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Inflation In India: फेडरल रिजर्व की दरें बढ़ाएंगी भारत में महंगाई
Inflation In India: अमेरिका के फेडरल रिज़र्व के ब्याज दरों में भारी वृद्धि के चलते। जिसका इम्पैक्ट भारत और अन्य देशों पर पड़ने की संभावना है।
Inflation In India: मुद्रास्फीति कंट्रोल (inflation control) करने के लिए एक देश द्वारा उठाये गए कदम, दूसरे देशों में महंगाई सकते हैं। ये स्थिति बन रही है अमेरिका के फेडरल रिज़र्व (US Federal Reserve) के ब्याज दरों में भारी वृद्धि के चलते। जिसका इम्पैक्ट भारत और अन्य देशों पर पड़ने की संभावना है।
दरअसल, अपनी मुद्रास्फीति को कंट्रोल करने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) ने ब्याज दरों में 75 पॉइंट की बड़ी वृद्धि का ऐलान किया है। ब्रिटेन के केंद्रीय बैंक (UK central bank) ने भी दरें बढ़ा दी हैं और यूरोपीय सेंट्रल बैंक का कहना है कि वह अगले महीने ऐसा करेगा। जापान के केंद्रीय बैंक (Japan Central Bank) ने दरों को रिकॉर्ड निचले स्तर के करीब रखा है। इससे येन दो दशक के निचले स्तर 135 डॉलर के आसपास गिर गया है। फेड दरें भारत जैसे उभरते बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेश को प्रभावित करती हैं। अमेरिका में ब्याज की ऊंची दरों के चलते भारत से इन निवेशों से हाथ खींच लिए जाने की संभावना है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में अब तक विदेशी संस्थागत निवेशको या एफआईआई ने 29 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के शेयरों की बिक्री का अनुमान है, जिसमें 80 फीसदी से अधिक बिक्री अक्टूबर 2021 से फरवरी 2022 के बीच हुई है।
कमजोर होगा रुपया
जैसे ही पैसा भारत से बाहर जाता है, यह रुपया - डॉलर विनिमय दर को प्रभावित करेगा, और रुपये की कीमत गिरेगी। इस तरह की कमजोरी कच्चे माल और आयात कीमतों पर काफी दबाव डालेगी। नतीजतन उच्च खुदरा मुद्रास्फीति के अलावा उच्च आयातित मुद्रास्फीति और उत्पादन लागत बढ़ेगी। 13.11 फीसदी पर थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति भारत के लिए आपूर्ति पक्ष पर बाधाओं को दिखाती है। दूसरी ओर, फरवरी 2022 में खुदरा मुद्रास्फीति 6.07 फीसदी पर पहले से ही निर्धारित सीमा (2 से 6 फीसदी) की ऊपरी सीमा को पार कर चुकी है।
2022 के बजट में निर्धारित सकल घरेलू उत्पाद का 6.9 फीसदी का राजकोषीय घाटा 75 डॉलर प्रति बैरल के तेल मूल्य पर आधारित है। कच्चे तेल की उच्च आयात कीमतें इन अनुमानों से कहीं आगे हैं, सो सरकारी उधार महंगा हो जाएगा, साथ ही सार्वजनिक ऋण जीडीपी के अनुपात में भी बढ़ जाएगा। इस प्रकार, अमेरिकी फेड दरों में वृद्धि भारतीय कंपनियों के लिए लागत और विदेशी वित्त की उपलब्धता को भी प्रभावित करेगी।
5 महीनों से आने वाले 20 बिलियन डॉलर शामिल
भारतीय कंपनियों ने बाहरी वाणिज्यिक उधार के माध्यम से अप्रैल 2021 से जनवरी 2022 के बीच 31.17 बिलियन डॉलर की मध्यम और लंबी अवधि के फंड उधार लिए हैं, जिसमें केवल 5 महीनों से आने वाले 20 बिलियन डॉलर शामिल हैं। फेड दरों में बढ़ोतरी के रूप में इस तरह की वित्तीय जरूरतों पर काफी बाधा होगी। इसके अलावा, भारतीय सॉवरेन ऋण की खराब रेटिंग के कारण सरकारी उधार दरों में वृद्धि के साथ, निजी क्षेत्र जिस दर पर विदेशों में उधार ले सकता है, उसमें और वृद्धि होगी। कुल मिलाकर फेड दरों में वृद्धि का प्रभाव शेयर बाजार, डॉलर की तुलना में रुपये के मूल्य और मुद्रास्फीति के रूप में सामने आने की संभावना है।