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Lucknow Chicken Cloth Business: अवध का 'चिकनकारी' कपड़ा, ODOP से अंतराष्ट्रीय फलक तक पहुंचा यह कारोबार

Lucknow Chicken Cloth Business: लखनऊ की चिकनकारी कला की पूरी दुनिया दीवानी है, लेकिन जितना तेजी के साथ इसे आगे बढ़ना चाहिए, ये उतना नहीं बढ़ा। अब ‘एक जिला एक उत्पाद’ के अंतर्गत इसकी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग तक काम किया जा रहा है।

Viren Singh
Published on: 6 Sept 2023 9:21 AM IST (Updated on: 7 Sept 2023 10:23 AM IST)
Lucknow Chicken Cloth Business: अवध का चिकनकारी कपड़ा, ODOP से अंतराष्ट्रीय फलक तक पहुंचा यह कारोबार
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Lucknow ODOP: नजाकत और नफासत...अदब और लजीज जायके के साथ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में चिकन खाया और पहना जाता है। लखनऊ वालों की इन्हीं पहचानों को वजह से इसको दुनिया वाले अन्य शहर की तुलना से अलग नजर से देखते हैं। यहां पर खाने के लिए तैयार होने वाले चिकन के भी लाखों करोड़ों दीवाने हैं तो यहां पर पहनने के लिए तैयार होने चिकनकारी की तो पूरी दुनिया दीवानी है...फिर क्या आम, खास, नेता, अभिनेता, उद्योगपति से लेकर बॉलीवुड की हस्तियां हर किसी की इच्छा होती है कि वह वस्त्र में एक बार लखनऊ की चिकनकारी से तैयार हुई वस्त्र की चीजों को उपयोग जरूर करें। लोग अपने-अपने हिसाब से चिकनकारी वस्त्र का उपयोग भी करते हैं। भारत में चिकनकारी कैसे आया इसके अलग-अलग मिथक हैं। फिलहाल बात करें एक जिला एक उत्पाद (ODOP) वाली योगी सरकार की सबसे अहल योजना से लखनऊ के चिकनकारी को और ख्याति मिली या फिर वह वहीं खड़ा है, जहां पहले था।

ODOP योजना डाल रही चिकनकारी उद्योग में जान

वैसे तो लखनऊ के चिकनकारी कला की पूरी दुनिया दीवानी है, लेकिन आजाद भारत के बाद यह उद्योग जितना तेजी के साथ आगे बढ़ना चाहिए, उतना बढ़ा नहीं। इसके पीछे की वजह से प्रदेश की सत्ता में रहीं सरकारों की अनदेखी रही, जिसकी वजह लखनऊ के चिकनकारी कारोबार अपना दम तोड़ता गया और धीरे-धीरे यह एक शहर व राज्य तक में सीमित रहा गया। लखनऊवी चिकनकारी के दाम तोड़ने का सिलसिला 1947 से लेकर 2017 तक चलता रहा। मार्च 2017 में हुआ सत्ता परिवर्तन के बाद आई राज्य की सत्ता भाजपा की सरकार ने प्रदेश के उद्योग को गति देने के लिए कई योजनाएं चलाईं। इसका नतीजा यह हुआ कि मृतप्राय: इस उद्योग को धीरे-धीरे एक नई जान मिलने लगी और वह पटरी पर चलने लगा। हालांकि, अभी भी प्रदेश के उद्योग को लेकर काफी कुछ किया जाना बाकी है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सूबे के जिलों को किसी एक चीज की प्रमुखता देखते हुए साल 2016 में एक जिला-एक उत्पाद स्कीम (ODOP) की शुरुआत की। इस योजना के तहत सरकार ने हर 75 जिलों की उसकी एक मुख्य चीज को चुना और उसको फिर से जीवित करने के लिए पैसा निवेश के लेकर ब्रांडिंग तक काम किया। ओडीओपी (ODOP) योजना में लखनऊ के चिकनकारी को भी चुना गया है। इसके तहत सरकार इस उद्योग से जुड़े हुए कारीगरों के लिए खुलकर पैसा खर्च किया और कर रही है, ताकि इस उद्योग से जुड़े हुए लोगों को प्रोत्साहित किया जा सके और उन्हें अपने उद्योग की बारिकियों को और सीखने का मौका मिले। लखनऊ के चिकनकारी का सालाना कारोबार करोड़ों रुपये का था। ओडीओपी (ODOP) योजना से जुड़ने के बाद चिकनकारी का कारोबार और बढ़ गया है।

भारत में कौन लेकर आया चिकनकारी?

भारत में चिकनकारी कब और कौन लेकर इसको लेकर कुछ मिथक हैं। इसी मिथक पर जब ‘न्यूजट्रैक’ ने लखनऊ में चिकनकारी से जुड़े हुए कारोबारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि भारत में इस विधा को कशीदाकारी मुगल बादशाह जहांगीर की बेगम नूरजहां लेकर आई थीं और यह ही सही है। हालांकि इसमें कुछ मिथक हैं। पहला मिथक यह है कि नूरजहां इसको सीख कर आई थीं और उन्होंने इस कला को लखनऊ की दी। दूसरा मिथक यह है कि यह जब नूरजहां दिल्ली में आई तो उनकी दासी के साथ एक चिकनकारी कारीगरों को भी लेकर आईं। बस यही दो मिथक है, लेकिन यह बात पूरी तरह से सही है कि हिंदुस्तान में चिकनकारी को लाने का श्रेय नूरजहां को जाता है।

विश्व में ईरान ऐसा पहला देश है, जहां चिकनकारी का काम शुरू हुआ था। ईरान में झीलें काफी हैं और इन झीलों में स्वान भी हैं। स्वान की लचीली गर्दन से टांके का कांसेप्ट से चिकनकारी आया और तभी से इस पर काम होना शुरू हुआ। भारत में सबसे पहले यह दिल्ली से मुर्शिदाबाद और मुर्शिदाबाद से ढाका (जो पहले भारत का ही हिस्सा था।) आया था। उसके बाद इस कला को अवध यानी लखनऊ में कदम रखा, जिसके यहां के लोगों ने ईरान की इस नायाब कला से रू-ब-रू हुए। इसकी कढ़ाई काफी नाजुक होती थी। देखने में यह काफी सुंदर लगती थी। एक बार जो इसकी कढ़ाई की देख लेता था, वह इसको सीखे बिना उठ नहीं सकता था। तब से लेकर आज तक अवध लखनऊ के आसपास इलाकों के लोग चिकनकारी के कारोबार से जुड़े हुए हैं और मुख्य रूप से इस उद्योग के माध्यम से अपना घर चलाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि लखनऊ क्षेत्र के करीब 50 गांव की महिलाएं चिकनकारी के कारोबार से जुड़ी हुई हैं।

सोने और चांदी से भी होती है कढ़ाई

हालांकि, अब नवाबों की इस कला ने अब अपना रंग-रूप बदला दिया है, चिकनकारी की कढ़ाई सोने और चांदी के तारों से भी की जाने लगी है। देश कई फैशन उद्योग के बड़े-बड़े डिजाइनर भी चिकनकारी के कारोबार से जुड़ चुके हैं। इसमें फैशन डिजाइनर अबू जानी संदीप खोसला और अंजुल भंडारी का नाम सबसे प्रमुख रूप से आता है।

अब इन फ्रेबिक पर होने लगी कढ़ाई

देश पहले चिकनकारी का काम ढाका से आए कपड़े मलमल में की जाती थी। तब इससे तैयार हुई पोशाक केवल मुगल सम्राट ही पहनते थे। जैसे जैसे वक्त बदला तो चिकनकारी ने अपने आयाम भी बदला। फिर मलमल से सूती कपड़ों में चिकनकारी का काम शुरू हुआ, जिससे चिकनकारी से बनी हुई पोशाक आम लोग तक भी पहुंच सके। अब तो सिल्क, जॉर्जेट, शिफॉन आदि फैब्रिक में भी लखनऊ के अंदर चिकनकारी का काम होता है।

इन प्रकार के होते हैं चिकनकारी

चिकनकारी कुल 37 प्रकार के किये जाते हैं। इसमें फ्लैट, उठे और उभरे हुए टांके, जाली का काम, उल्टी और सीधी बखिया, गिट्टी, जंजीर, फंदा, जालियां, फ्रेंच नॉट्स, रनिंग स्टिच, शैडो वर्क आदि होते हैं। इसके अलावा चिकनकारी के साथ बदला वर्क, चना पट्टी वर्क, घास पट्टी वर्क, कील कंगन कढ़ाई आदि भी काफी प्रचलित हैं।

लखनऊ में यहां मिलेगा सबसे अच्छा और सस्ता चिकनकारी

ऐसे में आप जब लखनऊ आएं तो चिकनकारी से बनी पोशाक जरूर खरीदें। इसके बिना आपका लखनऊ सफर अधूरा है। लखनऊ में सस्‍ता और अच्‍छा चिकनकारी आउटफिट चौक बाजार मिल जाता है। इसके अलावा इसकी सबसे प्रसिद्ध मार्केट अमीनाबाद और आलमबाग मानी गई है, जबकि डिजाइनर चिकनकारी जनपथ मार्केट, कपूरथला मार्केट और हजरतगंज मार्केट मिल जाएंगे। इन जगहों पर चिकनकारी का पोशाक 500 रुपये लेकर 15 हजार रुपये तक मिल जाएगा। हालांकि लखनऊ हजरतगंज के हलवासिया स्थित चिकन गंज के दुकानदार का कहना है कि चिकनकारी के पोशाक हमारे यहां 500 रुपये से शुरू हो जाती है और यह 1.50 लाख रुपए तक जाती है। 1.50 लाख रुपए वाली पोशाक चिकनकारी की थ्री पीस लहंगा होता है।

क्या गिर रहा लखनऊ का चिकनकारी कारोबार?

लखनऊ की 400 साल पुरानी विरासत चिकनकारी पोशाक को देश में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, सूरत और अहमदाबाद से इसका निर्यात किया जाता है। इसके अलावा विदेशों में भी लखनऊ से इसका निर्यात किया जाता है। हालांकि, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश ने इस कारोबार में अपनी नजरें जमा दी हैं। लखनऊ में चिकनकारी का निर्यात सालाना 80 रुपए का है, जबकि अन्य राज्य अपने ब्रांड के नाम पर 200 करोड़ रुपये निर्यात कर रहे हैं। ऐसे में लखनऊ के चिकनकारी कारोबारी योगी सरकार से कुछ राहत की उम्मीद कर रहे हैं।



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Viren Singh

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