TRENDING TAGS :
Stock Market: शेयर बाजार में उछाल के पीछे का क्या है रहस्य?
अब मैक्रो इकोनॉमिक्स पर नजर बनाकर रखने वाला अर्थशास्त्री शेयर बाजार के उभार को स्वीकार नहीं करेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि वास्तविक अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार, दोनों एक दूसरे का विरोध करते दिख रहे हैं।
Stock Market: एक प्रचलित कहावत है कि सबसे अक्लमंद वही है दुनिया में जो यह जानता है कि वह बहुत दूर तक नहीं देख सकता है। शेयर बाजार के संदर्भ में आरबीआई वर्तमान में शायद यही कहना चाहता है। आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट में शेयर बाजार बबल का जिक्र करते हुए निवेशकों को सावधानी बरतने की सलाह दी है। इसका अर्थ यह हुआ कि शेयर बाजार में दिख रही तेजी वास्तविक नहीं है। इसलिए निवेशकों को वर्तमान तेजी के आधार पर भविष्य की तेजी समझ निवेश में सावधानी बरतनी चाहिए।
असल में शेयर बाजार दुनिया की सबसे आशावादी जगह है। यहां होने वाली बढ़ोतरी भविष्य में बड़ी बढ़ोतरी के रूप में देखी जाती है। लेकिन वर्तमान तेजी पर आरबीआई कुछ भी गलत नहीं कह रहा है। यहां खुद ध्यान देने वाली बात है कि जब अर्थव्यवस्था के सभी पैमाने एक लंबी और गहरी मंदी का संकेत दे रहे है, ठीक उसी दौरान शेयर बाजार सबसे उच्चतम स्तर पर कैसे पहुंच चुका है? आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि मार्च 2020 की तुलना में आज शेयर बाजार में 100 फ़ीसदी की उछाल आयी है। यह बड़ा उछाल तब संभव हुआ है जब कोविड-19 की वजह से भारत समेत दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाएं तबाह पड़ी है।
अब मैक्रो इकोनॉमिक्स पर नजर बनाकर रखने वाला अर्थशास्त्री शेयर बाजार के उभार को स्वीकार नहीं करेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि वास्तविक अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार, दोनों एक दूसरे का विरोध करते दिख रहे हैं। वर्ष 2020-21 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर -7.3 फ़ीसदी है। अर्थव्यवस्था पिछले 2 वर्षों में 8 फ़ीसदी से गिरकर -7.3 फ़ीसदी की दर पर पहुंच चुकी है। अर्थव्यवस्था में बेकरी दर चार दशकों के सबसे उच्चतम स्तर पर है, खपत घट रही है, निवेश घट रहा है, बाजार में मांग घट रही है लेकिन शेयर बाजार हर दिन नए रिकॉर्ड बना रहा है।
इस अप्रत्याशित घटना पर इंडिया टुडे के संपादक अंशुमान तिवारी बताते हैं कि हर्षद मेहता स्कैम के बाद बाजार को रिकवर करने में 18 महीने लगे थे। डॉट कॉम बबल के बाद बाजार को रिकवर होने में 26 महीने लगे थे। वैश्विक वित्तीय संकट 2008 से बाजार को रिकवर होने में 20 महीने लगे। लेकिन कोविड-19 की वैश्विक समस्या से भारतीय बाजार को रिकवर होने में महज 8 महीने लगे, जबकि यह पिछले 100 वर्षों का सबसे बड़ा संकट है। इसलिए अर्थशास्त्रियों को यह पूरी घटना अविश्वसनीय दिखाई पड़ती है लेकिन शेयर बाजार की दृष्टि से देखें तो यह बहुत अप्रत्याशित भी नहीं है। वर्तमान का शेयर बाजार शायद वास्तविक अर्थव्यवस्था से अलग हो चुका है। इसलिए जीडीपी नकारात्मक हो जाने पर भी यह सकारात्मक बना हुआ है।
आरबीआई ने शेयर मार्केट के उछाल को बबल क्यों कहा?
अपनी सालाना रिपोर्ट में आरबीआई ने लिखा है कि शेयर बाजार में जारी उछाल अप्रत्याशित है। इसके प्रमुख कारण तरलता बढ़ाने वाली मौद्रिक नीति एवं सरकार की उदार राजकोषीय नीति है। साथ ही साथ कोविड-19 टीकाकरण अभियान ने निवेशकों के अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा पैदा की है, जिस वजह से वह लगातार बाजार में निवेश कर रहे हैं। आरबीआई का कहना है कि अर्थव्यवस्था में जारी सुधार और वित्त बाजार की संपत्तियों के कीमत में एक बहुत बड़ा अंतर दिखाई पड़ रहा है। कंपनियों के शेयर कीमतों में वृद्धि तो हो रही है लेकिन वास्तविक संपत्तियों की कीमतों में वृद्धि की दर बेहद कम है। आरबीआई ने स्पष्ट लिखा है कि अर्थव्यवस्था में 8% से अधिक की सिकुडन होने जा रही है इसलिए शेयर बाजार में इतनी उछाल वास्तविक नहीं है। यह एक बबल है जो आने वाले वक्त में फटेगा और निवेशकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
आरबीआई ने शेयर बाजार के इस बबल के पीछे के दो प्रमुख कारणों का जिक्र किया है। पहला कारण अत्यधिक मुद्रा आपूर्ति और दूसरा विदेशी निवेश को बताया है। कोविड-19 की तबाही से अर्थव्यवस्था को बाहर निकालने के लिए पिछले वर्ष सरकार ने बड़ा आर्थिक पैकेज जारी किया था, जो कुल 20 लाख करोड़ रुपए का था। वर्तमान में इसका एक बड़ा हिस्सा बाजार में जारी हो चुका है, जिसकी वजह से शेयर बाजार में निवेश बढ़ोतरी दिख रही है। दूसरी तरफ वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता को देखते हुए विदेशी निवेशक वैश्विक स्तर पर भारतीय बाजार में निवेश कर रहे हैं। यह निवेश शेयर बाजार के पोर्टफोलियो के जरिए किया जा रहा है। जिस तरीके से पिछले छह महीनों में शेयर बाजार ने लंबी उड़ान भरी है, उसने विदेशी निवेशकों को भारत की तरफ और आकर्षित किया है।
वित्त वर्ष 2020-21 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश रिकॉर्ड 31.7 बिलियन डॉलर का रहा है जो कि वर्ष 2012-13 के बाद सर्वाधिक है। उस दौरान 25.8 बिलियन डॉलर का विदेशी पोर्टफोलियो निवेश रहा था। भारत की विदेशी मुद्रा भंडार को भी देखें तो पाते हैं कि यह रिकॉर्ड 605 बिलियन के स्तर पर पहुंच चुका है, जिसमें एक बड़ी हिस्सेदारी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की है।
अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति बढ़ी
कोविड-19 संकट के बाद से ही अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए तरलता (लिक्विडिटी) को बढ़ाने के तमाम प्रयास किए गए हैं। आरबीआई ने खुद बड़े स्तर पर यह कार्य किया था। आज इसी का परिणाम है कि अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति बढ़ी हुई है, जिसकी वजह से संपत्तियों का मूल्य बढ़ा हुआ दिख रहा है जो कि वास्तविक नहीं है। लेकिन यहां यह जान लेना जरूरी है कि वर्तमान में दी जा रही तमाम वित्तीय मदद भविष्य में जारी नहीं रहेंगी। निकट भविष्य में बाजार को संतुलित रखने के लिए आरबीआई लिक्विडिटी को कम करने का प्रयास भी करेगा और तब यह संभव है कि बाजार में ढलान देखने को मिले।
आरबीआई ने बबल की चेतावनी पीई (प्राइस अर्निंग) अनुपात को देखते हुए भी दिया है। पीई (प्राइस अर्निंग) अनुपात बताता है कि 1 रुपए की कमाई पर निवेशक कितना रुपया निवेश करना चाहते हैं। सामान्यता पीई अनुपात 25 के आस पास होता है। 25 के ऊपर जाने के बाद यह गिरने लगता है। पिछले अगस्त महीने से लेकर अभी तक यह अनुपात 30 के ऊपर बना हुआ है। फरवरी और मार्च महीने में तो यह 40 के स्तर को भी पार कर गया था। इसका ज्यादा होना यह बताता है कि निवेशक अधिक महंगें दामों पर शेयर खरीद रहे हैं। इसलिए आरबीआई का यह विश्लेषण निवेशकों को एक चेतावनी है। निवेशकों को आने वाले वक्त में सावधानी बरतनी होगी। निवेशकों को चाहिए कि वह अपने निवेश में विविधता लाएं।
लेखक- विक्रांत निर्मला सिंह- (संस्थापक एवं अध्यक्ष फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल)