TRENDING TAGS :
Dollar VS Rupee: रुपया जा रहा नीचे, अभी और मजबूत होगा डॉलर
Dollar VS Rupee: लगातार डॉलर के मुकाबले रूपया निचे जा रहा है। और अब इसमें और गिरावट आने की सम्भावना है।
Dollar VS Rupee: डॉलर इंडेक्स के चार महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद 7 नवम्बर को डॉलर के मुकाबले रुपया 84 रुपये 35 पैसे के सर्वकालिक निम्न स्तर पर पहुंच गया है। रुपये में 6 और 7 नवम्बर को आई गिरावट बीते चार महीनों में सबसे अधिक गिरावट है। सर्वकालिक निम्न स्तर को छूने के बावजूद, रुपये में अन्य एशियाई मुद्राओं की तुलना में सबसे कम गिरावट आई है। भारतीय रिजर्व बैंक बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है, जिसने अन्य उभरते बाजार मुद्राओं की तुलना में रुपये में गिरावट को सीमित कर दिया है। विश्लेषकों का कहना है कि अब चूँकि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप जीत गए हैं सो मुद्रास्फीति उनकी नीतियों के कारण डॉलर में और भी मजबूती आएगी। इसके अलावा विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा बाजार में जबर्दस्त बिकवाली से भी डालर में मजबूती आई है क्योंकि निवेशक डालर की खरीदी कर रहे हैं।
क्या होगा ट्रम्प इफेक्ट?
एक्सपर्ट विश्लेषकों के अनुसार, चूंकि ट्रम्प एंटी-डंपिंग शुल्क और अन्य टैरिफ लगाने के लिए जाने जाते हैं, इसलिए मुद्रास्फीति फिर से बढ़ सकती है, जो दर-कटौती चक्र को धीमा कर सकती है। इससे डॉलर सूचकांक में वृद्धि हो सकती है, जिसका सीधा असर रुपये पर पड़ेगा। इस दबाव के चलते आगे चलकर रुपये में गिरावट की संभावना है। आने वाले दिनों में, आरबीआई द्वारा बाजार में हस्तक्षेप किए जाने की उम्मीद है, लेकिन आक्रामक रूप से नहीं, क्योंकि इससे निर्यात प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचेगा। रुपये में और गिरावट की उम्मीद के साथ, आयातकों के बीच घबराहट कम हो गई है, जिससे बाजार में भारी बिकवाली हुई है।
कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह अच्छी बात है कि रिज़र्व बैंक इस गिरावट की अनुमति दे रहा है। अधिक हस्तक्षेप के लिए विदेशी मुद्रा भंडार को खर्च करना होगा, जो विवेकपूर्ण नहीं है।
डॉलर की मजबूती वैश्विक मुद्राओं पर डालती है अतिरिक्त दबाव
ट्रम्प का प्रशासन अपनी विस्तारवादी नीतियों के लिए लोकप्रिय है, जो राजकोषीय घाटे को बढ़ा सकता है, जिससे संभावित रूप से सरकारी उधारी बढ़ सकती है। इससे यू.एस. ट्रेजरी यील्ड में उछाल आ सकता है। इसके चलते डालर की मांग बढ़ेगी। बाजार विश्लेषकों ने संकेत दिया है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो उभरते बाजारों को चुनौतीपूर्ण हालातों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि डॉलर की मजबूती वैश्विक मुद्राओं पर अतिरिक्त दबाव डालती है और निवेशकों फिर से डॉलर सपोर्टेड एसेट्स की ओर भागते हैं। इस चक्र से डालर मजबूत ही होता जाता है।