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Rice Prices: आटा के बाद अब चावल की कीमतें हो सकती हैं दो गुनी, यहां देखें रेट लिस्ट
Rice Prices: पिछले एक साल में चावलों की कीमतों में 22 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगले एक साल चावल की कीमतों में आने की कोई संभावना नहीं है।
Rice Prices: आम आदमी को कहीं न कहीं से उसको महंगाई से दो-दो हाथ बीते दो सालों से करना पड़ा रहा है। कभी उसको किसी से चीज से राहत मिली है तो कभी किसी चीज के दाम उसको रुलाने लगते हैं। कुछ समय पहले लोगों को बाजार में आटा की बढ़ी हुई कीमतों ने काफी परेशान किया था। लोगों को इससे राहत मिली ही थी कि अब बाजार में चावल के बढ़ते दामों से कड़ी मशक्कत करनी पड़ी रही है। महिलाओं का रसाई बजट बिगड़ गया है। इसमें राहत की भी कोई संभावना नहीं है। बाजार के जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों घरेलू बाजार में चावल के दामों और इजाफा होना संभव है।
आज लखनऊ मंडी में इतना है चावल दाम
commodityonline.com से मिली जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की मंडी में 6 अप्रैल तक चालव का औसत मूल्य 2560 रुपये प्रति क्विंटल, न्यूनतमंडी मूल्य 2500 रुपये क्विंटल और उच्चतम मंडी मूल्य 2610 रुपए क्विंटल दर्ज हुआ है। ग्रीन एग्रीवोल्यूशन के मुताबिक, मौजूदा समय बाजार में चावल की 121 वैरायटी 8,300 से 8,400 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार कर रहा है। पिछले एक साल में चावलों की कीमतों में 22 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगले एक साल चावल की कीमतों में आने की कोई संभावना नहीं है।
2024 तक नहीं कम होंगे दाम
दरअसल, बाजार में चावल की कीमतें इस वजह से बढ़ रही हैं कि इसमें निर्यात की मांग में तेजी बनी हुई है। इसके अलावा मॉनसून की बारिश में अन नीनो के असर पड़ने की संभावना से खरीफ बोआई में भी असर पड़ने की संभावना बनी हुई है, जिस वजह से बाजार में चावल की कीमतों में तेजी बनी हुई है। बाजार के जानकार का कहना है कि घरेलू बाजार में चावल की कीतमों में कमी आने की कोई संभावना नहीं दिख रही है,क्योंकि ग्लोबल लेवल पर सप्लाई डेफिसिट की स्थिति उत्पन्न है।
इन वजहों से बढ़े दाम
कृषि की विशेष जानकारी रखने वाले एक पत्रकार ने कहा कि वर्तमान में चावल की मांग की वजह निर्यात में तेजी के साथ अन्य कारक भी हैं। इसमें पिछले साल की तुलना में इस साल चावल ट्रेडर्स के पास ज्यादा सरप्लस स्टॉक नहीं है। इसके अलावा मौसम ने भी धान फसल बोआई करने वाले किसानों का साथ नहीं दिया था।