया। उन्हें सेल्फ स्टडी के प्रति प्रेरित किया गया कि कैसे आप पूरे रातभर पढ़ सकते हैं। आर के श्रीवास्तव के नाइट क्लास के रूप मे लगातार पूरे 12 घंटे बच्चों को शिक्षा देने के मुहिम अब देशव्यापी रूप लेने लगा हैं। आर के श्रीवास्तव को देश के विभिन्न राज्यों की शैक्षणिक संस्थाएं गेस्ट फैक्लटी के रूप मे अपने यहां शिक्षा देने के लिए बुलाती हैं। शिक्षक भी बच्चों के साथ आरके श्रीवास्तव के क्लास लेने के तरीकों को समझने के लिए क्लास मे बैठते है की कैसे पूरे रात अनुशासन मे बच्चों को पढ़ाया जा सकता है।
एक रुपया में पढ़ाते हैं आरके श्रीवास्तव
बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले आरके श्रीवास्तव देश में मैथेमैटिक्स गुरु के नाम से मशहूर हैं। खेल-खेल में जादुई तरीके से गणित पढ़ाने का उनका तरीका लाजवाब है। कबाड़ की जुगाड़ से प्रैक्टिकल कर गणित सिखाते हैं। सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर स्टूडेंट्स को पढ़ाते हैं। आर्थिक रूप से सैकड़ों गरीब स्टूडेंट्स को आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई सहित देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में पहुंचाकर उनके सपने को पंख लगा चुके हैं। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्डस और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी आरके श्रीवास्तव का नाम दर्ज है। आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्यशैली की प्रशंसा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कर चुके हैं। इनके द्वारा चलाया जा रहा नाइट क्लासेज अभियान अद्भुत, अकल्पनीय है। स्टूडेंट्स को सेल्फ स्टडी के प्रति जागरूक करने लिये 450 क्लास से अधिक बार पूरी रात लगातार 12 घंटे गणित पढ़ा चुके हैं। इनकी शैक्षणिक कार्यशैली की खबरें देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छप चुकी हैं, विश्व प्रसिद्ध गूगल ब्वाय कौटिल्य के गुरु के रूप में भी देश इन्हें जानता है।
पुरस्कार
वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स लंदन से सम्मानित, इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज, एशिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज, बेस्ट शिक्षक अवॉर्ड, इंडिया एक्सीलेन्स प्राइड अवॉर्ड, ह्यूमैनिटी अवॉर्ड, इंडियन आइडल अवॉर्ड, युथ आइकॉन अवॉर्ड सहित दर्जनों अवॉर्ड आरके श्रीवास्तव को उनके शैक्षणिक कार्यशैली के लिए मिल चुकें है। इसमें कोई शक नही की आरके श्रीवास्तव बिहार के गौरव हैं।
जयंती देवी (आनंद कुमार की मां)
पिता के गुजरने के बाद खुद मां जयंती देवी पापड़ बनाती और आनंद उसे बेचते। सुपर 30 फेम आनंद कुमार कहते हैं कि आज मैं जो कुछ भी हु मां के आशीर्वाद और उनके दिखाए रास्ते पर चलकर ही हूं। आज वैसे माताओं को हम प्रणाम करते हैं जिन्होंने अपने संघर्ष के बल पर अपने बच्चों को समाज मे युवायों के लिए रोल मॉडल बनाया। शिक्षा के क्षेत्र में पटना के आनंद कुमार और उनकी संस्था 'सुपर 30' को कौन नहीं जानता। वर्ष 2019 में बॉलीवुड ने उनके जीवन पर बायोपिक भी बनाया, जिस फिल्म को पुरी दुनिया में सराहा गया। हर साल आईआईटी रिजल्ट्स के दौरान उनके 'सुपर 30' की चर्चा अखबारों में खूब सुर्खियां बटोरती हैं। आनंद कुमार अपने इस संस्था के जरिए गरीब मेधावी बच्चों के आईआईटी में पढ़ने के सपने को हकीकत में बदलते हैं।
सन् 2002 में आनंद ने सुपर 30 की शुरुआत की और तीस बच्चों को नि:शुल्क आईआईटी की कोचिंग देना शुरु किया। पहले ही साल यानी 2003 की आईआईटी प्रवेश परीक्षाओं में सुपर 30 के 30 में से 18 बच्चों को सफलता हासिल हो गई। उसके बाद 2004 में 30 में से 22 बच्चे और 2005 में 26 बच्चों को सफलता मिली। इसीप्रकार सफलता का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। सन् 2008 से 2010 तक सुपर 30 का रिजल्ट सौ प्रतिशत रहा। ऐसे ही कारवा चलता रहा।
आज आनंद कुमार राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मंचों को संबोधित करते हैं। उनके सुपर 30 की चर्चा विदेशों तक फैल चुकी है। कई विदेशी विद्वान उनका इंस्टीट्यूट देखने आते हैं और आनंद कुमार की कार्यशैली को समझने की कोशिश करते हैं। आनंद कुमार को विश्व के प्रतिष्ठित विश्विद्यालय अपने यहां सेमिनार के लिए भी बुलाते हैं। आज आनंद कुमार का नाम पूरी दुनिया जानती है और इसमें कोई शक नहीं कि आनंद कुमार बिहार का गौरव हैं।
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