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Reliance AGM 2021: रिलायंस इंडस्ट्रीज की सालाना आम बैठक, हो सकते हैं कई बड़े एलान

Reliance AGM 2021: रिलायंस कंपनी की आज बैठक में कई अहम फ़ैसले होने की उम्मीद जताई जा रही है। इस बैठक में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ अपने सभी यूनिटों को अलग-अलग कर सकती है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraBy Shreya
Published on: 24 Jun 2021 2:04 PM IST (Updated on: 26 Aug 2022 12:03 PM IST)
Reliance AGM 2021: रिलायंस इंडस्ट्रीज की सालाना आम बैठक, हो सकते हैं कई बड़े एलान
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मुकेश अंबानी (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Reliance AGM 2021: रिलायंस कंपनी की आज बैठक में कई अहम फ़ैसले होने की उम्मीद जताई जा रही है। इस बैठक में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ (Reliance Industries) अपने सभी यूनिटों को अलग-अलग कर सकती है। मसलन, जियो, पेट्रो व कैमिकल सरीखी कंपनियों को अलग किये जाने की घोषणा की जी सकती है। शेयर बाजार (Share Market) में रिलांयस की सभी कंपनियां अलग-अलग लिस्ट हो सकती है।

रिलायंस की बैंक में जिन विदेशी कंपनियों में निवेश किया है या भागीदारी ली है उस प्रेस पर मुहर लगने के साथ ही साथ सऊदी अरब की एक कंपनी को हिस्सेदारी पाने का अवसर भी हाथ लग सकता है। आज की बैठक में अच्छे रिटर्न की भी घोषणा हो सकती है। बैठक के बाद रिलायंस के शेयरों में भारी उछाल की गुंजाइश से इनकार नहीं किया जा सकता है।

धीरूभाई अंबानी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

कैसे हुई रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना?

1957 में यमन और अदन स्थित ए बेस एंड कंपनी का काम छोड़कर धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) भारत लौट आए। यहां आकर उन्होंने मुंबई के मस्जिद बंदर में 500 वर्गफुट में यार्न ट्रेडिंग की शुरुआत की। रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) कंपनी की स्थापना धीरूभाई अम्बानी और चंपकलाल दमानी (Champaklal Damani) ने 1960 में रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन के रूप में की थी।

इसके बाद 1965 में साझेदारी समाप्त हो गई। धीरूभाई ने फर्म के पॉलिएस्टर व्यवसाय को जारी रखा। 8 मई 1973 को यह रिलायन्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड बन गई। 1975 में कंपनी ने टेक्सटाइल का काम शुरू किया । विमल इसका प्रमुख ब्रांड गया। कंपनी का पहला आईपीओ (IPO) 1977 में आया। 1982 में धीरूभाई अंबानी रातों रात मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के राजा बन गए। कुछ दिनों बाद उन्होंने ग़ैर परिवर्तनीय डिबेंचरों (ऋण पत्र) को शेयरों में बदल दिया।

ऐसा करना ग़ैर क़ानूनी था लेकिन न तो बाज़ार और न ही संसद में हल्ला मचा। कारण यह बताया जाता है कि जब इंदिरा गांधी इमरजेंसी के बाद दुबारा सत्ता में आईं तो तब तक धीरूभाई उनके खासमखास हो चुके थे। तब खबरें आई थीं कि उन्होंने अपने खर्च पर कांग्रेस की जीत का जश्न दिल्ली के होटल ताज में मनाया था। कहते हैं कि कांग्रेस के आरके धवन, प्रणव मुखर्जी जैसे दिग्गज उनके दोस्त बन चुके थे।

राजीव गांधी- धीरूभाई अंबानी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पीटीए प्लांट लगाने की मंजूरी

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। राजीव गांधी की सरकार में वीपी सिंह वित्त मंत्री बने। राजीव गांधी ने पहली ही कैबिनेट मीटिंग में रिलायंस को पीटीए प्लांट लगाने की मंजूरी दे दी। धीरूभाई अंबानी की कांग्रेस पार्टी और सरकार में गहरी पैठ थी। उसका उनको खूब फायदा मिला। इसी दोस्ती के चलते रिलायंस ने तगड़े प्रतिद्वंद्वी बॉम्बे डाईंग कम्पनी को बिजेनस में लगभग खत्म ही कर दिया।

1991 में हजीरा प्लांट की स्थापना के साथ ही रिलायंस दुनिया भर में पोलिएस्टर के बड़े उत्पादकों की श्रेणी में शुमार हो गई। इसके बाद रिलायंस ने रिफाइनरी के क्षेत्र में कदम रखते हुए वर्ष 2000 में रिकॉर्ड 36 महीने के दौरान जामनगर में पेट्रोकेमिकल और रिफाइनरी कॉम्प्लेक्स की स्थापना की। लगभग साढ़े तीन लाख शेयरधारक रिलायंस से जुड़े हुए हैं। भारतीय शेयर बाजार के चार धारकों में से एक निवेशक रिलायंस का होता हैं। एक आंकड़े के मुताबिक़, भारत के कुल एक्सपोर्ट में रिलायंस का योगदान 14 प्रतिशत है जो इंडियन ऑयल के बाद सर्वाधिक योगदान है।

2005 में कम्पनी का विभाजन

धीरूरभाई अम्बानी के दोनों बेटे मुकेश (Mukesh Ambani) और अनिल अम्बानी (Anil Ambani) के बीच विवाद के चलते 2005 में कम्पनी का विभाजन हुआ। मुकेश अम्बानी को रिलायंस इंडस्टीज और आईपीसीसी मिला। अनिल अम्बानी को टेलीकॉम, पावर एंटरटेनमेंट और फाइनेंसियल सर्विसेज के बिज़नेस रिलायंस कम्युनिकेशन्स, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर, रिलायंस कैपिटल, रिलायंस कैपिटल, रिलायंस रिसोर्सेज और रिलायंस पावर मिला।

फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक़, रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी संसार के नौवें सबसे अमीर व्यक्ति हैं। नवम्बर 2019 की इस सूची के मुताबिक़ एक मिलियन करोड़ रुपये का मार्केट कैप हासिल करने वाली यह पहली भारतीय कम्पनी बन चुकी है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के 46.32 फीसदी शेयर प्रमोटर्स ग्रुप्स यानी मुकेश अम्बानी के पास हैं। बाकी के बचे हुए 53.68 फीसदी शेयर पब्लिक शेयरहोल्डर्स, विदेशी फंड्स और कॉर्पोरेट बॉडीज के पास हैं जिसमें एलआईसी भारत की सबसे बड़ी नॉन-प्रमोटर इन्वेस्टर है जिसके पास रिलायंस इंडस्ट्रीज के 7.98 फीसदी के शेयर्स हैं।

2020 के रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस इंडस्ट्रीज में 1 लाख 95 हज़ार 618 कर्मचारी काम करते हैं। 2002 में रिलायंस ने दूरसंचार कारोबार में प्रवेश किया। भारत में मोबाइल टेलीफोन के क्षेत्र में भारत में सबसे बड़ी क्रांति लाने में अहम भूमिका निभाई। अपने रणनीतिक फैसले के तहत रिलायंस ने अपने कोरोबार को पुनर्गठित किया. बिजली उत्पादन और वितरण, वित्तीय सेवा और दूरसंचार सेवाओं को अलग कर दिया गया।

हर क्षेत्र के उद्योगों में रिलायंस का दखल

2004 में रिलायंस पहली बार भारत के निजी क्षेत्र के संस्थान के तौर पर फॉर्च्यून ग्लोबल 500 की सूची में शामिल की गई। इसके अलावा, रिलायंस पहली बार भारत में निजी क्षेत्र की उन कंपनियों में शामिल की गई, जिसे मूडीज और स्टैंडर्ड एंड पूअर्स जैसी वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने रेटिंग तय की। आज लगभग हर क्षेत्र के उद्योगों में रिलायंस का दखल है। हर क्षेत्र में रिलायंस की अलग कम्पनी है। लेकिन हर कम्पनी के शेयर लिस्टेड नहीं हैं।

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