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Banarasi Saree Business: प्रशासन मस्त... तो बुनकर व लूम संचालक त्रस्त, काशी में ODOP हुई ध्वस्त
Banarasi Saree Business: एक बनारसी साड़ी को बनाने में 7 से 8 घंटे लगता है लागत की बात करें तो 500 से 550 रुपये लागत आती है।सेव की बात करें तो 400 से 450 की बिक्री हो रही है।हमलोग मजदूर थे और मजदूर बन गए हैं। पहले हम लोग प्रति मशीन 65 रुपये बिजली का बिल देते थे ।
Banarasi Saree Business: उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा यूपी के 75 जिलों में वहां के बनने वाले प्रोडक्ट को विशेष पहचान देते हुए उसके संवर्द्धन और उस पेशे से जुड़े हुए हुनरमंद कारीगरों की माली हालत को बदलने का प्रयास किया जा रहा है । बनारस की पहचान बनारसी साड़ी से जुड़े हुए बुनकरों के हालात का जायजा लेने के लिए न्यूज ट्रैक की टीम बुनकरों के गढ़ लोहता पहुंची । लोहता बनारसी साड़ियों के बुनकरों का हब माना जाता है ।यहां के बनारसी साड़ियों की डिमांड विदेशों में सबसे ज्यादे है। बनारसी साड़ी बुनने वाले कारीगरों और लूम संचालकों से बनारसी साड़ी के बाजार और उनके सामने आने वाली दिक्कतों पर बातचीत की गई।
स्थानीय प्रशासन नहीं कर रहा मदद
बुनकरों से बातचीत करने पर एक सबसे कॉमन समस्या निकलकर सामने आई की सरकार बुनकरों की स्थिति और हालात बदलने के लिए योजनाएं ला तो रही है । लेकिन प्रशासन के नुमाइंदों के चलते बनारसी साड़ियों के बुनकरों की स्थिति जस की तस बनीं हुई है। सरकारी योजनाओं का लाभ नीचे लेबल के बुनकरों तक नहीं पहुंच रहा है । साथ ही इनका शोषण लगातार किया जा रहा है। आज भी बुनकर साड़ी के कुल लागत से अधिक खर्च कर रहे हैं । लिहाजा मुनाफा जीरो है।
बुनकरों का दर्द जिले के अधिकारी बुनकरों का करते हैं शोषण
पॉवर लूम चलाने वाले लकी अली ने अपना दर्द कैमरे के सामने बयां करते हुए बताया कि निश्चित तौर पर बुनकरों के फ़ाइनेंशियल कंडीशन को सुधारने के लिए सरकार कई योजनाएं लेकर आई है । ये योजनाएं हम बुनकरों के लिए ही बनायी गयी है। लेकिन जिले में बैठे हुए प्रशानिक अधिकारियों के शोषण के चलते हमलोग काफी परेशान हैं। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत बनारसी साड़ियों को बुनने वाले बुनकरों के लिए बिजली बिल में सब्सिडी देने की बात कही गई । लेकिन बिजली विभाग के अधिकारी इस प्रक्रिया को इतना जटिल बना दिए हैं कि अनपढ़ बुनकरों को कुछ समझ ही नहीं आता कि क्या करें?
दूसरी सबसे बड़ी समस्या है बाजार में तैयार माल की खपत की । साड़ी के गद्दी वाले हमारा सबसे ज्यादा शोषण करते हैं । तैयार माल को औने पौने दाम पर बेचने के लिए हमलोग मजबूर हैं। कोरोना काल के बाद से बनारसी साड़ियों का व्यापार काफी मंदा है । ऑर्डर काफी थोड़े मात्रा में मिल रहा है । ऑर्डर कम मिलने से परिवार का खर्च चला पाना मुश्किल हो रहा है ।.अगर यही हालात बना रहा तो एक दिन हमलोग बनारसी साड़ियों की बुनकरी छोड़कर मजदूरी करने पर विवश हो जाएंगे।
बनारसी साड़ियों की बुनाई का खर्च भी निकालना हुआ मुश्किल
बनारसी साड़ियों के बुनकर बब्लू ने बताया कि कोरोना काल के बाद से बनारसी साड़ियों के बुनकरों की स्थिति बद से बद्तर हो गई है।बस रोजी रोटी पाक परवर जिगार के आलम से किसी तरह से चल रहा है। बनारसी साड़ी को बनाने में जितनी लागत है उससे कम रेट में कोई कोई खरीद रहा है । हमलोगों का माल डंप पड़ा हुआ है । लेकिन कोई खरीददार नहीं है ।कोरोना के पहले कुछ हद तक बुनकर अपना काम कर लें रहें थे। लेकिन उसके बाद तो जैसे माहौल ही बदल गया कोई आर्डर नहीं मिल रहा । बनारसी साड़ी बाहर नहीं जा पा रही है।वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में हमलोगों को कोई बेनिफिट नहीं मिला है। सर्टिफिकेट बनवाने के बाद भी आज तक कोई लाभ नहीं मिला।कम पढ़े लिखे होने के चलते इसकी जानकारी भी नहीं है । इसलिए इन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। एक बनारसी साड़ी को बनाने में 7 से 8 घंटे लगता है लागत की बात करें तो 500 से 550 रुपये लागत आती है।सेव की बात करें तो 400 से 450 की बिक्री हो रही है।हमलोग मजदूर थे और मजदूर बन गए हैं। पहले हम लोग प्रति मशीन 65 रुपये बिजली का बिल देते थे । लेकिन इस समय हमलोग 400 रुपये प्रति हार्स पॉवर बिजली का बिल पे कर रहे हैं। लागत मूल्य से कम दाम पर हमारी साड़ियां बिक रही है वह भी प्रतिदिन नहीं बिक रही बल्कि हफ्ते में बिक रही है।आप देख सकते हैं मेरा पूरा कारखाना ही बंद पड़ा है। अगर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो हम ये हुनर छोड़ने पर मजबूर हैं।
बुनकर कल भी कटोरा लेकर भीख मांगता था आज भी मांग रहा है
बनारसी साड़ियों से जुड़े हुए बुनकार एसोसिएशन के अध्यक्ष सरफराज अहमद ने रोते हुए बुनकरों के दर्द को बयां किया कि आज भी बुनकर कर्ज से डूबा हुआ है। उत्तर प्रदेश सरकार और माननीय मोदी जी बुनकरों के लिए काफी कुछ सोच रहे हैं। बुनकरों के उत्थान के लिए कई तरह की योजनाएं भी बनाई हैं। इस सांस्कृतिक धरोहर को हम कैसे बचाएंगे ? यह धरोहर आने वाली नस्लों को कैसे प्रदान करेंगे ? यह सोचने वाली बात है यह एक कला है । इसका सम्मान नहीं होगा तो यह कला कैसे बचेगी। कलाकार और मजदूर में फर्क होना चाहिए।मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं कि बुनकरों की मदद होनी चाहिए।जो आजादी के बाद से सब्सिडी लेकर हवाई जहाज से घूम रहे थे गरीब बुनकर आज भी कटोरा लेकर भीख मांग रहा है। सरकार ने बुनकरों को घर बनाने का भी पैसा दिया । इनके घर तक नहीं बन पाते थे ये कर्ज़ में डूबे रहते थे। बुनकरों की स्थिति में जो बदलाव हुआ है वह नाकाफी है।