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Upper and Lower Circuit: किसी शेयर में कब लगता है लोअर व अपर सर्किट, निवेशकों पर क्या डालता असर? जानिए पूरी डिटेल
Upper and Lower Circuit: अपर सर्किट और लोअर सर्किट का अस्तित्व पहली बार 28 जून, 2001 को आया। इसी दिन सेबी ने शेयर बाजार में कंपनी के शेयर में सर्किट ब्रेकर की व्यवस्था की थी। हालांकि इसका उपयोग कई सालों बाद किया गया था।
Upper and Lower Circuit: हिंडनबर्ग की रिचर्स रिपोर्ट आने के बाद भारतीय शेयर बाजार में देश के दिग्गज उद्योगपति गौतम अडानी के व्यापारिक समूह अडानी ग्रुप के शेयरों में उतार चढ़ाव का दौर जारी है। समूह की फ्लैगशिप अडानी एंटरप्राइजेज के शेयर के अलावा कई कंपनियों के शेयर में लोअर सर्किट लगा। अडानी ग्रुप के शेयरों में लोअर सर्किट लगते ही लोगों के बीच इसको जानने की उत्सुकता काफी तीव्र हो गई है कि आखिर लोअर सर्किट की कौन सी बला है? अगर आप शेयर बाजार के पहले से निवेश हैं तो इस वाक्य से काफी वाकिफ होंगे, लेकिन अगर आप शेयर बाजार के नए निवेश हैं को शायद ही इस वाक्य से उतना वाकिफ हों।
जानिए सर्किट के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
हालांकि इस वाक्य से जितनी जल्दी वाकिफ हो जाएं, उतना अच्छा रहेगा। क्योंकि बाजार का कोई भी निवेश यह नहीं चाहेगा कि वह जिन कंपनी में पैसा निवेश किया हो उसका स्टॉक लोअर सर्किट लगे। स्कॉट का लोअर सर्किट लगना का मतलब निवेशकों का आधा से अधिक पैसा मानों खत्म हो गया। तो आइये जानते हैं कि आखिर लोअर सर्किट का क्या मतलब होता है?
दो प्रकार के होते हैं सर्किट
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि शेयर बाजार में शेयर में 2 प्रकार के सर्किट लगते हैं। पहला अपर सर्किट लगता है और दूसरा लोअर सर्किट लगता है। शेयरों में अपर सर्किट लगना मतलब शेयरों में जबरदस्त तेजी का संकेत होता है। वहीं, लोअर सर्किट लगना मतलब शेयरों में जबरदस्त गिरावट का संकेत होता है। किस शेयर पर कितना सर्किट लगेगा यह बात एक्सचेंज तय करता है।
इसको कहते हैं लोअर सर्किट
वैसे तो शेयरों में गिरावट आना आम बात है। अगर किसी समय किस कंपनी के शेयर में तेजी के गिरावट जारी है। उस स्थिति में कंपनी के शेयर को इससे बचाने के लिए लोअर सर्किट लगाया जाता है। बाजार तय करता है कि जोरदार गिरावट के बीच किसी कंपनी के शेयर की कीमत एक सीमा तक ही गिरेगी। उसके बाद ट्रेडिंग रोक दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया को लोअर सर्किट कहते हैं। यह तीन प्रकार के लगाए जाते हैं। पहला 10 फीसदी, दूसरा 15 फीसदी और तीसरा 20 फीसदी की गिरावट पर।
क्या होता है अपर सर्किट
किसी कंपनी के शेयर के भाव में जबरदस्त तेजी से बचाने के लिए सर्किट का प्रयोग किया जाता है। कंपनी शेयर के दाम निश्चित मूल्य सीमा तक पहुंचते ही अपर सर्किट लगाया जाता है और ट्रेंडिंग रोक दी जाती है। यह तीन प्रकार के लगाए जाते हैं। पहला 10 फीसदी, दूसरा 15 फीसदी और तीसरा 20 फीसदी की तेजी पर।
अपर और लोअर सर्किट से संबंधित 5 आवश्यक तथ्य
- सर्किट फिल्टर पिछले दिन की क्लोजिंग कीमत पर लगाए जाते हैं।
- आप स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट पर सर्किट फिल्टर देख सकते हैं।
- स्टॉक अधिकतर 20 फीसदी सर्किट से शुरू होते हैं।
- कोई स्टॉक अपने ऊपरी सर्किट को हिट करता है तो केवल खरीदार और कोई विक्रेता ही नहीं होगा। इसी प्रकार कोई स्टॉक अपने कम सर्किट पर हिट करता है तो केवल विक्रेता होगा और स्टॉक में कोई खरीदार नहीं होगा।
- इन मामलों में इंट्राडे ट्रेड को डिलीवरी में परिवर्तित कर दिया जाता है।
इस दिन से हुई थी शुरुआत
अपर सर्किट और लोअर सर्किट का अस्तित्व पहली बार 28 जून, 2001 को आया। इसी दिन सेबी ने शेयर बाजार में कंपनी के शेयर में सर्किट ब्रेकर की व्यवस्था की थी। हालांकि इसका पहली बार उपयोग 17 मई,2004 को हुआ था।
आज कितनी कंपनियों में लगा लोअर व अपर सर्किट
बीएसई के मुताबिक, 20 फरवरी, 2023 सोमवार को भारतीय शेयर बाजार में 193 कंपनी के शेयर में अपर सर्किट लगा है, जबकि 215 कंपनी के शेयर में लोअर सर्किट लगा है।