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Banarasi Saree: ऐसे पहचाने असली बनारसी साड़ी, सालाना है 500 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार

Banarasi Saree: बनारस में रेशम, कपास, बुटीदार, जांगला, जामदानी, जामावर, कटवर्क, शिफॉन, तनचोई, कोरंगाजा, मलमल, नीलांबरी, पीतांबरी, श्वेतांबरी और रक्तमारी साड़ियों का उत्पादन किया जाता है।

Viren Singh
Written By Viren Singh
Published on: 3 Jan 2023 8:28 AM IST
Banarasi Saree
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Banarasi Saree (NEWSTRACK)

Banarasi Saree: बनारस की पहचान दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी के रूप में होती है। इसके अलावा बनारस की पहचान एक और रूप में दुनिया में होती है और वह बनारसी साड़ी। बनारसी साड़ी के दीवाने भारत में क्या पूरी दुनिया के कोने कोने में मिल जाएंगे ? भारत में जब भी शादी का सीजन आए और बनारसी साड़ी का जिक्र ना हो। ऐसा हो नहीं सकता है। हर लड़की की तमन्ना होती है कि वह अपनी शादी में बनारसी साड़ी पहने, क्योंकि बनारसी साड़ी की बता ही कुछ और होती है।

जैसे ही कोई महिला और लड़की बनारसी साड़ी अपने शरीर पर डालती है, उसकी सुंदरता में चार चांद अपने आप लग जाता है। इसलिए हर कोई चाहता है कि उसके पास अगर साड़ियों का कलेक्शन हो तो उसमें सबसे अधिक बनारसी साड़ियां हों। इस लिहाज लोग बनारसी साड़ी की खरीदारी तो करते हैं लेकिन बहुत कम लोगों के पास असली बनारसी साड़ी की पहचान करनी जानकारी होती है।

तो आज हम इस लेख के माध्यम से असली बनारसी साड़ी की पहचान करने की जानकारी देंगे। ताकि जब भी आप बाजार में बनारसी साड़ी खरीदने जाए तो बनारसी साड़ी का दाम देकर, कोई अन्य साड़ी ना लेकर आएं।

katan silk की बनारसी साड़ी होती सबसे अच्छी

इस बातचीत के दौरान एक रोचक जानकारी सामने आए है। बहुत लोगों को लगता होगा कि सिल्क उत्तर प्रदेश के वाराणसी में पैदा होता होगा, लेकिन ऐसा नहीं बिल्कुल भी नहीं है। कारोबारी का कहना है कि सिल्क बाहर से आता है। क्योंकि बनारस में किसी भी प्रकार का कोई भी सिल्क नहीं होता है। सिल्क के जीतने भी धागे आते हैं, वह बाहर से आते हैं। बनारस का मौसम सिल्क के लिए अनुकूल नहीं होता है। बनारसी की सबसे बेस्ट क्वालिटी होती है, वह katan silk होता है। इसी पर रीलय जरी सोना और चांदी का काम होता है।

ऐसे पता करें असली बनारसी साड़ी की पहचान

उनका कहना है कि काफी लोगों को बनारसी साड़ी असली है या फिर नकली इसकी पहचान करनी नहीं आती। असली कातान सिल्क पर बनारसी साड़ी बनी होगी तो उसको जलाने पर ऐसी बदबू आती है जैसे बाल जलने की हो। कातान जलते ही राख हो जाता है। साड़ी का ताना और बाना पूरा कातान का होता है। इसके अलावा असली कातान सिल्क की बनारसी साड़ी के बीच में एक भी थ्रेड नहीं दिखाता है।

एक बनारसी साड़ी में बनने में लगता है इतना दिन

बनारसी साड़ी से जुड़े एक कारोबारी ने बताया कि आप लोग बाजार में जो बनारसी साड़ी देखते हैं, उसे बनाने में काफी समय और कारीगारों की मेहनत लगती है। तब जाकर एक बनारसी साड़ी तैयार होती है। उन्होंने बताया कि एक साधारण बनारसी साड़ी तैयार करने में 10 से 15 दिन का समय लगता है। वहीं, हैवी और डिजाइनर बनारसी साड़ी को तैयार करने में 90 दिन से लेकर 4 महीने तक समय लगता है। एक बनारसी साड़ी को तैयार करने में 3 से 4 कारीगारों की जरूरत होती है। कारोबारी का कहना है बनारसी साड़ी की मांग भारत के साथ विदेशों में भी काफी अधिक होती है। क्योंकि इस साड़ी के कदरदान दुनिया भर में फैले हुए हैं। दुनिया का ऐसा कोई कोना नहीं है, जहां पर बनारसी साड़ी न जाती हो।

कम हो रहे बनाने वाले

उनका कहना है कि कातान सिल्क के कारीगर बनारस में अब न के बराबार बेचे हुए हैं। इसके पीछे की वजह से यह है कि इन कारीगारों को मजदूरी उतनी मिल नहीं रही है और देश में महंगाई बढ़ी हुई है। अब इसके कारीगर इसको छोड़कर दूसरे राज्य में मजदूरी के लिए चलते गए हैं। वहीं, जो पुराने कारीगर हैं वह अपनी अगली आने वाले पीढ़ी को यह काम सीखा नहीं रहे हैं। क्योंकि जब उनको ही उचित मजदूरी नहीं मिल पा रही तो आने वाले पीढ़ी को डालें। अब इसका काम धीरे धीरे खत्म सा हो गया है।

अन्य सिक्ल से भी बनती है बनारसी साड़ी

कातान सिल्क की वहज से बनारस साड़ी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसके अलावा मुगा सिल्क, टासार सिल्क, जूट सिल्क, कोरा सिल्स और टीशू सिल्क सहित कई सिल्क से साड़िया बनी होती है। इस सिल्क से बनी साड़ियों को बनारसी साड़ी कहते हैं।

जानें कितना बड़ा है कारोबार

बनारस टेक्सटाइल इंडस्ट्री एसोसिएशन के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान बनारसी साड़ी कारोबार को रोजाना करीब 24 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। इसका सालाना टर्नओवर पांच अरब रुपये से अधिक का है। इस काम में करीब 6 लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। हालांकि देश में कोरोना महामारी के प्रकोप धीरे धीरे खत्म हो चुका है। और अब बनारस में बनारसी साड़ी का कारोबार अपने परवान चढ़ाने लगा है। 63 वर्षीय अब्दुल अली वाहिद 50 सालों से बनासर में बनारसी साड़ी बुनरक के रुप में काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि देश में लॉकडाउन लगा था, तब छह लाख बुनकर और उनके परिवार संकट रोजी रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो चुका था। हम लॉकडाउन से पहले 12 घंटे काम करते थे और प्रतिदिन 100 से 150 रुपये कमाते थे। लेकिन लॉकडाउन के चलते सब कुछ खत्म हो चुका था। हमको अपनी आजीविका के नुकसान का कोई मुआवजा तक नहीं मिला। फिलहाल अब उसकी चीज का कोई मलाल नहीं है। अभी धीरे धीरे बनारस में बनारसी साड़ी का कारोबार पटरी पर लौट रहा है। हालांकि अभी भी इससे जुड़े हुए कारीगारों को उनकी मनमाफकी मजदूरी नहीं मिल रहा है।

यहां बनती हैं बनारसी साड़ी

बनारस में अगर बनारसी साड़ी की तैयार किये जाने वाली स्थानों की बात करें तो इसमें सरैया, जलालीपुरा, अमरपुर, बटलोहिया, कोनिया, शक्करतालाब, नक्की घाट, जैतपुरा, अलईपुरा, बाड़ी बाजार, पिलीकोठी, चित्तनपुरा, काजीसद्दुलापुरा, जमालुद्दीनपुरा, कटेहर, खोजपुरा, कमलगढ़ा, पुरानापुल, बलूबीर, नाटी इमली जैसे स्थान शामिल हैं। यहां पर बुनकर बनारसी साड़ी को तैयार करते हैं।

इन प्रकार की होती हैं बनारसी साड़ी

स्थानीय निवासी ने बताया कि बनारस में रेशम, कपास, बुटीदार, जांगला, जामदानी, जामावर, कटवर्क, शिफॉन, तनचोई, कोरंगाजा, मलमल, नीलांबरी, पीतांबरी, श्वेतांबरी और रक्तमारी साड़ियों का उत्पादन किया जाता है। यहां की बनी हुई साड़ियां संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, स्विट्जरलैंड, कनाडा, मॉरीशस, सहित अन्य देशों में भी निर्यात किया जाता है।



Viren Singh

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पत्रकारिता क्षेत्र में काम करते हुए 4 साल से अधिक समय हो गया है। इस दौरान टीवी व एजेंसी की पत्रकारिता का अनुभव लेते हुए अब डिजिटल मीडिया में काम कर रहा हूँ। वैसे तो सुई से लेकर हवाई जहाज की खबरें लिख सकता हूं। लेकिन राजनीति, खेल और बिजनेस को कवर करना अच्छा लगता है। वर्तमान में Newstrack.com से जुड़ा हूं और यहां पर व्यापार जगत की खबरें कवर करता हूं। मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई मध्य प्रदेश के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्विविद्यालय से की है, यहां से मास्टर किया है।

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