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Chhattisgarh News: स्कूल खुलने के फैसले से नक्सलियों में खुशी का माहौल, अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए तैयार
Chhattisgarh News: सरकार के स्कूल खोलने के फैसले से अब छत्तीसगढ़ के नक्सली भी खुश है। अब वे भी अपने बच्चों को पाठशाला भेजने के लिये तैयार हैं।
Chhattisgarh News: आज यानी 02 अगस्त से सरकार ने स्कूल खोलने का फैसला लिया है। इस फैसले से अब वहाँ के नक्सली भी खुश है। अब वे भी अपने बच्चों को पाठशाला भेजने के लिये तैयार हैं।
दरअसल आज से 6 साल पहले छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने 10 से ज्यादा स्कूलों पर हमला किया था। जिसके बाद वहाँ के स्कूलों की दशा नहीं सुधर पाई है। पर अब कुछ महीने पहले ही दन्तेवाड़ा के मासापारा के स्कूल का पुनरुत्थान खुद वहाँ के नक्सलियों ने अपने समर्पण 3 महीने के बाद किया है। कोरोना के शुरू होने के वक्त से ही स्कूल की मरम्मत का काम प्रारम्भ हो गया था।
लोन वर्राटू अभियान
नक्सलियों ने 2005 के बाद दंतेवाड़ा के 10 से ज्यादा स्कूल बिल्डिंग को नुकसान पहुंचाया था। इनमें मासापारा का यह स्कूल भी शामिल था। पुलिस का लोन वर्राटू अभियान शुरू होने के बाद इलाके के 18 नक्सलियों ने दंतेवाड़ा कलेक्टर और एसपी के सामने सरेंडर कर दिया। नक्सलियों ने इलाके में स्कूल की मांग की। कलेक्टर ने तुरंत इसको मंजूरी दी। गांव के लोग और सरेंडर कर चुके नक्सली भारी बारिश के बीच भी काम में जुटे रहे।
सरेंडर कर चुके नक्सली अपने बच्चों को करेंगे इसी पाठशाला में शामिल नक्सलियों द्वारा तोड़ा गया यह पहला स्कूल भवन है, जिसे उसी जगह दोबारा बनाया गया। स्कूल के फिर से बन जाने से गांव के लोग बेहद खुश हैं।वे अपने बच्चों का फिर से इसी स्कूल में दाखिला कराएंगे। यहां तक कि सरेंडर कर चुके नक्सलियों ने भी अपने बच्चों को इसी स्कूल में पढ़ाने की बात कही है।
नक्सलियों को मिला नया रोजगार
दंतेवाड़ा के जिला कलेक्टर दीपक सोनी ने बताया कि भांसी मासापारा का स्कूल बनकर तैयार हो गया है। सरेंडर कर चुके नक्सलियों और गांव के लोगों ने खुद पूरे उत्साह से इस काम को किया है। स्कूल खुलेंगे, तो यहीं क्लासेस लगेंगी।
इधर, सरेंडर कर चुके नक्सलियों ने कहा कि इस काम से उन्हें रोजगार मिला है। आगे भी ऐसे ही काम मिलते रहे, तो जिंदगी चलाना आसान हो जाएगा। और ऐसे ही कई नक्सली आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित हो पायंगे।
पोटाली गांव के स्कूल को भी बनाने की तैयारी
मासापारा के बाद अब पोटाली गांव के जिस स्कूल-आश्रम को नक्सलियों ने मिटा दिया था। पुलिस कैंप खुलने के बाद इसके लिए पहले भी कोशिश हुई थी। लेकिन, नक्सल इलाका होने की वजह से कोई ठेकेदार काम करने को तैयार नहीं हो रहे थे पर अब सरेंडर कर चुके।
नक्सलियों और गांव वालों की मदद से स्कूल के साथ आश्रम को भी बनाया जा रहा है।सिर्फ स्कूल ही नहीं, नक्सलियों के इस ग्रुप ने जिस पुल, सड़क को उड़ाया था उसे भी सुधारने में अब ये प्रशासन की मदद कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़ का काफी हिस्सा आज भी नक्सलवाद से प्रभावित है. दंतेवाड़ा को नक्सलवाद का गढ़ माना जाता रहा है।जंगल के बीच नक्सली प्रभावित इलाकों में स्कूल होते हैं।जहाँ आसपास के बच्चे पढ़ने आते थे।पर 2008 और 2015 में नक्सलियों और माओवादियों स्कूलों को बम से उड़ा दिया गया था।
अक्सर ये देखा जाता है कि नक्सलियों और सरकारी सुरक्षा बलों के बीच बच्चों की शिक्षा पर गहरा नुकसान होता है।बस्तर संभाग के सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर में नक्सलियों के प्रभाव के कारण पहले से ही स्कूल ठीक से संचालित नहीं हो पाते हैं. नक्सली अंदरूनी इलाके में स्कूल भवन तोड़ने के साथ ही कई बच्चों को अपनी पाठशाला में शामिल कर लेते है।
ऐसे में कोरोना के प्रभाव के कारण यहां शिक्षा व्यवस्था पर दोहरी मार पड़ी है।कोरोना महामारी के कारण नक्सल प्रभावित बस्तर में स्कूली बच्चों की पढ़ाई बेहद प्रभावित हुई है। इस दौरान संभाग के सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर में बच्चे पूरी तरह से शिक्षा से वंचित हो गए हैं।
नक्सल प्रभावित इलाकों में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी का न होना और कई गरीब आदिवासी परिवारों के पास एंड्राइड फोन नहीं होने के कारण बच्चे पढ़ाई से दूर हो गए हैं।
सरकार के प्रयास
छत्तीसगढ़ में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी है। कोरोना के चलते फिलहाल स्कूल तो नहीं खोले गए, लेकिन बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसके लिए प्राथमिक और माध्यमिक शाला के छात्रों के लिए मोहल्ला क्लास संचालित की जा रही है।
यह कक्षाएं संचालित तो की जा रही हैं, लेकिन ग्रामीण अंचलों में मोहल्ला कक्षाओं की स्थिति भी काफी खराब बनी हुई है। खासतौर पर सुकमा जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मोहल्ला क्लास नहीं के बराबर लगाए जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में बीजापुर और दंतेवाड़ा के लगभग 200 से भी ज़्यादा ऐसे स्कूल हैं, जो पिछले कुछ सालों से बंद पड़े हैं। पिछले कुछ सालों से सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाक़ों में पक्के भवनों की जगह स्कूलों के कच्चे भवनों का निर्माण करने का फ़ैसला लिया है।
इन कच्चे भवनों को पोटो केबिन के नाम से जाना जाता है।जहाँ पर नक्सल प्रभावित इलाक़ों से बच्चों को आवासीय स्कूल की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।कहते हैं कि नक्सली कच्चे भवनों पर हमला नहीं करते हैं।