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बजट 2020: वित्तीय मैनेजमेंट का रोडमैप

Dr. Yogesh mishr
Published on: 4 Feb 2020 6:45 AM GMT
नरेंद्र मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के पहले साल में अर्थव्यवस्था की कड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है। बाजार सुस्त है। मांग बढ़ने का नाम नहीं ले रही। ऐसे में 2020-21 के बजट से बहुत अपेक्षाएं थीं। भले ही वित्त मंत्री ने सही दिशा में कदम बढ़ाएं हैं। लेकिन ये कदम बहुत फूँक फूँक के उठाए गए हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि बजट उसी तरह पेश किया गई जैसा कि होना चाहिए- इसमें आने वाले वित्त वर्ष के लिए सरकार की वित्तीय प्लानिंग दिखाई गई है। बजट एक वित्तीय घोषणापत्र होता है। ठीक इसी तरह यह बनाया गया है। जैसा कि अन्य देशों में होता है, स्कीमों और योजनाओं को बजट में बहुत जगह नहीं दी गई है। वो तो कभी भी घोषित की जा सकती हैं। सरकार की मंशा अच्छी है, इसमें कोई संदेह नहीं। रोडमैप भी इसी को दर्शाता है.
बजट में पैसा खर्च करने में हाथ बहुत कम खोला गया है। इसी के चलते वित्तीय घाटा 2019-20 के बजट की तुलना में मात्र 0.5 फीसदी ज्यादा रखा गया है। वैसे सरकार ने ऐसा करते वक्त फ़िस्कल रेस्पॉन्सिबिलिटी एक्ट का पूरी शिद्दत से ध्यान रखा है। वैसे यह भी कह सकते हैं कि खर्चा बढ़ाने के लिए यदि निर्मला सीतारमण फ़िस्कल सीमाओं को लांघ भी जातीं तो कोई नुकसान नहीं होने वाला था। इस संदर्भ में यह जरूर कहना चाहिए कि वर्षों से मोदी सरकार राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के मार्ग पर बने रहने के बारे में सख्त रही है। फ़ालतू खर्चों पर मोदी सरकार ने लगाम लगा कर राखी है। यह आगे भी रहेगा। यह साफ़ है। आर्थिक मंदी के कारण ढीली पड़ी मांग को बढ़ाने के लिए खजाने को थोड़ा ढीला करना उचित रहता। इस संदर्भ में वित्त मंत्री द्वारा फ़िस्कल रेस्पॉन्सिबिलिटी एक्ट के अंतर्गत रहते हुये फ़िस्कल डेफ़िसिट से निपटा गया है।

अब सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उच्च राजकोषीय घाटे से उत्पन्न होने वाले खर्च की गुणवत्ता अच्छी ही बनी रहे। यानी पैसा सोच समझ कर और सही काम पर खर्च किया जाए। यह सोच जिस तरह से वित्त मंत्री ने इन्फ्रा पर खर्चा तय किया है, उससे झलकती भी है।

एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार अब काफी कुछ काम जनभागीदरी के साथ करने जा रही है। चाहे स्वस्थ्य, शिक्षा, कृषि, रेलवे, हाइवे वगैरह तमाम काम पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर किया जाएगा। यह सरकारी खर्चा कम करने और हर चीज में सरकार का हाथ होने की प्रवृत्ति से हटने का मार्ग है। ऐसा होना भी चाहिए। किसी जमाने में सरकार ब्रेड, कोल्ड ड्रिंक बनाने से लेकर हवाई जहाज बनाने में हाथ डाले हुई थी। खैर, अब उससे हम काफे आगे आ चुके हैं। लेकिन फिर भी सरकार का काम सीमित करने की जरूरत है। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देना ही चाहिए। रेलवे के बारे में भी सरकार इसी दिशा में चल रही है। इसी क्रम में वित्त मंत्री ने 150 प्राइवेट ट्रेनों की बात की है। एक बात जो काफी सकारात्मक और महत्वपूर्ण है वह एग्रिकल्चर के क्षेत्र में ग्रोथ के लिए सोलह सूत्रीय प्लान। राज्य स्तर पर कृषि क्षेत्र में भूमि पट्टे, अनुबंध खेती और उत्पाद विपणन के लिए संरचनात्मक सुधार बड़े उपाय हैं।
मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में जोर शोर से ऐलान किया था कि उनकी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह संकल्प इस बार के बजट में काफी प्रदर्शित भी किया गया है।
केंद्र ने कृषि सम्बन्धी कई कानून बना रखे हैं जिससे कृषि बाजारों का उदारीकरण हो सके, खेती और ज्यादा अधिक प्रतिस्पर्धी बने, कृषि में तकनीकी का इस्तेमाल बढ़े, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा मिले इत्यादि। केंद्र ने मॉडल कानून बना रखे हैं जिसमें 2016 के मॉडल कृषि लैंड लीजिंग एक्ट, मॉडल कृषि उत्पादन और पशुधन विपणन अधिनियम 2017 और मॉडल कृषि उपज और पशुधन अनुबंध खेती और सेवा संवर्धन और सुविधा अधिनियम 2018 है। अब केंद्र सरकार राज्यों को इन मॉडल कानूनों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करेगी जिससे बदलाव आने की उम्मीद की जा सकती है।
सरकार ने खेती किसानी के लिए सोलह बिन्दुओं का संकल्प पेश किया है जो स्वागत योग्य है। इसमें किसानों को सोलर पंप स्थापित करने में मदद, एक राष्ट्रीय कोल्ड सप्लाई चेन का निर्माण होगा, किसान ट्रेन और किसान उड़ान का संचालन, ब्लाक स्तर पर वेयरहाउस का निर्माण जैसी चीजें शामिल हैं।
बाजार में मांग बढ़ाने के लिए जरूरी है कि लोगों की जेब में पैसा आये। इसके लिए वित्त मंत्री ने सिर्फ एक बात की है - इनकम टैक्स स्लैब और दरों में बदलाव। कोशिश की गयी है कि टैक्स कम होगा तो लोगों के पास पैसा आयेगा जिससे उनकी खरीदी बढ़ेगी। आईडिया बहुत सिम्पल है, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि 2017-18 में 6.86 करोड़ लोगों ने इन्कम टैक्स दिया था। इनमें भी 2 करोड़ से ज्यादा लोगों ने शून्य टैक्स दिया। भारत की जनसंख्या यदि 130 करोड़ मानी जाये तो मात्र 3.7 फीसदी जनता इन्कम टैक्स देती है। कहने का मतलब यह है कि इन्कम टैक्स रियायत के जरिये मांग और उपभोग बढ़ाने की संभावनाएं सीमित हैं।




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  • इन्कम टैक्स से जुड़ी एक बात और है कि टैक्स रियायत के लिए विकल्प छोड़ा गया है। लोग टैक्स बचाने के लिए दीर्घकालीन बचत करते हैं। अब ऐसी बचतों की कीमत पर मांग बढ़ाने का प्रस्ताव है। जान लीजिये कि दीर्घकालीन बचतें अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।





सरकार का जोर ‘वेलनेस’ यानी अच्छी सेहत पर भी है।हर जिला अस्पताल के साथ मेडिकल कालेज बनाने का इरादा है, बात अच्छी है। पीपीपी तरीके से ये काम होगा ।लेकिन सरकार अपना खर्चा मेडिकल उपकरणों पर टैक्स बढ़ा कर निकालेगी। टैक्स बढ़ने से इलाज महँगा होगा।

वित्त मंत्री ने नौकरियों की तैयारी में जुटे युवाओं के दिल को खुश करने का बड़ा ऐलान किया है। अब सभी नॉन गजटेड पदों पर भर्ती के लिए एक नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी का गठन किया जाएगा। वित्त मंत्री का ऐलान एक बड़ा कदम है क्योंकि देश में नौकरियों को लेकर हमेशा भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रहती हैं। माना जा रहा है कि मोदी सरकार के इस कदम से प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएं नौकरी पाने में कामयाब होंगी। भ्रष्टाचार की शिकायतें दूर करने में मदद मिलेगी। नौकरी की परीक्षा हर जिले में ऑनलाइन तरीके से आयोजित की जाएगी।

शिक्षा का क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता वाली सूची में है। सरकार ने इसके लिए इस बार 99300 करोड़ रुपए का बजट रखा है। शिक्षा के क्षेत्र में एफडीआई लाया जाएगा। राष्ट्रीय पुलिस यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी का प्रस्ताव भी मोदी सरकार का बड़ा कदम माना जा रहा है। स्किल को बढ़ावा देने के लिए सरकार तीन हजार स्किल डेवलेपमेंट सेंटर बनाने जा रही है। सरकार स्टडी इन इंडिया प्रोग्राम भी शुरू करेगी। मार्च 2021 तक 150 नए इंस्टीट्यूट बनाए जाएंगे।
रोजागर की बात करें तो सरकार का जोर कौशल विकास और स्वरोजगार पर दिखाई देता है। मोबाइल, सेमी कंडक्टर, इलेक्ट्रोनिक सामान की मैन्यूफैक्चरिंग स्कीम से भी युवाओं को काफी फायदा होगा। यह सच्चाई है कि सरकारी नौकरियाँ अब बढ़ने वाली नहीं हैं। ऐसे में भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाए से ही रोजगार की समस्या से निपटा जा सकता है।
बहरहाल, कुल मिला कर यह साफ़ है कि सरकार की प्राप्तियाँ बढ़ नहीं रही हैं सो टैक्सों से इतर राजस्व जुटाने की ज्यादा कोशिश है जो 2.1 लाख करोड़ के विनिवेश लक्ष्य से साफ झलकता है। आर्थिक मंदी के संदर्भ में 2020 एक सामान्य वर्ष नहीं है। मांग को प्रोत्साहित करने में सर्क्जार बजट के रोड मैप में आगे बढ़ते हुए क्या क्या करेगी ये देखने वाली बात होगी।किसी भी बजट का मूल्यांकन बजट पेश होने से नहीं किया जाना चाहिए। बजट मूल्यांकन के लिए ज़रूरी है कि साल भर तक इंतज़ार किया जाये। साल भर बाद ही पता चल पाते है कि बजट में कहीं बातें पूरा करने में सरकार कितनी दूरी तय कर पाई है। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जो टूल बजट में अपनाये गये हैं। वह कितने कारगर हुए। मुझे पिछले कई बजटों की घोषणाएं व उनकी प्राप्तियों की सच्चाई पता है। आप अभी इसे पलट कर देख सकते है। यह सभी सरकारों के बजट में आसानी से देखा जा सकता है।
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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