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Rupee Hits US Doller : बनी रहेगी डॉलर की जबर्दस्त मजबूती, एक डॉलर की कीमत 81 रुपए के पार

Rupee Hits US Doller : इतिहास में पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 81अंक से नीचे फिसल गया है।

Neel Mani Lal
Published on: 23 Sep 2022 7:02 AM GMT
Rupee Hits US Doller
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डॉलर के मुकाबले पहली बार रुपया 81 के पार

Rupee Hits US Doller : भारतीय रुपये ने बहुत लंबा सफर तय किया है। अनुमान है कि सन 47 में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत 4 रुपये 16 पैसे की थी। लेकिन आज ये कीमत 81 रुपये 23 पैसे हो गई है।

इतिहास में पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 81अंक से नीचे फिसल गया है। आज इंटरबैंक विदेशी मुद्रा एक्सचेंज में डॉलर के मुकाबले रुपया 81.08 पर खुला, फिर 81.23 तक गिर गया, जो पिछले बंद के मुकाबले 44 पैसे की गिरावट है। गुरुवार को रुपया 83 पैसे गिर गया था और डॉलर के मुकाबले 80.79 के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ। इस साल अब तक रुपये में करीब 8.48 फीसदी की गिरावट आई है।

इस बीच, डॉलर इंडेक्स, जो छह बड़ी मुद्राओं की एक टोकरी के मुकाबले ग्रीनबैक की ताकत का अनुमान लगाता है, 0.05 प्रतिशत बढ़कर 111.41 पर पहुंच गया। विदेशी मुद्रा व्यापारियों का कहना है कि यूक्रेन में भू-राजनीतिक जोखिम में वृद्धि और यूएस फेड और बैंक ऑफ इंग्लैंड द्वारा दरों में बढ़ोतरी ने डॉलर को मजबूती दी है और निवेशक कोई रिस्क उठाने से बच रहे हैं।

रिज़र्व बैंक की भूमिका

रुपये को मजबूती देने के लिए रिज़र्व बैंक मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है और डॉलर की बिक्री शुरू कर देता है। लेकिन इस बार अभी तक रिज़र्व बैंक ने ऐसा नहीं किया है। यह स्पष्ट नहीं है कि रुपये को थामने के लिए रिज़र्व बैंक मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करेगा या नहीं।

रुपये की वर्तमान कमजोरी से पहले, इक्विटी में विदेशी निवेश की बहाली, कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और आरबीआई द्वारा आक्रामक बाजार हस्तक्षेप के कारण रुपये को बेहतरीन प्रदर्शन करने वाला माना गया था।

हालांकि, गुरुवार के बाद से रुपये को उभरते बाजार के अन्य साथियों की तुलना में अधिक नुकसान हुआ है, जिससे अटकलें लगाई जा रही हैं कि रिज़र्व बैंक भारतीय मुद्रा को अमेरिकी ब्याज दरों की नई वास्तविकता के अनुरूप बनाए रखने की अनुमति दे रहा है। फरवरी के अंत से बाजार के हस्तक्षेप के बाद, आरबीआई का विदेशी मुद्रा भंडार वर्तमान में लगभग 550 बिलियन डॉलर के दो साल के निचले स्तर पर है।

कैसे होती है कीमत तय

रुपये की कीमत डॉलर के तुलना में उसकी मांग और आपूर्ति से तय होती है। दोनों मुद्राओं की विनिमय दर का असर देश के आयात निर्यात पर पड़ता है। हर देश अपने पास विदेशी मुद्रा, आमतौर पर डॉलर, का भंडार रखता है। इस मुद्रा से आयात होने वाले सामानों का भुगतान किया जाता है क्योंकि इंटरनेशनल तरफ डॉलर में ही किये जाते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति क्या है, और उस दौरान देश में डॉलर की मांग क्या है, इससे भी रुपये की मजबूती या कमजोरी तय होती है।

महंगे डॉलर का असर

भारत को अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी तेल आयात करना पड़ता है और इसके लिए बड़ी मात्रा में डालर खर्च करना पड़ता है। तेल आयात बिल का देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बनता है, जिसका असर अंततः रुपये की कीमत पर पड़ता है।

अभी तक का ट्रेंड

आज़ादी के पहले भारतीय रुपया तब ब्रिटिश पाउंड से बंधा हुआ था, जिसके चलते रुपये का मूल्य थोड़े समय के लिए स्थिर रहा था। रिपोर्टों के अनुसार, 1927 से 1966 तक 1 पाउंड की कीमत 13 रुपये थी। जबकि डॉलर की कीमत 4 रुपये 16 पैसे थी।

1966 में पाउंड-रुपया लिंक समाप्त हो गया, और इसके साथ रुपये का मूल्यह्रास शुरू हो गया। 1971 तक, जब भारत ने स्वतंत्रता के बाद अपनी पंचवर्षीय योजना शुरू की, भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 7.5 रुपये प्रति डॉलर की दर से आंका गया था।

कहा जाता है कि 1991 का आर्थिक संकट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण दौर था। उस दौरान, राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 7.8 फीसदी था, ब्याज भुगतान कुल सरकारी राजस्व का 39 फीसदी था और चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 3.69 प्रतिशत था। हालात ये थे कि भारत डिफॉल्टर घोषित होने के कगार पर था। इन सभी मुद्दों को हल करने के लिए, सरकार ने एक बार फिर भारतीय मुद्रा का मूल्यह्रास किया, जिसके परिणामस्वरूप 1 डॉलर की कीमत 24.58 रुपये की हो गई।

Jugul Kishor

Jugul Kishor

Content Writer

मीडिया में पांच साल से ज्यादा काम करने का अनुभव। डाइनामाइट न्यूज पोर्टल से शुरुवात, पंजाब केसरी ग्रुप (नवोदय टाइम्स) अखबार में उप संपादक की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद, लखनऊ में Newstrack.Com में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। भारतीय विद्या भवन दिल्ली से मास कम्युनिकेशन (हिंदी) डिप्लोमा और एमजेएमसी किया है। B.A, Mass communication (Hindi), MJMC.

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