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Petrol Price: अमेरिका में ट्रम्प की जीत से पेट्रोलियम कीमतों में गिरावट आने की संभावना
USA Election: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी के साथ अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में गिरावट आ गयी है।
USA Election: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी के साथ अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में गिरावट आ गयी है। हालांकि तेल की कीमतों में गिरावट का संबंध डॉलर के मजबूत होने से है क्योंकि डॉलर मजबूत होने से तेल जैसी डॉलर आधारित वस्तुएं अन्य मुद्राओं में महंगी हो जाती हैं। लेकिन डालर की मजबूती का भी सम्बन्ध ट्रम्प की जीत से जोड़ा जा रहा है।
ट्रम्प की जीत का असर
यह कहना जल्दबाजी होगी कि राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का दूसरा कार्यकाल वैश्विक तेल बाजारों को कैसे प्रभावित करेगा, लेकिन उद्योग पर नजर रखने वालों को उम्मीद है कि ट्रंप प्रशासन की आर्थिक और ऊर्जा नीतियों से तेल की कीमतों पर दबाव पड़ेगा। आयात पर उच्च टैरिफ लगाने की उनकी योजना ग्लोबल तेल डिमांड पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है क्योंकि चीन दुनिया का टॉप तेल आयातक देश है।
इसके अलावा, ट्रम्प द्वारा अमेरिकी तेल उत्पादन और यहां तक कि निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि करने का प्रयास, जिसके लिए उन्होंने "ड्रिल, बेबी, ड्रिल" का नारा दिया है, ग्लोबल तेल सप्लाई में वृद्धि कर सकता है। इसके चलते प्रमुख तेल उत्पादकों को बाजार हिस्सेदारी के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है जिसका नतीजा कीमतों में कमी के रूप में सामने आ सकता है।
सच्चाई ये है कि अमेरिका की नई सरकार द्वारा तेल की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए बड़े पैमाने पर ग्लोबल तेल बाजार के लिए दबाव डालने की संभावना है, लेकिन दामों में तेज गिरावट नहीं लाई जायेगी क्योंकि इससे अमेरिकी तेल उत्पादकों के लिए भी उत्पादन अव्यवहारिक हो जाएगा। यही नहीं, व्हाइट हाउस के पास अपने दम पर तेल की कीमतों को सार्थक रूप से प्रभावित करने के लिए सीमित साधन
भारत पर असर
भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और अपनी 85 प्रतिशत से अधिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है, उसके लिए अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में गिरावट का दबाव फायदेमंद साबित होगा। आयातित कच्चे के भरी भरकम बिल से देश के व्यापार घाटे, विदेशी मुद्रा भंडार, रुपये की एक्सचेंज दर और महंगाई पर भी असर पड़ता है। ऐसे में भारत के पक्ष में है कि ग्लोबल तेल कीमतें नीचे ही रहें।
एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स को उम्मीद है कि भारत सहित एशियाई खरीदारों को "अमेरिका से आकर्षक कीमत वाले कच्चे तेल" के आयात के लिए काफी अधिक अवसर मिलेंगे क्योंकि ओपेक देशों के साथ इसकी प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है। रूस, इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के बाद अमेरिका भारत का पांचवां सबसे बड़ा कच्चे तेल का स्रोत बाजार है।
ओपेक प्लस देशों के लिए बड़ी चुनौती
हाल के वर्षों में बढ़ते अमेरिकी कच्चे तेल के उत्पादन ने ओपेक प्लस देशों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है, जिससे कीमतों पर दबाव पड़ा है और बड़े पैमाने पर उत्पादन में कटौती हुई है। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी उत्पादन में वृद्धि, साथ ही ब्राजील, गुयाना और कनाडा जैसे अन्य गैर-ओपेक प्लस देशों में उत्पादन में वृद्धि ने 2024 में ओपेक प्लस के उत्पादन में कटौती के प्रभाव को लगभग समाप्त कर दिया है। कमोडिटी मार्केट एनालिटिक्स फर्म केपलर का मानना है कि ट्रंप अमेरिका में घरेलू तेल और गैस उत्पादकों का जोरदार समर्थन करेंगे और आक्रामक नीति अपनाएंगे।