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Pathology Career: पैथोलॉजी के क्षेत्र में करियर
Pathology Career: पैथोलॉजी के जरिए जांच कर के बीमारियों का पता लगाया जाता है।
Pathology Career Tips: प्राचीन काल में डॉक्टर बिना साधन के सिर्फ मरीज की नब्ज या बाहरी हालत देखकर इलाज किया करता था, लेकिन आज के योग में पैथोलॉजी के जरिए रक्त, मल -मूत्र, थूक, वीर्य आदि की जांच करके बीमारियों का पता लगाया जाता है। इस क्षेत्र में जो व्यक्ति जितनी मेहनत करेगा उतना ही धन अर्जित कर सकेगा। इस क्षेत्र में कार्य को दक्षता पूर्ण करना होगा। अतः इस क्षेत्र के विकास की अभी भी बहुत संभावनाएं हैं।
आज की शहरी जिंदगी पूर्णतः मशीनी होती जा रही है जिससे स्वास्थ्य को खतरा पैदा होता जा रहा है।छोटी उम्र से ही शरीर बीमारियों की चपेट में आ जा रहा है। पैथालॉजी के द्वारा चिकित्सा विज्ञान में शरीर के विभिन्न प्रयोगों के जरिए रोग को समझने की कोशिश की जाती है और उनका इलाज ढूंढा जाता है। प्रत्येक चिकित्सक के लिए भी पैथोलॉजिस्ट होना जरूरी है।
पैथोलॉजी पाठ्यक्रम वास्तव में जांच का कार्य क्षेत्र है। इसमें शरीर के रक्त, मल -मूत्र, थूक, वीर्य इत्यादि का रसायनों के मिश्रण के जरिए परीक्षण किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि शरीर में मधुमेह इत्यादि के कारक पैदा हो जाएं तो रक्त और पेशाब में शुगर के स्तर की जांच पैथोलॉजिस्ट के जिम्मे होती है।
पैथोलॉजी पाठ्यक्रम को निम्न संस्थानों से पूरा किया जा सकता है
- - अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली
- - लोकनायक अस्पताल, नई दिल्ली
- - होली फैमिली अस्पताल, नई दिल्ली
- - पटना मेडिकल कॉलेज, पटना
- - हॉफकिन संस्थान, मुंबई
- - बी जे मेडिकल कॉलेज, पुणे
- - महिला पॉलिटेक्निक, भोपाल
- वल्लभ भाई पटेल चेस्ट संस्थान, नई दिल्ली
इस पाठ्यक्रम हेतु शैक्षिक योग्यता १० वीं, १२ वीं उत्तीर्ण होना तथा उम्र 17 से 35 वर्ष होना अनिवार्य होता है। सिर्फ नौकरी ही नहीं, स्वरोजगार की दृष्टि से भी पैथोलॉजिकल क्षेत्र में अनन्य संभावनाएं हैं। आज जिस तरह से नर्सिंग होम और पांच सितारा अस्पताल खुलते जा रहे हैं। वैसे ही एक अलग से पैथोलॉजिकल डिपार्टमेंट भी खोला जा सकता है। सरकारी अस्पतालों में भी समय समय पर पैथोलॉजिस्ट के पदों के लिए रिक्तियां जाहिर की जाती है और वरिष्ठ अनुभवी लोगों को सेवाओं का अवसर दिया जाता है।
इसमें उन प्रतिभाशाली तकनीशियनों को पूरा अवसर मिलता है जो पूरी एकाग्रता से रासायनिक जांच के कार्य में तन मन से जुटते हैं। पैथोलॉजिकल प्रयोगशाला शुरू करने के कार्य में डिग्रीधारी युवाओं की राष्ट्रीयकृत बैंक भी मदद करते हैं और ऋण, अनुदान इत्यादि उपलब्ध कराते हैं।
सरकारी अस्पतालों में प्रयोग व जांच के साधारण कार्य प्रयोगशाला तकनीशियन ही करते हैं। पैथोलॉजी के क्षेत्र में बढ़ती मांग और समयिकता के कारण इसमें डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एम डी) स्तर की पढ़ाई भी शुरू हो गई है। यह पढ़ाई करने के उपरांत निजी उपक्रम भी किया जा सकता है। चिकित्सकों के लिए गैर सरकारी स्तर पर भी ऋण की व्यवस्था हो जाती है। पैथोलॉजी में रोगी के रक्त, मल -मूत्र की ही जांच नहीं होती बल्कि कोशिकाओं और तंतुओं की भी जांच की जाती है। पैथोलॉजी की अनेक शाखाएं हैं।
क्लिनिकल पैथोलॉजी , हिस्टोपैथोलॉजी, सर्जिकल पैथोलॉजी इत्यादि प्रमुख हैं। पैथोलॉजी पाठ्यक्रम की अवधि दो से लेकर साढ़े चार वर्षों की होती है। छः माह और एक वर्ष का इंटरशिप भी करना होता है।
एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, सूक्ष्म जीवविज्ञान, तंत्रिका तंत्र, फार्माकोलॉजी इत्यादि कुछ ऐसे विभाग हैं जहां पैथोलॉजी विशेषज्ञ की जरूरत अवश्य पड़ती है। इनके अलावा बड़े अस्पतालों, सहायता प्राप्त चिकित्सालयों, महंगे क्लीनिकों और प्रयोगशालाओं में पैथोलॉजिस्ट के अलावा प्रोगशाला तकनीशियन, प्रयोगशाला सहायक इत्यादि की भी जरूरत होती है।
इस कार्यक्षेत्र में युवाओं को सफल होने के लिए काम में तल्लीनता के साथ जुटना पड़ेगा। रसायनों की समझ रखने और ज्ञानकोष सतत वृद्धि के लिए नई नई पुस्तकों व अन्य जर्नलों की पढ़ाई करते रहना चाहिए।शांतचित , दक्ष और तटस्थ भाव से काम करने वाले युवा इस कार्यक्षेत्र में काफी आगे जा सकते हैं। इस कार्यक्षेत्र की आज इतनी मांग है कि गली के किसी कोने में आप लैब खोल सकते हैं और यदि विश्वसनीयता कायम हो जाए तो दिनोदिन मरीजों की संख्या में निश्चितरूप से वृद्धि होती जायेगी। इस प्रकार पैथोलॉजी पाठ्यक्रम पूरा कर आप अपना सुनहरा भविष्य बना सकते हैं।