CRY की रिपोर्ट: NCRB आंकड़ों से सामने आई डरावनी तस्वीर, पॉक्सो में 99% अपराधों में बच्चियां पीड़ित

पिछले साल देशभर में पॉक्सो के तहत करीब 28,327 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें 28,058 मामलों में पीड़ित लड़कियां ही थीं।

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Report amanPublished By Ragini Sinha
Published on: 12 Oct 2021 9:43 AM GMT
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दुष्कर्म  (social media)

CRY Report: देश भर से हर रोज बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न ( bachhion se utpidan) के अनगिनत मामले सामने आते हैं। कई बार तो दरिंदगी की इंतिहां हो जाती है। ऐसे मामलों से हम ही नहीं, देश भी शर्मसार होता है। बच्चियों के उत्पीड़न से जुड़ा एक ऐसा ही शर्मसार करने करने वाला आंकड़ा सामने आया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB Report) के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। बीते साल 'यौन उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण अधिनियम' (POSCO Act) के तहत दर्ज 99 प्रतिशत मामलों में बच्चियां दरिंदों (Bachiyon se darindagi) का शिकार बनी थीं।



बता दें कि 'चाइल्ड राइट्स एंड यू' (CRY Report) यानि क्राई नाम की एक गैर-सरकारी संस्था (NGO) ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का विश्लेषण किया। जिसमें पता चला कि पिछले साल देशभर में पॉक्सो के तहत करीब 28,327 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें 28,058 मामलों में पीड़ित लड़कियां ही थीं।

लड़कियां यौन अपराधों की सबसे ज्यादा शिकार

'चाइल्ड राइट्स एंड यू' (CRY) संस्था ने आंकड़ों का जब और सूक्ष्मता से अध्ययन किया, तो पाया कि पॉक्सो के तहत दर्ज मामलों में से सबसे ज्यादा 14,092 मामलों में पीड़ित 16-18 वर्ष की लड़कियां थीं। इसके बाद, 10,949 पीड़िता 12 से 16 साल उम्र की थीं। अध्ययन के बाद बताया गया कि लड़के-लड़कियां दोनों ही इस तरह के अपराधों के आसान शिकार हो सकते हैं। लेकिन एनसीआरबी (NCRB Crime DATA) के आंकड़ों से साफ पता चलता है, कि सभी उम्र वर्ग में लड़कियां यौन अपराधों की सबसे ज्यादा शिकार बनती हैं।


कोविड (Covid) ने बढ़ाया जोखिम

'क्राई' ने अध्ययन में पाया कि कोविड महामारी (Corona virus main ladkiyon se dushkaram) के दौरान लड़कियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। उनकी शिक्षा तक पहुंच और अधिक प्रतिबंधित हो गई। बाल विवाह Bal Vivah) के जोखिम बढ़ गए। हिंसा और यौन शोषण के शिकार होने की आशंका भी इस दौरान बढ़ी है। 'क्राई' की प्रीति महारा बताती हैं, 'एक मजबूत बाल संरक्षण तंत्र की जरूरत पर जोर दिया जाना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में लड़कियों की शिक्षा और बाल संरक्षण प्रणालियों को पहले से ज्यादा मजबूत करने के मामले में कुछ प्रगति हुई है। लेकिन महामारी से इन प्रयासों के विकास को धक्का लगा है।'

शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा के पहलू भी अहम

'चाइल्ड राइट्स एंड यू' (CRY) की पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी की निदेशक प्रीति महारा इस संबंध में बताती हैं, 'बच्चों के खिलाफ अपराधों (Bachion Ke khilaf Apradh) का खामियाजा लड़कियों को भुगतने की घटनाओं को अलग कर नहीं देखा जाना चाहिए। दरअसल, यह समझना बेहद आवश्यक है कि संरक्षण की चुनौतियों के साथ शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, गरीबी से जुड़े पहलू भी लड़कियों के सशक्तीकरण में अहम भूमिका निभाते हैं।'

प्रयासों की जरूरत

प्रीति महारा ने कहा, 'लड़कियों की स्थिति कमजोर हो गई है। खासतौर पर उनके शिक्षा प्रणाली से बाहर होने से उनकी सुरक्षा की बड़ी दीवार गिरने की आशंका है। कोरोना महामारी के दौर में लैंगिंक आधार पर संवेदनशील और जवाबदेह संरक्षण के प्रयासों की ज्यादा जरूरत है।'

'चाइल्ड राइट्स एंड यू' (CRY) यानि क्राई है क्या?

चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY kya hai) एक भारतीय गैर-सरकारी संगठन (NGO) है। यह बाल अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में काम करता है। वर्ष 1979 में इंडियन एयरलाइंस के पर्सर रिपन कपूर ने 'CRY' की शुरुआत की थी। 'CRY' आज भारत के 19 राज्यों में 102 जमीनी स्तर के गैर सरकारी संगठनों के साथ काम करता है। इसके द्वारा किए गए काम से अब तक 30 लाख से अधिक बच्चों के जीवन में परिवर्तन आया है। CRY अभिभावकों, शिक्षकों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, समुदायों, राज्य-स्तरीय सरकारों के साथ-साथ स्वयं बच्चों के साथ काम करके उनकी महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करता है। यह संगठन जमीनी स्तर पर व्यवहार और प्रथाओं को बदलने तथा एक प्रणाली के स्तर पर सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने पर ध्यान केंद्रित करता है। इस प्रकार एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है, जो बताता है बच्चे राष्ट्र की प्राथमिकता हैं

Ragini Sinha

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