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जमशेदजी टाटा, औद्योगिक भारत का देखा था सपना, ऐसे बने विश्व के सबसे बड़े दानवीर

Jamsetji Tata: जमशेदजी नौशेरवांजी टाटा को भारतीय उद्योग जगत का पितामह कहा जाता है। इन्होंने टाटा ग्रुप की स्थापना की थी।

Shreya
Published on: 24 Jun 2021 12:32 PM IST (Updated on: 26 Jun 2021 2:50 PM IST)
जमशेदजी टाटा, औद्योगिक भारत का देखा था सपना, ऐसे बने विश्व के सबसे बड़े दानवीर
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जमशेदजी टाटा (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Jamsetji Tata: भारतीय उद्योग जगत के पितामह कहे जाने वाले और टाटा समूह (Tata Group) के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) दुनिया का सबसे बड़े दानवीर (Duniya Ke Sabse Bade Daanveer) के तौर पर उभरे हैं। हुरुन रिपोर्ट और एडेलगिव फाउंडेशन (EdelGive Foundation) के वर्ल्ड के टॉप 50 दानवीरों की सूची में टाटा का नाम सबसे ऊपर है।

दुनिया के सौ सालों के सबसे उदार दानवीरों की सूची बुधवार को जारी की गई है। जिसमें जमशेदजी टाटा को बीते 100 साल में दुनिया का सबसे बड़ा दानवीर (World's Biggest Donor) चुना गया है। जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित टाटा समूह ने पिछले 100 साल में 102 अरब डॉलर यानी करीब 75 खरब 70 अरब 53 करोड़ 18 लाख रुपये का दान दिया है।

जानें जमशेदजी टाटा के बारे में

टाटा समूह के संस्थापक और भारतीय उद्योग जगत का पितामह कहे जाने वाले जमशेदजी नौशेरवांजी टाटा (Jamsetji Tata Full Name) का जन्म 3 मार्च 1839 को गुजरात के एक छोटे से कस्बे नवसारी में पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नौशेरवांजी और माता का नाम जीवनबाई टाटा था। टाटा पारसी पादरियों के अपने खानदान में नौशेरवांजी पहले व्यवसायी थे। जमशेदजी ने भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में अपना असाधारण योगदान दिया है।

जमशेदजी नौशेरवांजी टाटा (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

छोटी सी उम्र में अपने पिता का साथ देने के लिए वे पिता नौशेरवांजी टाटा के साथ बंबई (अब मुंबई) आ गए, जहां पर उन्होंने व्यवसाय में कदम रखा। यहां एल्फिंस्टन कॉलेज (Elphinstone College) में दाखिला लिया और पढ़ाई के दौरान ही हीरा बाई दबू से शादी के बंधन में बंध गए। 1858 में स्नातक होने के बाद अपने पिता के व्यवसाय से पूरी तरह जुड़ गए।

1869 में स्थापित किया व्यापारिक प्रतिष्ठान

व्यापार के चलते उनका ने इंग्लैंड, अमेरिका, यूरोप और अन्य देश आना जाना लगा रहा। इन यात्राओं ने उनके व्यापार सम्बन्धी ज्ञान और सूझ-बूझ में वृद्धि करने का काम किया। 29 साल की उम्र तक अपने पिता के साथ ही काम करते रहे, इसके बाद सन 1869 में 21 हज़ार की पूंजी लगाकर एक व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित किया। एक दिवालिया तेल मिल को खरीदा और उसे कॉटन मिल में तब्दील कर दिया।

इसके बाद उन्होंने मिल को ठीक-ठाक मुनाफे के साथ बेच दिया और फिर इन्हीं पैसों से 1874 में नागपुर में एक कॉटन मिल स्थापित किया। जिसका नाम बाद में 'इम्प्रेस मिल' कर दिया, क्योंकि उस समय महारानी विक्टोरिया को 'भारत की रानी' का खिताब मिला था। ऐसे में वक्त को समझते हुए उन्होंने यह फैसला लिया। बता दें कि इम्प्रेस मिल उनकी पहली बड़ी औद्योगिक कंपनी थी।

जमशेदजी टाटा (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

हालांकि कारोबारी जीवन की शुरुआत में ही उन्हें आर्थिक झटके का भी सामना करना पड़ा, उन्हें कारोबारी साझेदारी प्रेम चंद्र राय चंद्र का कर्ज उतारने के लिए अपना मकान और जमीन तक बेचनी पड़ी। लेकिन मन में आत्मविश्वास लिए उन्होंने कभी अपनी हिम्मत टूटने नहीं दी और वो इन सभी मुश्किलों से उबर गए।

इसके अलावा उन्होंने इस्पात कारखानों की स्थापना की महत्त्वपूर्ण योजना भी बनायी। ऐसी जगहों की खोज की जहां लोहे की खदानों के साथ कोयला और पानी सुविधा प्राप्त हो सके। उनके तीन बड़े सपने थे, जिसमें अपनी लोहा व स्टील कम्पनी खोलना, जगत प्रसिद्ध अध्ययन केन्द्र स्थापित करना और जलविद्युत परियोजना लगाना शामिल था। हालांकि ये सपना उनकी नजरों के सामने पूरी नहीं हो सका। लेकिन वो इसकी बीज जरूर बो चुके थे।

होटल ताजमहल (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

होटल ताजमहल दमनकारी नीति का करारा जवाब

उनकी आने वाली पीढ़ी ने अनेक देशों में उनके द्वारा बोए बीज को अनेक देशों में फैलाने का काम किया। उनके सामने केवल एक सपना साकार हुआ होटल ताजमहल था। टाटा ने पर्यटकों की सुविधा के लिए बंबई में होटल ताजमहल को 1903 में 4,21,00,000 रुपये की लागत से खड़ा किया था। जो पूरे एशिया में अपने ढंग का अकेला है।

बता दें कि उन दिनों स्थानीय भारतीयों को बेहतरीन यूरोपियन होटलों में घुसने नही दिया जाता था। ताजमहल होटल इस दमनकारी नीति का करारा जवाब था। इस होटल में उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी सोच को दिखाया था। साल 1904 में जमशेदजी टाटा ने 19 मई को जर्मनी के बादनौहाइम में अंतिम सांसें लीं।

बता दें कि जिस दौर में केवल यूरोपीय, विशेष तौर पर अंग्रेजों को ही उद्योग स्थापित करने में कुशल समझा जाता था, तब जमशेदजी ने भारत में उस वक्त औद्योगिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया था। जमशेदजी के बारे में कहा जाता है कि वह एक महान दूरदर्शी थे, हैं। उनके अन्दर भविष्य को भांपने की मानो अद्भुत क्षमता थी। इसी के बल पर उन्होंने अक औद्योगिक भारत का सपना देखा था।

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