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Rupee VS Dollar: जानिए क्या है डॉलर के मुकाबले रुपये का बैलेंस, यहां देखें पूरी डिटेल
Rupee VS Dollar: बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जब उथल-पुथल मचती है तो निवेशक डॉलर की ओर अपना रुख करते हैं।
Rupee VS Dollar: विदेशी मुद्रा बाजार (foreign exchange market) में डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 77.8125 के नए निचले स्तर पर पहुंच गया है। रुपये के टूटने से कई क्षेत्रों में बड़ा असर देखने को मिलता है। इसमें तेल की कीमतों से लेकर रोजमर्रा के सामनों की कीमतों में इजाफा दिखाई देगा।
रुपये में गिरावट के कारण कई हैं। अव्वल तो अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) की 50 आधार बिंदु दर वृद्धि और आने वाले महीनों में और अधिक दरों में बढ़ोतरी का संकेत रुपये को कमजोर कर रहा है। इसके अलावा विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाजारों से लगातार बिकवाली करना भी इसके गिरने की बड़ी वजह है। जबकि, रूस और यूक्रेन के बीच लंबा खिंचता युद्ध और उससे उपजे भू - राजनैतिक हालातों ने भी रुपये पर दबाव बढ़ाया है। कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि मुद्रा पर रिफ्लेक्ट होती है। चूंकि भारत की कच्चे तेल की आवश्यकता का अधिकांश हिस्सा आयात किया जाता हैऔर पेमेंट डॉलर में होता है सो ये मुद्रा बैलेंस को बिगाड़ देता है।
कीमत तय होने का पैमाना
रुपये की कीमत डॉलर (dollar price) के तुलना में उसकी मांग और आपूर्ति से तय होती है। दोनों मुद्राओं की विनिमय दर का असर देश के आयात निर्यात पर पड़ता है। हर देश अपने पास विदेशी मुद्रा, आमतौर पर डॉलर, का भंडार रखता है। इस मुद्रा से आयात होने वाले सामानों का भुगतान किया जाता है क्योंकि इंटरनेशनल तरफ डॉलर में ही किये जाते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति क्या है, और उस दौरान देश में डॉलर की मांग क्या है, इससे भी रुपये की मजबूती या कमजोरी तय होती है।
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जब उथल-पुथल मचती है तो निवेशक डॉलर की ओर अपना रुख करते हैं। क्योंकि डॉलर ही दुनिया की सबसे स्थिर और मजबूत करेंसी है। जब डॉलर की मांग बढ़ती है तो फिर अन्य करेंसियों पर दबाव बढ़ जाता है। कोरोना या यूक्रेन युद्ध की तरह जब भी अनिश्चितता का समय होता है तो लोग सुरक्षित ठिकाना खोजते हैं और डॉलर को सबसे सुरक्षित ठिकाना माना जाता है। विदेशी निवेशकों की बिकवाली से विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ता है और डॉलर की मांग बढ़ जाती है, जबकि रुपये की मांग कम हो जाती है।
अभी और टूटने की आशंका
एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि डॉलर के मुकाबले रुपया (Rupee fall against dollar) आने वाले दिनों में 81 के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच सकता है। यानी अभी इसमें और गिरावट दर्ज की जा सकती है। हालांकि, ये संभावना भी जताई गई है कि इस स्तर तक टूटने के बाद रुपये में फिर से बढ़ोतरी संभव है।
लोगों पर असर
रुपये के गिरने या कमजोर होने का हमारे व्यक्तिगत वित्त पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इम्पोर्ट होने वाली कुछ वस्तुओं के महंगे होने पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है जिससे मुद्रास्फीति होती है। बढ़ती मुद्रास्फीति आंशिक रूप से रुपये के गिरने के कारण भी देखी जा रही है। यहां तक कि उपभोक्ता वस्तुओं में उपयोग किए जाने वाले आयातित कंपोनेंट में भी वृद्धि देखी जाती है, जिससे माल की लागत अधिक हो जाती है।
यह भी एक अप्रत्यक्ष प्रभाव है कि ऋण पर आपकी ईएमआई (EMI) ऐसे समय में बढ़ जाती है जब रुपयाकमजोर हो रहा होता है। जब मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो आरबीआई रेपो दर जैसे अपने उपकरणों का उपयोग करके मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। रेपो दर में वृद्धि के साथ, ब्याज दर बढ़ती है जिससे उधारी लागत अधिक होती है। व्यवसायों और खुदरा उधारकर्ताओं दोनों को पहले की तुलना में अधिक उधार लेने की लागत और अधिक ईएमआई चुकानी पड़ती है। तो ये जान लीजिए कि डॉलर की मजबूती और रुपये की कमजोरी हम सभी को प्रभावित करने वाली है। आने वाले दिनों में क्या स्थिति बनती है ये ग्लोबल कारणों पर बहुत मोच निर्भर करता है।