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Chhattisgarh News: मध्य भारत का पहला मामला, 6 महीने की बच्ची का सफल लिवर ट्रांसप्लांट

Chhattisgarh News: रायपुर में 6 महीने की बच्ची की सफल सर्जरी हुई। डॉक्टरों का कहना हैं कि मध्य भारत में अपनी तरह का पहला केस है। इस ऑपरेशन को पूरा करने में 9 घण्टे लगे।

AKshita Pidiha
Written By AKshita PidihaPublished By Chitra Singh
Published on: 31 July 2021 1:21 PM IST
Liver Transplant baby girl
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बच्ची-डॉक्टर्स (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 6 महीने की बच्ची की सफल सर्जरी हुई। डॉक्टरों का कहना हैं कि मध्य भारत में अपनी तरह का पहला केस है। इस ऑपरेशन को पूरा करने में 9 घण्टे लगे। बच्ची के पिता ने अपना लिवर अपनी बेटी को दिया और अब दोनों ही स्वस्थ हैं। रायपुर के रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल में यह ऑपरेशन किया गया। खास बात ये है कि ये ऑपरेशन मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य योजना के तहत किया गया, जिसमें माता-पिता को एक भी रुपए अस्पताल को नहीं देने पड़े।

रायपुर के लव और सीमा सिन्हा ने बताया कि जन्म के वक्त ताक्षी का वजन 5 किलोग्राम था। ताक्षी का स्वास्थ्य अक्सर कबर्ब रहता था। चिंतित होकर जब माता-पिता ने डॉक्टर को दिखाया था तो डॉक्टर ने बताया जल्द ही लिवर ट्रांसप्लांट करना पड़ेगा । यह सुनते ही माता पिता के होश उड़ गए । सब कुछ सोचने के बाद पिता ने अपना लिवर ताक्षी को देने का फैसला किया।

बच्ची को हुआ बिलारी अत्रेसिया

डॉक्टरों ने बताया कि मेडिकल भाषा मे इस बीमारी को बिलारी अत्रेसिया कहते हैं। यह बीमारी जन्मजात होती है। इसमे पित्त की नलियां बंद हो सकती हैं। इससे पीलिया बढ़ता है और लिवर खराब होने लगता है । समय पर इलाज नही होने पर 4 से 6 महीने के बीच मरीज की मौत की आशंका होती है। ताक्षी का ऑपरेशन अस्पताल के मेडिकल डॉयरेक्टर डॉ संदीप दवे ,गैस्ट्रो सर्जन डॉ. अजित मिश्रा व डॉ. मोहम्मद अब्दुल नईम ने किया। अस्पताल के प्रबंधन की तरफ से लव सिन्हा को सम्मानित भी किया गया.

बाइलियरी अत्रेसिया (Biliary Atresia) बीमारी 10 से 15 हजार बच्चों में किसी एक को होती है. लेकिन यह स्थिति अमेरिका की है। पूर्व एशिया में यह बीमारी 5000 बच्चों में से किसी एक को होती है। इस बीमारी की जांच के लिए ब्लड टेस्ट, लिवर बायोप्सी, अल्ट्रासाउंड स्कैन इमेजिंग होती है. अगर पीलिया के लक्षण खत्म नहीं होते तो रेडियो-आइसोटोप लिवर स्कैन्स भी किए जाते हैं।

इलाज

बाइलियरी अत्रेसिया (Biliary Atresia) से पीड़ित 95 फीसदी नवजातों का कसाई प्रोसीजर (Kasai Procedure) से ऑपरेशन होता है। यह ऑपरेशन जापान के सर्जन मोरियो कसाई (Morio Kasai) ने विकसित किया था, इसलिए उनके नाम पर इसे कसाई प्रोसीजर कहते हैं. डॉ के निर्देश में ही यदि जरूरत पड़ती है तो इस प्रोसीजर के कोर्टिकोस्टेरॉयड (Corticosteroid) ट्रीटमेंट चलता है।

इसके पहले 2018 में तंजानिया से एक लायमो परिवार भी मुम्बई के एक अस्पताल उम्मीद लेकर आया था।उनके परिवार का सबसे नए सदस्य, 4 महीने के रेयान ने मौत को हरा दिया है। नन्हा रेयान लिवर (लिवर) की एक गंभीर बीमारी 'Biliary Atresia' से जूझ रहा था, जिसके चलते उसके लिवर की कोशिकाएं नष्ट होती जा रही थीं। लिवर प्रत्यारोपण इसका एकमात्र इलाज है। बच्चे को बचाने के लिए उसके पिता ने अपने लिवर का एक हिस्सा दान दिया और भारतीय सर्जन डॉ. डारीयस मिर्जा, डॉ. विक्रम राउत, डॉ. स्वप्निल शर्मा और उनकी टीम ने लिवर प्रत्यारोपण कर रेयान को नया जीवन दिया गया।रेयान की इस जीवटता भरी लड़ाई को सफल बनाने में नवी मुंबई स्थित अपोलो अस्पताल के दिग्गज डॉक्टरों महत्वपूर्ण सहयोग मिला है। तंजानिया के लायमो परिवार के घर करीब चार महीने पहले रेयान का जन्म हुआ था। पर दुर्भाग्य से वह 'Biliary Atresia' से पीड़ित था।



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Chitra Singh

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