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RBI MPC Meeting: जनता को मिली राहत, आरबीआई ने लगातार चौथी बार ब्याज दरें रखीं स्थिर
RBI MPC Meeting: आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय बैठक बुधवार से शुरू हुई है, जो शुक्रवार की सुबह तक चली और बाद में बैठक में लिए गए निर्णय की घोषणा की गई है।
RBI MPC Meeting: जैसा कि अपेक्षित था, रिज़र्व बैंक ने रेपो दर को ज्यों का त्यों छोड़ दिया है और यह 6.5 प्रतिशत पर बरकरार है। रेपो रेट वह है जिस दर पर रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों को अल्पकालिक धन उधार देता है। रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने 1 के मुकाबले 5 वोटों से रेपो रेट अपरिवर्तित रखने पर मतदान किया। यह पांचवीं बार है जब एमपीसी ने फरवरी से नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखा है। रेपो रेट अपरिवर्तित रहने का मतलब है कि लों आदि की ब्याज दरों में शायद ही कोई बदलाव आये।
रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैठक के निर्णय की जानकारी देते हुए कहा कि - वैश्विक हेडलाइन मुद्रास्फीति कम हो रही है लेकिन कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लक्ष्य से ऊपर है। सॉवरेन बांड की पैदावार मजबूत हुई है, अमेरिकी डॉलर की सराहना हुई है, और इक्विटी बाजारों में सुधार हुआ है। दूसरी तिमाही में घरेलू कृषि गतिविधियों में गति बरकरार रही, हालांकि मानसून कुछ हद तक असमान था। उन्होंने कहा कि भारत का ध्यान वृहत स्थिरता और बुनियादी विकास पर है।
उच्च मुद्रास्फीति का जोखिम
शक्तिकांत दास ने कहा - भारत दुनिया का विकास इंजन बनने के लिए तैयार है। समय की मांग है कि सतर्क रहें। उच्च मुद्रास्फीति एक बड़ा जोखिम है और एमपीसी इसे 4 फीसदी लक्ष्य के अनुरूप बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। भारतीय रिज़र्व बैंक के दर निर्धारण पैनल से व्यापक रूप से ब्याज दरों पर विराम बने रहने की उम्मीद थी, क्योंकि मुद्रास्फीति के लिए नए जोखिम सामने आए हैं। केंद्रीय बैंक ने इस साल फरवरी में अपने दर वृद्धि चक्र को रोक दिया है। अगस्त में, भारत की खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई के 7.4 फीसदी के उच्चतम स्तर से घटकर 6.8 फीसदी हो गई। मुद्रास्फीति में कमी का कारण देश के कुछ हिस्सों में जुलाई में हल्की बारिश के बाद सब्जियों की कीमतों में गिरावट थी। जैसा कि ऐसा लग रहा था कि अगस्त में मुद्रास्फीति कम हो रही थी, कच्चे तेल की 30 फीसदी अधिक कीमतें और मजबूत डॉलर ने भविष्य में मुद्रास्फीति के लिए दृष्टिकोण खराब कर दिया होगा। कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का उन वस्तुओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है जिन्हें परिवहन की आवश्यकता होती है।
रेपो रेट
रेपो रेट का मतलब है रिपर्चेज एग्रीमेंट या पुनः क्रय अनुबंध। रेपो सामान्यतः सरकारी प्रतिभूतियों से शार्ट टर्म के उधार को कहते हैं। इसमें विक्रेता यानी रिज़र्व बैंक, कमर्शियल बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों (बांड्स आदि) की पुनर्खरीद की शर्त पर अल्पकालिक अवधि के लिए धन उधार देता है। रेपो रेट के अंतर्गत कमर्शियल बैंक, रिज़र्व बैंक से एक फीसदी तक धन उधार ले सकते हैं। दीर्घकालिक रेपो ऑपरेशन के अपवादों को छोड़ दिया जाए तो रेपो रेट से एक दिन से लेकर अधिकतम 28 दिनों तक धन उधार लिया जा सकता है। इस रेट का इस्तेमाल मौद्रिक अधिकारियों के जरिए महंगाई को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है।
रिवर्स रेपो दर
इसका अर्थ उस रेट से है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी के लिक्विडिटी को नियंत्रित करता है। आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम को उसके पास जमा करा दे। यानी रिज़र्व बैंक रिवर्स रेपो रेट पर वाणिज्यिक बैंको के धन को जमा करके ब्याज देता है। रेपो रेट व रिवर्स रेपो के द्वारा ही लिक्विडिटी का मैनेजमेंट किया जाता है।
रिजर्व बैंक इंडिया के लिए रेपो का उपयोग
भारतीय रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम या अधिक करने के लिए रेपो और रिवर्स रेपो को काम में लेता है। आरबीआई वाण्यिजिक बैंकों को जब उधार देता है तो उसे रेपो दर कहा जाता है। मुद्रास्फीति के समय, आरबीआई रेपो दर को बढ़ा देता है जिससे बैंकों द्वारा धन उधार लेने और अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति कम होने को हतोत्साहित किया जाता है। इसके उलट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में रिवर्स रेपो रेट काम आती है।
रेपोरेट और महंगाई
महंगाई की स्थिति में केंद्रीय बैंक रेपो रेट बढ़ा सकता है। यह वाणिज्यिक बैंकों को धन उधार लेने से हतोत्साहित करता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम करता है और महंगाई की दर को कम करता है। बढ़ी हुई दरों पर पैसा उधार लेने पर ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ता है। जब महंगाई यानी मुद्रास्फीति में गिरावट आती है तो केंद्रीय बैंक रेपो रेट को कम कर सकता है। यह एक प्रोत्साहन की तरह कार्य करता है।जिसमें वाणिज्यिक बैंकों को धन उधार लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसके बाद वे इन पैसों को अपने ग्राहकों को मुहैया कराते हैं, जिससे पैसों की आपूर्ति बढ़ती ह