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Delhi Assembly Elections 2025 News: आम जनता में आप का पलड़ा भारी, भाजपा ने दिग्गज उतारे, कांग्रेस को उम्मीदवारों का टोटा
Delhi Assembly Elections 2025 News: दिल्ली में भाजपा और आप आमने-सामने हैं। भाजपा ने राजधानी में गरीब तबकों को अपने पाले में खीचंने के लिए कोशिशों को अमलीजामा पहनाना शुरू किया है।
Delhi Assembly Elections 2025 News: दिल्ली में भाजपा और आप आमने-सामने हैं। भाजपा ने राजधानी में गरीब तबकों को अपने पाले में खीचंने के लिए कोशिशों को अमलीजामा पहनाना शुरू किया है। अशोक विहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उतरे और गरीब लोगों को मकानों का आवंटन कर दिया। दिल्ली में तू डाल-डाल मैं पात-पात की राजनीति में चतुर केजरीवाल ने भाजपा को उसी के दांव से चित कर कर रखा है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में लाडली और बहिन योजना की तर्ज पर आप सुप्रीमों ने भाजपा को महिलाओं के बीच ही विलेन बना दिया। झारखंड में मईया सम्मान योजना ने हेमंत सोरेन की सत्ता में वापसी करायी और भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया। पहले लग रहा था कि भाजपा झारखंड में पूर्ण बहुमत से सरकार बना लेगी। महिलाओं के इसी सम्मान योजना के बूते भाजपा ने जहां महाअगाड़ी गठबंधन को 50 पर टिका दिया, वहीं एकनाथ शिंदे, बाला साहेब ठाकरे के असली वारिस साबित हुए। सत्ताधारी दल को योजनाओं को लागू करने का संवैधानिक अधिकार होता है। दिल्ली में केजरीवाल के थिंक टैंक को ऐसी योजना के जरिए सत्ता में वापसी का रास्ता दिख दिख रहा है।
केजरीवाल और आप के कर्ताधर्ता जानते हैं कि भाजपा उपराज्यपाल के माध्यम से दिल्ली की जनता को लाभार्थी बनाने की योजना को रोकने का खेल करती रही है। यही वजह रही कि सत्ताधारी दल और आप के मुखिया ने महिला सम्मान राशि 2100 रुपए प्रति महिला घोषित कर दिया। भाजपा के रणनीतिकारों ने हड़बड़ी में उपराज्यपाल को आगे करते हुए इस योजना को लागू ही नहीं होने दिया। यहीं केजरीवाल की रणनीति काम कर गई। दिल्ली की आधी आबादी को संदेश देने में वे सफल रहे कि राजधानी के गरीब तबकों की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का कार्यक्रम को भाजपा ने रोक दिया है। प्रचार की राजनीति के माहिर खिलाड़ी अरविंद केजरीवाल ने पूरा प्रचार-प्रसार किया और दिल्ली में भाजपा की बन रही बढ़त को केजरीवाल टीम ने फिलहाल रोक दिया है। भाजपा का संगठन खासा सक्रिय है और एक-एक सीट पर उम्मीदवारों का चयन बड़ी होशियारी से किया जा रहा है। भाजपा को भी केजरीवाल के सामने कोई चेहरा दिल्ली में टिकता नहीं दिख रहा।
पिछले लोकसभा चुनाव में टिकट से वंचित प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को अब उम्मीदवारी देकर केजरीवाल की जीत का रास्ता आसान कर दिया। पिछले दिनों पूर्व सांसद के द्वारा पैसे बांटे जाने की खूब चर्चा गर्म रही। नई दिल्ली का इलाका वाल्मीकि बस्ती और धोबी समाज के वोटरों के साथ सरकारी कर्मचारियों से अटा-पटा है। यहां प्रवेश वर्मा का जातिगत समीकरण फिट ही नहीं बैठता। वहीं कांग्रेस को ढूंढें उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं। पूर्वी दिल्ली से सांसद रहे संदीप दीक्षित को कांग्रेस ने चुनावी मैदान में सजा के तौर पर उतारा। स्थानीय कांग्रेसी ही उनकी बुरी तरह से जमानत जब्त होने की भविष्यवाणी करने लगे हैं। शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते हुए संदीप दीक्षित स्थानीय कार्यकर्ताओं को अपने घर पर लज्जित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते थे। संदीप दीक्षित को दिग्गज रमेश सभरवाल से खासा नुकसान होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। रमेश सभरवाल गोल मार्केट क्षेत्र के स्थापित नेता हैं। उन्हें संगठन का मास्टर माना जाता है। उनके शार्गिदों में कांग्रेस के कई पूर्व अध्यक्ष और कई विधायक उनके राजनीतिक स्कूल से निकले हुए हैं। शीला दीक्षित और अजय माकन से उनकी घोर प्रतिद्वंद्विता ने रमेश सभरवाल को कांग्रेस संगठन से दूर रखा है। माकन ने एक तीर से दो निशाने लगाए हैं। सभरवाल को गोल मार्केट से टिकट नहीं लेने दिया, वहीं संदीप को वहां लाकर फंसा दिया।
दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ सुभाष चोपड़ा परिवार और स्थानीय महिला नेत्री मोनिका की अनदेखी की कीमत अलका लांबा को चुकानी पड़ेगी। दिल्ली में कालकाजी सीट के स्थानीय कांग्रेसी भी दबी जुबां से मानते हैं कि पार्टी की किसी भी सीट से जमानत बचना भी बड़ी बात होगी। आतिशी के सामने चुनाव लड़ने से पीछे हट रही अलका को राहुल गांधी ने आश्वासन के साथ उतारा है। कांग्रेस में कुछ नेताओं ने इसिलिए टिकट पकड़ा है कि चुनाव में मिलने वाले खर्चे से वे अपनी आगामी पांच साल की राजनीति का रास्ता तय करेंगे। पिछले चुनाव में कांग्रेस के वर्तमान कोषाध्यक्ष अजय माकन बामुश्किल अपनी जमानत बचा पाए थे, उन्होंने राजेश जैन का टिकट काट कर दिल्ली की सुरक्षित सीट समझे जाने वाले मुस्लिम बाहुल्य सीट सदर बाजार तलाशी थी। दिल्ली के रजौरी गार्डन से विधायक और मंत्री रहे। नई दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली से सांसद रहे। जब तक दिल्ली और केंद्र में सरकार रही, अजय माकन बतौर मंत्री रहे। हालत देखिए कि इन 21 विधानसभा सीटों को छोड़कर माकन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र पहुंचे थे। दिल्ली में नामालूम की हैसियत रखने वाले सोम दत्त से बामुश्किल जमानत बचा पाए थे।
राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा बड़ी जबर्दस्त है कि अजय माकन की करीबी में शुमार होने वाली एक नेता ने स्वीकार किया कि कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा की मदद करने के लिहाज से चुनाव में उतर रहे हैं। उनका मकसद केवल आप पार्टी के वोट काटना है। 2014 से अब तक हो रहे लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी वर्सेज दूसरे दल का आमने-सामने मुकाबला हो रहा है। दिल्ली में अजय माकन सरीखे नेताओं ने राजनीति में कांग्रेस को पश्चिम बंगाल बना दिया है। दिल्ली कांग्रेस की स्थिति यूपी-बिहार से बदतर है। अपने बड़बोलेपन के लिए मशहूर कन्हैया कुमार फिलहाल लापता हैं। उनको सांसदी का चुनाव लड़ाने वाले चौधरी मतीन और उनके बेटों ने आप का झंडा उठा लिया है। दिल्ली का राजनीतिक मिजाज हर पांच साल में बदल जाता है। भाजपा ने इसको थोड़ा समझा है, कांग्रेस इसे मानने को तैयार नहीं है। वहीं आप पार्टी ने 70 विधानसभा में पूर्वांचली लोगों को 27 टिकटें दी है। आप का मानना है कि जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी। आप की जीत का मंत्र यहीं से शुरू होता है। कांग्रेस आज तक इस जमीनी हकीकत को नहीं समझ पायी।
भाजपा ने अजय महावर, अभय वर्मा, मोहन सिंह बिष्ट, रवींद्र सिंह नेगी जैसे नेताओं को टिकट देकर ये बढ़त हासिल की थी। आप के दिग्गज नेता मनीष सिसोदिया बामुश्किल कुछ सैकड़ों वोटो से जीते थे। उत्तराखंडी वोटों का पटपड़गंज विधानसभा में बढ़ते बढ़त को देखते हुए हार के डर से मनीष सिसोदिया अपने पुराने मैदान छोड़कर जंगपुरा पहुंच गए। पटपड़गंज सीट से अवध ओझा को उतारकर आप ने भाजपा के हाथों में मानो सीट पकड़ा दी है। कांग्रेस ने अब तक 48 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है। प्रदेश अध्यक्ष अपनी जमानत बचा पाएंगे की नहीं, ये चुटकुला सबके जुबां पर है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और उनके मैनेजरों के करीबी रहे देवेंद्र यादव की राजनीतिक हैसियत दिल्ली के कई नेताओं के सामने बौनी है, लेकिन खड़गे की मेहरबानी से वे दिल्ली के अध्यक्ष और पंजाब के प्रभारी बने हुए हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस की पराजय के बाद पार्टी का परंपरागत वोटर जिसमें अल्पसंख्यक, दलित और पूर्वांचल का एक बड़ा तबका आज आम आदमी पार्टी का वोटर बना हुआ है। आप ने उनके नुमाइंदों को विधानसभा और संसद में बिठाकर उनको जोड़े रखा है। दिल्ली में चुनाव आप वर्सेज भाजपा होगा, कांग्रेस वोटकटुआ की हैसियत में होगी। पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो वोटकटुआ पार्टी को जनता को कोई वोट नहीं मिल रहा।